1950 के दशक की शुरुआत में जवाहरलाल नेहरू सोवियत संघ की आधिकारिक यात्रा पर गए थे, जहां उनकी मुलाकात इंकलाबी नेता जोसेफ स्टालिन से हुई। तब स्टालिन USSR के शासक हुआ करते थे।
दिल्ली लौटने पर नेहरू ने अपने आवास पर एक पार्टी दी, जिसमें पृथ्वीराज कपूर भी शामिल हुए थे। तब पृथ्वीराज कपूर राज्यसभा सांसद थे। पार्टी में पृथ्वीराज को देखते ही नेहरू उनके पास गए और बताया, “मुझे लगता है आपके बेटे (राज कपूर) ने एक फिल्म बनाई है। मैं मॉस्को में स्टालिन से मिला और उन्होंने मुझे इसके बारे में बताया। यह कौन सी फिल्म है?”
स्टालिन ने नेहरू से आवारा (1951) फिल्म के बारे में बात की थी। उस फिल्म ने न केवल सोवियत संघ में बल्कि पूर्वी यूरोप, अरब, ईरान, तुर्की, मैक्सिको और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में भी दर्शकों को आकर्षित किया था। आवारा को कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी नॉमिनेट किया गया था।
यह भारत के अलावा विदेशों में भी हिट रही थी। इसे कई अन्य टाइटल से भी जाना गया: द वागाबॉन्ड, एल वागाबुंडो (मेक्सिको), आवारा-डेरवागाबुंड वॉन बॉम्बे (जर्मनी) और सिम्पल अवारे (तुर्की)। विशेष रूप से फिल्म का टाइटल सॉन्ग “आवारा हूं” पूर्वी यूरोपीय लोगों की कई पीढ़ियाँ गुनगुनाती रही।
आवारा की रिलीज़ के दौरान राज कपूर 27 वर्ष के थे। इस फिल्म से पहले राज कपूर आरके फिल्म्स बैनर के तहत दो अन्य फिल्मों का निर्देशन कर चुके थे – आग (1948) और बरसात (1949)।
जब आवारा सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी, तब भारत को आजादी मिले मात्र चार साल ही हुए थे। एक युवा राष्ट्र के आदर्शवाद को पहले प्रधानमंत्री नेहरू के अपने लेखन और भाषणों में जिस तरह दर्शाया था, उससे राज कपूर बहुत प्रभावित थे।
नेहरू को अपनी फिल्म में कास्ट करना चाहते थे राज कपूर
राज कपूर, प्रथम प्रधानमंत्री के इतने बड़े प्रशंसक थे कि वह 1957 की अपनी फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं में’ जवाहरलाल नेहरू को कास्ट करना चाहते थे। फिल्म में एक युवा लड़का अपने पिता की जेल की सजा खत्म कराने की उम्मीद से चाचा नेहरू से मिलने के लिए दिल्ली आता है। यह दृश्य नेहरू के आधिकारिक आवास तीन मूर्ति पर फिल्माया जाना था। लेकिन किसी कारण से, अपनी टीम की सलाह पर, नेहरू ने इस फिल्म से हटने का फैसला किया।