साल 1982 में अलग हुए लोकदल के दोनों धड़े 1984 में सुलह की राह पर आगे बढ़ रहे थे। दोनों गुटों के एक होने को लेकर लगातार बैठकें चल रही थीं। 31 अक्टूबर, 1984 (जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी) को एक ऐसी ही बैठक पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के राजेंद्र प्रसाद मार्ग स्थित आवास पर रखी गई थी। इस बैठक में समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भी आना था और इस दिन रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के दूसरे जन्मदिन की पार्टी भी रखी गई थी।
Indira Gandhi Assassination 1984: इंदिरा गांधी की हत्या
पासवान ने बैठक में शामिल सभी लोगों को जन्मदिन समारोह में रुकने के लिए भी निमंत्रण दिया था। यह वह दिन था जब दिल्ली का माहौल बेहद तनावपूर्ण था क्योंकि 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख सुरक्षाकर्मियों ने दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह हत्या इंदिरा गांधी के सरकारी आवास पर ही हुई थी।
शोभना के. नायर की किताब ‘Ram Vilas Paswan The Weathervane of Indian Politics’ में रामविलास पासवान की पत्नी रीना पासवान उस दिन को याद करती हैं।
रीना बताती हैं कि वह बैठक के लिए चाय और स्नैक्स बनाने और उसके बाद चिराग के जन्मदिन की पार्टी की वजह से रसोई में व्यस्त थीं। इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से दिल्ली में हालात खराब थे लेकिन उन्हें इसका अंदाजा तब तक नहीं हुआ जब तक बेकरी वाले ने केक का आर्डर कैंसिल नहीं कर दिया।

Anti Sikh Riots 1984: सिखों का हुआ बेरहमी से कत्ल
हालात इतने खराब थे कि दिल्ली की सड़कों पर तब केवल शिकारी और शिकार ही मौजूद थे। इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए सिख समुदाय के लोगों पर हमले किए जा रहे थे। हमलावरों में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी थे जो सिख परिवारों का पता लगा रहे थे और बेरहमी से उनकी हत्या कर रहे थे। सिखों के गले में रबर के टायर डालकर उन्हें आग के हवाले किया जा रहा था। सिख समुदाय के लोग चिल्ला रहे थे लेकिन उनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं था।
किताब में बताया गया है कि तीन दिन तक जब तक सेना ने राजधानी में मार्च नहीं किया, तब तक दिल्ली का प्रशासन गूंगा और बहरा बना रहा। रीना बताती हैं कि उनके घरवालों को भी चिराग की जन्मदिन पार्टी में आना था। चूंकि वह सिख परिवार से ताल्लुक रखती हैं इसलिए वह उनकी सुरक्षा को लेकर परेशान थीं।
रीना के माता-पिता के घर पर टेलीफोन नहीं था और उनसे संपर्क करने का सिर्फ एक ही रास्ता था कि उनके पड़ोस में स्थित पीसीओ पर फोन किया जााए। रीना बताती हैं कि उन्होंने पीसीओ पर फोन किया तो पता चला कि उनका परिवार घर पर ही था। चूंकि हालात खराब थे इसलिए किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए वे लोग घर पर ही रुके रहे।

रीना ने इस खबर से राहत की सांस ली। लेकिन, यह राहत कुछ ही क्षण के लिए थी। रीना के फोन रखने से पहले ही उनके घर के गेट पर हो-हल्ला शुरू हो गया। कुछ लोग नारेबाजी कर रहे थे। रीना और परिवार के बाकी लोगों ने खिड़की से बाहर देखा तो एक सिख व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए घर के मेन गेट से अंदर आ रहा था। वह उनके गैराज में खड़ी कार के पीछे छुपने के लिए भागा।
रामविलास पासवान का यह मकान एक टैक्सी स्टैंड के सामने था और वह सिख व्यक्ति ड्राइवर था। इस दौरान उसका पीछा कर रही भीड़ में शामिल लोगों को पकड़ लिया गया। घर पर तैनात सुरक्षा गार्ड ने हवा में गोलियां दागीं लेकिन भीड़ पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
पासवान के परिवार और बैठक में शामिल होने आए नेताओं ने दिल्ली पुलिस, फायर सर्विस और राज्य के प्रशासन के अफसरों को लगातार फोन किया लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिला।
रीना बताती हैं कि भीड़ के सिर पर खून सवार था और जब उन्हें वह सिख व्यक्ति नहीं मिला तो उन्होंने पूरे घर में आग लगा दी। सिख व्यक्ति के अलावा सभी लोग पीछे की दीवार को फांदकर बाहर निकल गए।
जिंदा नहीं बच सका टैक्सी ड्राइवर
इस घटना के कुछ दिन बाद एक टेलीविजन चैनल से बातचीत में रामविलास पासवान ने कहा था कि उन्होंने पुलिस को छह फोन कॉल किए थे लेकिन पुलिस नहीं आई। आगे की बातचीत में रीना पासवान बताती हैं कि वह उस मंजर को कभी नहीं भूल सकती।
मेरे सामने मेरा घर जल रहा था। हम सब लोग तो जिंदा रह गए लेकिन वह टैक्सी ड्राइवर जिंदा नहीं बच सका।
इस घटना के बाद पासवान का परिवार तुगलक रोड पर स्थित चौधरी चरण सिंह के घर चला गया और उनके घर पर एक हफ्ते तक रुका। इसके बाद वे लोग एक हफ्ते तक हरियाणा भवन में और कुछ महीने तक विट्ठल भाई पटेल हाउस के सांसद हॉस्टल में रुके।
रीना बताती हैं कि अगले 5 साल तक राम विलास पासवान का परिवार एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा।
1984 Lok Sabha Election: कांग्रेस ने जीती 404 सीटें
इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से देश में मध्यावधि चुनाव कराना जरूरी हो गया था। इस चुनाव में जनता पार्टी का पूरी तरह सफाया हो गया और कांग्रेस को जबरदस्त सहानुभूति मिली। कांग्रेस ने 404 सीटों पर जीत दर्ज की। जनता पार्टी को सिर्फ 10 सीटें मिली, बीजेपी को दो और लोकदल को तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। 1984 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान भी बिहार की हाजीपुर सीट से चुनाव हार गए थे।
चूंकि अब रामविलास पासवान सांसद नहीं थे ऐसे में उनके पास दिल्ली में रहने के लिए कोई सरकारी आवास नहीं था। उस दौरान उनकी कांग्रेस के सांसद तेजा सिंह दर्डा ने काफी मदद की। कांग्रेस सांसद ने उन्हें मिले आवास का सिर्फ एक कमरा अपने पास रखा और बाकी सब पासवान के परिवार को दे दिया।

बीजू पटनायक ने की मदद
रीना बताती हैं कि यह बेहद खराब वक्त था और वह अभी भी इस वक्त में की गई मदद के लिए बीजू बाबू यानी बीजू पटनायक को याद करती हैं। बीजू पटनायक ने रामविलास पासवान को फोन कर उनसे उनके घर आ जाने के लिए कहा था।
रीना के मुताबिक लेकिन उन लोगों के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे ऑटो रिक्शा लेकर बीजू बाबू के घर पहुंच जाएं। रीना इस खराब वक्त को याद करते हुए बताती हैं कि उन्होंने घर में सबकी जेबें खंगाली, इधर-उधर पैसे ढूंढे और तब वह कुल पांच या छह रुपए इकट्ठा कर पाई थीं। उन्होंने ये रुपए रामविलास पासवान को दे दिए।
बीजू पटनायक के घर पहुंचने पर जब उन्हें रामविलास पासवान की बेहद खराब स्थिति के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत ढाई हजार रुपए देकर उनकी मदद की।

