क्या देश में एक बार फिर 2020 जैसा किसान आंदोलन देखने को मिल सकता है? क्या एक बार फिर हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली की तरफ कूच कर सकते हैं? अगर आप शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर के साथ ही हरियाणा और पंजाब के कई जिलों में किसान संगठनों की सक्रियता को देखेंगे तो आपको लगेगा कि हां, जरूर एक बार फिर किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की ओर बढ़ सकते हैं।
किसानों का कहना है कि जब तक केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी (एमएसपी) को लेकर कानून नहीं बनाती तब तक वे सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहेंगे।
हरियाणा में जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किसानों के तीखे तेवरों से निश्चित रूप से राज्य की नायब सिंह सैनी सरकार परेशान है और वह किसानों के संभावित बड़े आंदोलन से निपटने की तैयारी कर रही है।

याद दिलाना होगा कि इस साल फरवरी में जब किसान पंजाब से दिल्ली की ओर बढ़े थे तो हरियाणा सरकार ने उन्हें शंभू बॉर्डर पर रोक दिया था और तब से इस बॉर्डर पर 8 लेयर की सुरक्षा दीवार लगाई गई थी जिस वजह से किसान आगे नहीं बढ़ सके थे।
लेकिन 10 जुलाई को आए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के बाद किसान संगठन खासे एक्टिव हो गए हैं। हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा है कि शंभू बॉर्डर को यातायात के लिए खोल दिया जाए। हरियाणा सरकार ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
दूसरी ओर किसानों से निपटने के लिए हरियाणा के अन्य जिलों की तरह अंबाला पुलिस ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि घेराव करने वाले, जुलूस निकालने वाले लोगों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करवाई जाएगी और उनके पासपोर्ट रद्द करवाए जाएंगे।

कृषि कानूनों का हुआ था जोरदार विरोध
साल 2020 में जब मोदी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई थी तो इसके खिलाफ सबसे पहले आंदोलन पंजाब से ही शुरू हुआ था। किसान जब दिल्ली की ओर बढ़े थे तो पहले हरियाणा की बीजेपी सरकार और फिर केंद्र सरकार ने उन्हें रोक दिया था।
हरियाणा और पंजाब से आने वाले किसान सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर डेरा डालकर बैठ गए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान गाजीपुर बॉर्डर पर राशन-पानी लेकर आ गए थे।
किसानों का आंदोलन इतना जबरदस्त था कि साल भर हिंदुस्तान से लेकर दुनिया के कई देशों की मीडिया में इसकी अच्छी-खासी गूंज रही थी और उस दौरान भाजपा के तमाम नेताओं को किसानों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था।
अंत में थक-हारकर मोदी सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था।

पंजाब-हरियाणा में तैयारी कर रहे किसान
ताजा हालात यह हैं कि पंजाब के गांवों में एक बार फिर किसानों ने अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियों को तैयार करना शुरू कर दिया है। इन ट्रैक्टर-ट्रालियों में लगभग छह माह तक का राशन और दूसरे जरूरी सामानों को रखा गया है। पंजाब से लगते हुए ही दूसरे कृषि प्रधान राज्य हरियाणा में भी कुछ इसी तरह की तैयारी चल रही है।
पिछली बार किसान आंदोलन के दौरान किसानों की ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की सोशल मीडिया और टीवी पर काफी चर्चा हुई थी क्योंकि इन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को बेहद हाईटेक बनाया गया था और इनमें रेफ्रिजरेटर, कूलर, सोलर पैनल आदि लगे थे।
आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं किसान
शंभू और खनौरी बॉर्डर पर पिछले 5 महीने से डटे हुए हुए किसानों ने ऐलान किया है कि वे 17 और 18 जुलाई को अंबाला में डीसी और एसपी कार्यालय का घेराव करेंगे। इसके बाद 22 जुलाई को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बड़ा कार्यक्रम किया जाएगा और इसमें बुद्धिजीवियों और विपक्ष के नेताओं को बुलाया जाएगा।
हरियाणा के नरवाना में लघु सचिवालय के बाहर भी संयुक्त किसान मोर्चा के नेता धरने पर बैठे हैं। इस धरने पर पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि किसानों के विरोध के चलते भाजपा को लोकसभा चुनाव में 63 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।

हरियाणा चुनाव से पहले बीजेपी की मुसीबत
हरियाणा में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। बीजेपी सत्ता में लौटने के लिए एक के बाद एक तमाम बड़े ऐलान कर रही है लेकिन किसानों ने उसके लिए मुश्किलें खड़ी की हुई हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को किसान बेल्ट वाली सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा है। पिछले चुनाव में उसने रोहतक, सोनीपत और हिसार जैसी किसान राजनीति वाली सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उसे यहां हार मिली है। इसके साथ ही राजस्थान में भी बीजेपी को नुकसान हुआ है।
हरियाणा में किसान राजनीति काफी ताकतवर है और अगर किसान दिल्ली की ओर बढ़ते हैं तो निश्चित रूप से हरियाणा और केंद्र की मोदी सरकार को किसानों से निपटने में खासी मुश्किल आएगी। लोकसभा चुनाव के दौरान भी पंजाब और हरियाणा में बीजेपी के उम्मीदवारों का किसानों ने पुरजोर विरोध किया था।
