साल 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी टीम ने सुझाव दिया था कि वह राष्ट्रपति बन जाएं और प्रधानमंत्री का पद लाल कृष्ण आडवाणी को दे दें। लेकिन वाजपेयी का कहना था कि एक निवर्तमान प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में अच्छा संकेत नहीं होगा।

अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने अपनी किताब “The Reverse Swing” में यह किस्सा बताया है। अनुभवी पत्रकार अशोक टंडन 1998 से 2004 तक PMO (प्रधानमंत्री कार्यालय) में मीडिया-रिलेशन के प्रभारी थे। किताब में एक चैप्टर है “From the Author’s Personal Diary” इसमें टंडन ने PMO के दिनों के किस्सा लिखा है।

जब वाजपेयी को मिला राष्ट्रपति बनने का सुझाव

वाजपेयी को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के सुझावों को याद करते हुए टंडन लिखते हैं, “वाजपेयी की अपनी ही टीम ने उन्हें राष्ट्रपति बनने और प्रधानमंत्री पद लालकृष्ण आडवाणी के लिए छोड़ने का सुझाव दिया था, जिसे उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया।” बकौल टंडन, “वाजपेयी ने चेतावनी दी कि एक निवर्तमान प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में अच्छा संकेत नहीं होगा। यह एक बहुत ही खतरनाक मिसाल कायम करेगा।”

वाजपेयी का सुझाव सुनकर चौंक गए थे कांग्रेसी नेता

2002 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पीएम वाजपेयी का कार्यकाल खत्म होने में दो साल का समय था। वाजपेयी खुद तो राष्ट्रपति बनना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने कांग्रेस नेताओं को राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाने को लेकर आमंत्रित किया।

टंडन लिखते हैं, “मुझे याद है, सोनिया गांधी , प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए थे। वाजपेयी ने पहली बार आधिकारिक तौर पर यह खुलासा करके उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया कि एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को उतारने का फैसला किया है।”

वाजपेयी की बात सुनकर कुछ सेकंड के लिए एकदम सन्नाटा छा गया। थोड़ी देर बाद सोनिया गांधी बोलीं, “हम आपकी पसंद से चकित हैं। हमारे पास उनका सपोर्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हालांकि हम आपके प्रस्ताव पर चर्चा के बाद निर्णय लेंगे।”

अटकलें किसी और को लेकर थीं

बाद में समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भी कलाम को सपोर्ट कर दिया। किताब के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के सपोर्ट की घोषणा करते हुए कहा था, “डॉ. कलाम मेरी पसंद हैं।”

टंडन यह भी याद करते हैं कि कलाम के नाम की घोषणा से पहले अटकलें थीं कि एनडीए 2002 के चुनाव में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. पीसी अलेक्जेंडर को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बना सकती है।

क्या पहले अलेक्जेंडर ही वाजपेयी की पसंद थे?

टंडन ने अपनी किताब में लिखा है, “मैं वाजपेयी के PMO में था। कुछ प्रभावशाली लोग व्यक्तिगत स्तर पर डॉ. अलेक्जेंडर के संपर्क में थे और उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना चाहते थे। ऐसा लग रहा था, वे ये सब वाजपेयी के कहने पर कर रहे हों।”

टंडन लिखते हैं, “वे वाजपेयी को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि ईसाई धर्मावलंबी डॉ. अलेक्जेंडर को मैदान में उतारने से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को शर्मिंदगी होगी और एक तरह से भविष्य में उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि देश ना तो ईसाईयों को राष्ट्रपति बनाने का जोखिम नहीं उठा सकता है ना ही प्रधानमंत्री।”

अटल के पहली बार प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी है हैरान कर देने वाली

अटल ब‍िहारी वाजपेयी पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने थे। तब भाजपा लोकसभा चुनाव में 161 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेक‍िन बहुमत से काफी दूर थी। फ‍िर भी, तब के राष्‍ट्रपत‍ि शंकर दयाल शर्मा ने वाजपेयी को सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने की च‍िट्ठी पकड़ा दी थी। इस पर खुद वाजपेयी भी हैरान थे। पूरा क‍िस्‍सा पढ़ने के ल‍िए यहां क्‍ल‍िक करें।