Prashant Kishor Bihar politics 2024: कई राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर उर्फ पीके अब आधिकारिक रूप से राजनीति के मैदान में उतरने जा रहे हैं। आज ही वह अपने राजनीतिक दल को लॉन्च करेंगे। इससे पहले प्रशांत किशोर दो साल तक जन सुराज यात्रा के जरिए बिहार के गांवों, गलियों, खेतों-खलिहानों, शहरों-कस्बों की खाक छान चुके हैं।
जन सुराज यात्रा का बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर प्रचार भी हुआ। इस दौरान पीके ने कई बार कहा कि वह बिहार को गरीबी, बेरोजगारी के दलदल से बाहर निकालने के लिए राजनीति के मैदान में आए हैं। पीके कहते हैं कि बिहार अब जाति और धर्म के नाम पर वोट ना दे बल्कि विकास के मुद्दे पर अपने जनप्रतिनिधियों को चुने। बिहार में अगले साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव हैं। ऐसे में वक्त सिर्फ एक साल का है और सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति को बदल पाएंगे? क्या वह बिहार में स्थापित राजनीतिक दलों- आरजेडी, जेडीयू, बीजेपी के लिए कोई बड़ी चुनौती बन सकते हैं?
प्रशांत किशोर के साथ एक मजबूत पक्ष यह है कि वह बीजेपी, जेडीयू, कांग्रेस सहित कई दलों के लिए चुनावी रणनीति बना चुके हैं इसलिए वह इन राजनीतिक दलों के कामकाज के तरीके को समझते हैं।
आरजेडी, जेडीयू का दबदबा
बिहार में पिछले लगभग 35 सालों से आरजेडी और जेडीयू का दबदबा रहा है। आरजेडी ने लगातार 15 साल तक शासन किया तो जेडीयू ने कभी बीजेपी के साथ मिलकर और कभी आरजेडी के साथ मिलकर राज्य में सरकार चलाई। इसके अलावा बीजेपी भी राज्य में बड़ी राजनीतिक ताकत है। ऐसे में बिहार की बेहद कठिन सियासी पिच पर बैटिंग कर पाना प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगा।
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पीके ने सेट किया अपना चुनावी एजेंडा
प्रशांत किशोर ने जन सुराज यात्रा के दौरान बिहार की बदहाली को मुद्दा बनाया। उन्होंने लोगों से कहा कि बिहार के राजनीतिक दलों और नेताओं ने यहां की जनता का नहीं बल्कि अपने परिवारों का भला किया और अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया। प्रशांत किशोर का कहना है कि उनकी पार्टी बिहार से पलायन और बेरोजगारी से लेकर बिहार के पिछड़ेपन और राज्य की समस्याओं के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। इस तरह प्रशांत किशोर ने अपना चुनावी एजेंडा जरूर सेट कर दिया है कि उनकी पार्टी के पास बिहार के चुनाव के लिए क्या रोडमैप है।
नेता, नौकरशाह आए पीके के साथ
पिछले कुछ महीनों में कई बड़े नेताओं और नौकरशाहों ने प्रशांत किशोर का हाथ पकड़ा है। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री डीपी यादव, बीजेपी के पूर्व सांसद छेदी पासवान के अलावा बड़ी संख्या में पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी शामिल हैं।
जनता के मुद्दों पर बात कर रहे पीके
प्रशांत किशोर ने बिहार में शराबबंदी को बड़ा मुद्दा बनाया है। उनका कहना है कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वह तुरंत शराबबंदी को खत्म कर देंगे। बिहार में पिछले कुछ सालों में नकली शराब पीने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। राज्य में यह एक बड़ा मुद्दा है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी भी शराबबंदी को लेकर सवाल उठा चुके हैं। ऐसे ही बेरोजगारी, पलायन पर भी प्रशांत किशोर ने खुलकर बात की है।
लालू, नीतीश के शासन पर हमला
प्रशांत किशोर ने अपनी सभाओं में लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार के शासन पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि अगर इन नेताओं ने बिहार के विकास पर ध्यान दिया होता तो राज्य के लोगों की हालत इस कदर खराब नहीं होती। लेकिन सवाल यह है कि क्या बिहार के मतदाता पीके की बातों पर भरोसा करेंगे। क्या वे जिन राजनीतिक दलों को वोट देते आ रहे हैं, उन्हें भूलकर पीके के साथ आ जाएंगे?
सीएम पद के दावेदार नहीं
प्रशांत किशोर ने एक राजनीतिक समझदारी वाला फैसला यह लिया है कि उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है और वह बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। क्योंकि ऐसे सवाल उठे थे कि प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। प्रशांत किशोर ऐलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
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बिहार की राजनीति में जाति का फैक्टर
बिहार की राजनीति में जाति का फैक्टर सबसे ज्यादा है। प्रशांत किशोर भूमिहार जाति यानी सवर्ण समुदाय से आते हैं और ऐसे में यह सवाल जरूर उठता है कि क्या दलित-पिछड़े समुदाय के सियासी दबदबे वाले बिहार में लोग विकास के मुद्दे पर प्रशांत किशोर को वोट देंगे।
आरजेडी, जेडीयू के कोर वोट बैंक पर है निगाह
प्रशांत किशोर ने पिछले 2 सालों में आरजेडी के कोर वोट बैंक माने जाने वाले मुस्लिमों और यादवों को साधने की कोशिश की है। उन्होंने ऐलान किया था कि उनकी पार्टी बिहार में मुस्लिम समुदाय के 40 और महिलाओं और अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के 70 प्रत्याशियों को टिकट देगी। उन्होंने दावा किया कि लोग जाति व धर्म से ऊपर उठकर उन्हें वोट देंगे।
आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए ने इंडिया गठबंधन की तुलना में ऊंची जातियों (राजपूत, भूमिहार, कायस्थ और ब्राह्मण) और ईबीसी के उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट दिए जबकि इंडिया गठबंधन में एनडीए गठबंधन की तुलना में यादव, गैर-यादव ओबीसी, मुस्लिम और अनुसूचित जाति (SC) के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी अधिक रही।
2024 लोकसभा चुनाव में INDIA और NDA उम्मीदवारों में जाति-समूहों की हिस्सेदारी
जाति | INDIA गठबंधन में हिस्सेदारी (%) | NDA गठबंधन में हिस्सेदारी (%) |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग | 7.5 | 17.5 |
सामान्य | 12.5 | 32.5 |
मुस्लिम | 10 | 2.5 |
ओबीसी (गैर यादव) | 25 | 20 |
ओबीसी (यादव) | 27.5 | 12.5 |
एससी | 17.5 | 15 |
बिहार की राजनीति में आमतौर पर यही माना जाता है कि मुस्लिम और यादव समुदाय के वोट आरजेडी को मिलते हैं जबकि सवर्ण समाज का बड़ा तबका बीजेपी को वोट देता है। नीतीश कुमार को उनके कोर वोट बैंक कोइरी, कुर्मी के अलावा अति पिछड़ी जातियों और मुसलमानों का भी समर्थन हासिल होता रहा है।
प्रशांत किशोर के जातियों को साधने की राजनीति की वजह से निश्चित रूप से एनडीए और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में हलचल जरूर है।
तमाम बड़े राजनीतिक दलों के लिए न सिर्फ चुनावी स्क्रिप्ट तैयार करने वाले बल्कि उन्हें जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर की विधानसभा चुनाव में बड़ी परीक्षा होनी है। देखना होगा कि प्रशांत किशोर इस परीक्षा में कितने सफल होते हैं?