Ram Mandir Consecration Ceremony: विश्व हिंदू परिषद (VHP) के पूर्व अध्यक्ष और ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ के प्रमुख चेहरों में से एक रहे प्रवीण तोगड़िया की अब कम चर्चा होती है। तोगड़िया कभी हिंदुत्ववादी अभियानों के अगुआ हुआ करते थे। संघ, भाजपा और VHP के लोग उन्हें ‘डॉक्टर साहब’ कहा करते थे।
रुतबा ऐसा की ज़ेड प्लस सिक्योरिटी मिली हुई थी। सड़क पर निकलते थे, तो उनके पीछे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के काफ़िले की तरह गाड़ियों का हुजूम चलता था। पुलिस की चार-पांच गाड़ियां, एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड तोगड़िया की सेवा में साथ चलती थीं।
मंदिर आंदोलन के दौरान तो यह नाम लगभग हर रोज सुर्खियां बनाता था। अब जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का पहला चरण लगभग पूरा होने को है, 22 जनवरी, 2024 को ‘रामलला’ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है, तो तोगड़िया सिर्फ कार्यक्रम का निमंत्रण पत्र स्वीकार करने के लिए अखबारों के कोने में सिंगल कॉलम की खबर बनते हैं।
तोगड़िया को निमंत्रण भी उस बयान के दो दिन बाद मिला, जिसमें उन्होंने कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किए जाने की बात कही थी। बीते शुक्रवार (29 दिसंबर) को एक बयान में आरएसएस ने कहा कि उनके सदस्य शैलेशभाई पटेल और वीएचपी गुजरात के सचिव अशोकभाई रावल ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की ओर से तोगड़िया को कार्यक्रम में आमंत्रित किया है।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित 30 दिसंबर के ‘गुजरात कॉन्फिडेंशियल’ के मुताबिक, श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल तोगड़िया को ‘आमने-सामने’ की एक मीटिंग में निमंत्रण दिया गया। उन्होंने खुशी से निमंत्रण स्वीकार किया और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को आभार व्यक्त किया।
एक कैंसर सर्जन, जो हिंदू हृदय सम्राट ताज चाहता था
कभी अहमदाबाद के कांकरिया में लगने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में प्रवीण तोगड़िया और नरेंद्र मोदी खाकी हाफ पैंट और सफेद शर्ट पहनकर एक साथ ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे …’ (संघ की प्रार्थना) गाया करते थे। दोनों दोस्त हुआ करते थे।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोस्ती शुरुआत 1978 में तब हुई, जब तोगड़िया मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपने गृह नगर से अहमदाबाद के बी.जे. मेडिकल कॉलेज पहुंचे। हिंदुत्ववादी विचारधारा की तरफ आकर्षित तोगड़िया पढ़ाई करने के साथ-साथ संघ की शाखा में भी जाने लगें। वहीं उनकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई। 80 के दशक में दोस्ती मजबूत हुई।
पढ़ाई पूरी करने और प्रैक्टिस शुरू के बाद भी तोगड़िया संघ से जुड़े रहे। कार्यक्रमों में आते-जाते रहे। साल 1985 में तोगड़िया को विश्व हिन्दू परिषद (VHP) में जिम्मेदारी मिली। हालांकि इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। तोगड़िया को जिम्मेदारी ठीक उस समय मिली, जब अहमदाबाद में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था।
खै़र, तोगड़िया वीएचपी में और मोदी संघ फिर भाजपा में आगे बढ़ते रहे। गुजरात में पहली बार भाजपा की सरकार बनाने में भी दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। राज्य सरकार में दोनों का जलवा था।
फिर आया 90 का दशक। मंदिर आंदोलन, जो पहले वीएचपी का मुख्य एजेंडा था, 1989 के बाद उसे भाजपा नेतृत्व देने लगी। हालांकि राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम के दौरान, प्रवीण तोगड़िया ने तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल के साथ मिलकर काम किया।
वरिष्ठ पत्रकार नंदिनी ओझा द वीक में लिखती हैं, “जैसे ही आंदोलन पूरे भारत में फैला ‘हिंदू हृदय सम्राट ताज’ के लिए नरेंद्र मोदी और प्रवीण तोगड़िया के बीच एक अनकही, अलिखित प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। आखिरकार, मोदी की जीत हुई।”
बीबीबी से जुड़े गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल ने अपनी एक रिपोर्ट में इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक डॉ. हरि देसाई के हवाले से लिखा है कि नरेंद्र मोदी और प्रवीण तोगड़िया दोनों ही बहुत महत्वाकांक्षी थे। दोनों का लक्ष्य प्रधानमंत्री बनना था। नरेंद्र मोदी सफल रहे। तोगड़िया पीछे छूट गए। इसी वजह से दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई।
मंदिर आंदोलन में क्या थी तोगड़िया की भूमिका?
कारसेवा में शामिल होने वाले गुजरात के लोगों की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक थी। तोगड़िया इसे अपनी मेहनत मानते हैं। वह इस मुद्दे को जनता तक भी ले गए लेकिन इसका फायदा भाजपा को मिला। साल 2019 में राम मंदिर-बाबरी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। इसके बाद द वीक की नंदिनी ओझा को दिए एक इंटरव्यू में तोगड़िया ने कहा था, “जिस राम मंदिर आंदोलन से मैं शुरू से जुड़ा रहा और अपने जीवन के लगभग 35 वर्षों का बलिदान दिया, उससे अयोध्या में राम मंदिर बनाने का 450 वर्षों का हिंदू सपना और संकल्प पूरा हुआ। मैं बहुत खुश हूं। यह ईश्वर के आशीर्वाद के कारण संभव हुआ।”
अपनी भूमिका के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था, “अशोक सिंघल जी, महंत रामचन्द्र परमहंस जी, महंत अवैद्यनाथ जी, मैं और कई अन्य लोगों ने इस संदेश और आंदोलन को पूरे भारत और दुनिया भर के अरबों हिंदुओं तक पहुंचाया। पहले यह सिर्फ अयोध्या और उत्तर प्रदेश तक ही सीमित था। हमने मिलकर भाषा, जाति और राज्य से परे हिंदू एकता को प्रेरित और निर्मित किया। उस समय तक, भारतीय राजनीति अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और हिंदू अपमान पर केंद्रित थी। हमने राजनीति की सोच की दिशा बदल दी। हमने भारत में अलगाववादी और जिहादी विचारधारा के खिलाफ खड़े होने का संकल्प उठाया।”
खुद ली थी बाबरी विध्वंस की जिम्मेदारी!
साल 2003 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रवीण तोगड़िया ने गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा और अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस में अपना हाथ लगभग स्वीकार किया था। मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “यह हम ही थे जिन्होंने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया था। यह हम ही थे जो गुजरात में सड़कों पर आए थे। लेकिन इस सत्याग्रह के दौरान एक भी पत्थर नहीं फेंका गया और कार्यकर्ताओं की इतनी बड़ी भीड़ होने के बावजूद कार्यक्रम शांतिपूर्ण रहा।” तोगड़िया ने यह प्रेस कॉन्फ्रेंस राजधानी दिल्ली में आयोजित वीएचपी के बड़े कार्यक्रम के समापन के मौके पर किया था।
वाजपेयी सरकार से नाराज रहे तोगड़िया
साल 2002 की बात है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। लालकृष्ण आडवाणी गृह मंत्री थे। उस वर्ष 15 मार्च को वीएचपी के तत्कालीन प्रमुख प्रवीण तोगड़िया अयोध्या में एक लाख ‘राम सेवकों’ के साथ इकट्ठा होना चाहते थे। वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान को दिए एक इंटरव्यू में तोगड़िया ने कहा था, “हम उस तारीख को अपनी कार्यशाला से नक्काशीदार पत्थर के स्तंभों को अयोध्या में आधिकारिक तौर पर अधिग्रहित 71 एकड़ भूमि के निर्विवाद हिस्से में ले जाएंगे।”
हालांकि केंद्र सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। इससे तोगड़िया नाराज थे। उन्होंने कहा था, “हम कोई रथयात्रा नहीं निकाल रहे हैं जैसा कि लालकृष्ण आडवाणी ने मस्जिद के विध्वंस से पहले किया था। मैं गृह मंत्री से पूछना चाहता हूं कि क्या राम सेवकों का आना उनकी रथयात्रा से ज्यादा खतरनाक है।”
जब शरत प्रधान ने उनसे इनती बड़ी संख्या में राम सेवकों को अयोध्या ले जाने को लेकर पूछा कि एक दिन में किसी इमारत को गिराना आसान हो सकता है, लेकिन क्या आप एक दिन में मंदिर बना सकते हैं?
जवाब में तोगड़िया ने कहा था, “मैं जानता हूं कि अयोध्या मंदिर एक दिन में नहीं बन सकता। पूरा विचार सरकार पर इस बात के लिए दबाव डालना है कि जिस तरह शाहबानो मामले में इस्लामी कानून की रक्षा के लिए कानून लाया गया था, उसी तर्ज पर राम जन्मभूमि को हिंदुओं को सौंपने के लिए एक कानून लाया जाए। ऐसा गुजरात के सोमनाथ मंदिर के मामले में किया गया था।”
साल 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। इसका कारण तोगड़िया ने मंदिर आंदोलन से दूरी बनाने को माना था। उन्होंने कहा था, “भाजपा ने 1993 से ही मंदिर आंदोलन से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। …भाजपा हार गई क्योंकि हिंदुओं ने मंदिर के मोर्चे पर ठगा हुआ महसूस किया। वास्तव में, भाजपा की किस्मत तब तय हो गई जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या के संतों की मांग को मानने से इनकार कर दिया, जिन्होंने 27 जनवरी को उनसे मुलाकात की थी, ताकि केवल तैयार पत्थर के स्तंभों को रखने के लिए निर्विवाद भूमि उन्हें सौंप दी जाए। अगर बीजेपी को 12 फीसदी वोट का नुकसान हुआ है तो निश्चित तौर पर अयोध्या के अलावा कोई और कारण नहीं है?”
“भाजपा ने वादा तोड़ा”
भाजपा पर वादा खिलाफी का आरोप लगात हुए तोगड़िया ने कहा था, “सबसे बड़ी बात यह थी कि जो 450 साल तक असंभव लगता था वह अचानक चार घंटे में हो गया जब बाबरी ढांचा गिरा। आरएसएस और भाजपा यह वादा करते रहे कि यदि संसद में बहुमत होगा तो सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर राम मंदिर बनाने का कानून पारित किया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव पारित किए गए, वादे दिए गए और इससे हिंदू अपने घरों से बाहर निकले, गोलियां खाईं, मरे, करियर, परिवार, पढ़ाई जैसी अपनी सभी सांसारिक चीजें छोड़ दीं। यह पूरे आंदोलन और असंख्य बलिदानों का आधार था। लेकिन, जब 2014 में उन्हें बहुमत मिला तो वादा पूरा नहीं हुआ। तीन तलाक बिल पास हो गया। लेकिन राम मंदिर के लिए कानून नहीं लाया गया। अब भी मंदिर का निर्माण वादे के मुताबिक सरकारी कानून से नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से होगा। मैं मंदिर के लिए खुश हूं। लेकिन यह कहना होगा कि टूटे वादों के कारण जीवन और आजीविका को बहुत नुकसान हुआ। यह दुखदायक है।”