15 अगस्त, 1947 को दिल्ली और कराची में अपने-अपने तरीके से आजादी का जश्न मनाया गया। लेकिन बंटवारे की त्रासदी झेल रहे लाखों शरणार्थी इस जश्न में शामिल नहीं थे। वे अपने भविष्य की अनिश्चितताओं से चिंतित थे। गांधी को उनकी पीड़ा का अहसास था, इसलिए वह भी स्वाधीनता दिवस के उत्सव में शामिल न होकर देश के बंटवारे के दुख में उपवास कर रहे थे।

भारत-पाक बंटवारा मानव इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। बंटवारा क्यों और किसकी वजह से हुआ इसका जवाब लोग अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से तलाशते रहते हैं, लेकिन बंटवारे की लकीर किसने खींची इसे लेकर कोई संशय नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की रेखा सिरील रेडक्लिफ ने खींची थी।

रेडक्लिफ को नहीं थी भारत की जानकारी

संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाउंड्री कमीशन के सदस्य मनोनीत किए जाने के सुझाव के विफल होन के बाद जिन्ना ने माउंटबेटन को रेडक्लिफ का नाम सुझाया था।  रेडक्लिफ एक वकील थे, जिन्हें जिन्ना ने लंदन में कई उलझे हुए मामलों में जिरह करते सुना था। कृष्णा मेनन की सलाह से नेहरू भी रेडक्लिफ के नाम पर सहमत हो गए। दिलचस्प बात यह है कि रेडक्लिफ पहले कभी भारत नहीं आए थे। न ही उन्हें भारत के भूगोल और संस्कृति की जानकारी थी। बकौल रेडक्लिफ उन्हें बंटवारा करने के लिए सिर्फ डेढ़ महीने का समय दिया गया था।

भारत के हिस्से था लाहौर, फिर..

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने 5 अक्टूबर, 1971 को लंदन में रेडक्लिफ से मुलाकात की थी। नैयर से बातचीत में रेडक्लिफ ने बताया था कि वह पहले लाहौर को भारत का हिस्सा बनाने का इरादा कर चुके थे। दरअसल उस वक्त ज्यादातर हिंदू यह मानकर चल रहे थे कि लाहौर भारत और कलकत्ता पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा। जिन्ना भी कोलकाता को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे। उनके शब्दों में कहें तो, कलकत्ता के बिना पूर्वी बंगाल का कोई मतलब नहीं था।

लेकिन रेडक्लिफ ने तमाम पूर्वानुमानों को पलटते हुए लाहौर पाकिस्तान को दे दिया और कोलकाता को भारत के हिस्से में डाल दिया। जब नैयर ने उनसे ऐसा करने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया,  ”मैंने पहले लाहौर हिंदुस्तान को दे दिया था, लेकिन फिर मुझे लगा कि मुझे मुसलमानों को पंजाब में कोई बड़ा शहर देना पड़ेगा, क्योंकि उनके पास कोई राजधानी नहीं थी।”

विभाजन की विभीषिका के लिए कौन जिम्मेदार?

विभाजन की हिंसा और लापरवाही के सवाल पर रेडक्लिफ ने कहा था कि ”मुझे जल्दी में सबकुछ करना था। मेरे पास ब्यौरों में जाने का समय नहीं था। जिलों के नक्शे तक उपलब्ध नहीं थे और जो उपलब्ध थे वे भी सही नहीं थे। सिर्फ डेढ़ महीने में मैं क्या कर सकता था?” रेडक्लिफ ने बाउंड्री कमीशन की नियुक्त में देरी के लिए माउंटबेटन को भी जिम्मेदार ठहराया था।