देश के द‍िवंगत पूर्व राष्‍ट्रपत‍ि प्रणब मुखर्जी का 11 द‍िसंबर को जन्‍मद‍िन होता है। 2023 के इस मौके पर उनके बारे में कई बातें जगजाह‍िर हुई हैं, एक क‍िताब ‘Pranab, My Father: A Daughter Remembers’ के जर‍िए। क‍िताब ल‍िखी है उनकी बेटी शर्म‍िष्‍ठा मुखर्जी ने और इसे प्रकाश‍ित क‍िया है रूपा पब्‍ल‍िकेशंस ने। क‍िताब में 31 अक्‍तूबर, 1984 को हुई इंद‍िरा गांधी की हत्‍या का प्रसंग भी है।

इंद‍िरा गांधी की जब हत्‍या हुई उस वक्‍त शर्म‍िष्‍ठा कॉलेज (सेंट स्‍टीफंस, द‍िल्‍ली) में पढ़ रही थीं। घटना के वक्‍त वह लाइब्रेरी में थीं। एक दोस्‍त ने उन्‍हें इंद‍िरा पर हमले की खबर दी और तुरंत घर के ल‍िए न‍िकलने के ल‍िए कहा। ऑटो में उसने अपने साथ शर्म‍िष्‍ठा को घर तक छोड़ा। रास्‍ते में जगह-जगह लोगों के झुंड को उन्‍होंने देखा और तनावपूर्ण माहौल का अहसास उन्‍हें तभी हो गया था।

शर्म‍िष्‍ठा जब घर पहुंचीं तो उनकी मां बेतहाशा रो रही थीं। उनकी आंखों के आंसू तभी सूखे जब अगली सुबह प्रणब दा घर पहुंचे। 31 अक्‍तूबर की रात वह घर नहीं आए थे। उस द‍िन वह राजीव गांधी के साथ एक रैली के ल‍िए पश्‍च‍िम बंगाल में थे। इंद‍िरा पर हमले की खबर म‍िलते ही सारे कार्यक्रम रद्द कर वे द‍िल्‍ली वापसी करने लगे। रैली कांत‍ि में थी। वहां से कार में कोलाघाट पहुंचे। यह सफर दो घंटे का था। राजीव गांधी खुद कार चलाना चाहते थे, लेक‍िन प्रणब मुखर्जी ने उन्‍हें रोका।

राजीव गांधी कार में आगे की सीट पर बैठे। प्रणब मुखर्जी, गनी खान और राजीव के पीएसओ (न‍िजी सुरक्षा अध‍िकारी) पीछे की सीट पर बैठे। गाड़ी में समाचार सुनने के ल‍िए उन्‍होंने रेड‍ियो ऑन कर बीबीसी स्‍टेशन लगाया। खबर म‍िली क‍ि इंद‍िरा पर 16 गोल‍ियां बरसाई गई हैं। राजीव ने अपने पीएसओ से पूछा- ये गोल‍ियां क‍ितनी घातक होती हैं। पीएसओ ने बताया- बहुत ज्‍यादा। राजीव ने पीछे की ओर देखा और पूछा- क्‍या मेरी मां बच जाएंगी?

अचानक गांधी परिवार में प्रणब मुखर्जी को शक की नजर से क्यों देखा जाने लगा?

कोलाघाट में कोलकाता तक ले जाने के ल‍िए चॉपर तैयार था। कोलकाता से इंड‍ियन एयरलाइंस के व‍िशेष व‍िमान से वे द‍िल्‍ली लौटे। वहां व‍िमान में उमा शंकर दीक्ष‍ित सह‍ित चार-पांच और लोग सवार हुए। व‍िमान के उड़ते ही राजीव गांधी कॉकप‍िट में पहुंच गए। कुछ ही समय में वहां से लौटे और सबको मनहूस खबर दी- मां नहीं रहीं।

शर्म‍ि‍ष्‍ठा ल‍िखती हैं क‍ि इस घटना के बाद आम तौर पर ऐसा माना गया क‍ि इंद‍िरा सरकार में नंबर दो होने की वजह से वह अंतर‍िम प्रधानमंत्री बनने के ल‍िए दावा ठोंकेगे और इसी वजह से उस घटना के बाद गांधी पर‍िवार से प्रणब दा के र‍िश्‍तों को शक की नजर से देखा जाने लगा। वह यह भी बताती हैं क‍ि इसमें कोई सच्‍चाई नहीं थी और राजीव (संभवत: सोन‍िया गांधी भी) इसे जानते थे।

प्रणब मुखर्जी के नोट्स से जानिए विमान में क्या-क्या हुआ था?

कोलकाता से द‍िल्‍ली लौटते हुए व‍ि‍मान में क्‍या हुआ, शर्म‍िष्‍ठा ने प्रणब मुखर्जी के नोट्स के हवाले से इसका भी ब्‍योरा द‍िया है। प्रणब के इन नोट्स के हवाले से वह ल‍िखती हैं- राजीव ने जैसे ही इंद‍िरा की मौत की खबर दी, प्रणब की आंखों से आंसू न‍िकलने लगे थे। कुछ देर बाद उन्‍होंने खुद को संभाला। राजीव वापस कॉकप‍िट में चले गए थे।

व‍िमान में पूरी तरह खामोशी थी। यह खामोशी बलराम जाखड़ ने तोड़ी। उन्‍होंने पूछा- पहले दो बार गुलाजारी लाल नंदा को अंत‍र‍िम प्रधानमंत्री बनाए जाने का आधार क्‍या रहा था? क्‍या उनके पास गृह मंत्रालय का होना? प्रणब मुखर्जी ने कहा- मंत्रालय से आधार तय नहीं होता, शायद कैब‍िनेट में उनकी नंबर दो की हैस‍ियत के आधार पर उन्‍हें बनाया गया होगा। उमा शंकर ने भी इस पर सहम‍त‍ि जताई। इसके बाद जाखड़, दीक्ष‍ित और गनी खान व‍िमान के प‍िछले ह‍िस्‍से में चले गए।

थोड़ी देर बाद जाखड़ ने प्रणब को भी बुलाया और राजीव गांधी को पीएम बनाए जाने के बारे में उनकी राय पूछी। प्रणब ने तुरंत हामी भर दी। कुछ और चर्चा के बाद प्रणब को ही राजीव गांधी से बात करने के ल‍िए कहा गया, जो उन्‍होंने क‍िया भी।

राजीव गांधी के मंत्रालय में प्रणब मुखर्जी को नहीं मिली जगह, लेकिन क्यों?

बाद में 404 सीटें जीत कर कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्‍ता में आई और 31 द‍िसंबर, 1984 को राजीव गांधी दोबारा पीएम बने। इस बार उन्‍होंने प्रणब मुखर्जी को मंत्र‍िमंडल में नहीं रखा। जबक‍ि करीब एक महीना पहले ही जब प्रणब मुखर्जी ने राजीव गांधी से साफ-साफ पूछ ल‍िया था क‍ि क्‍या आप मुझे व‍ित्‍त मंत्रालय से हटाना चाहते हैं, तो राजीव बोले थे- व‍ित्‍त मंत्री के रूप में आपकी जगह लेने लायक और है ही कौन? यही नहीं, शपथ ग्रहण से दो द‍िन पहले (29 द‍िसंबर) भी जब राजीव गांधी से मुलाकात हुई तो उनकी ओर से प्रणब को मंत्री नहीं बनाने का कोई संकेत नहीं द‍िया गया था।

यही नहीं, 27 द‍िसंबर को पीसी अलेक्‍जेंडर ने मुखर्जी के साथ मीट‍िंंग में अगले साल के बजट पर चर्चा की थी। लेक‍िन, 29 और 31 द‍िसंबर के बीच ऐसा क्‍या हुआ जो प्रणब मुखर्जी को सरकार में शाम‍िल नहीं क‍िया गया, यह उनके ल‍िए रहस्‍य ही रहा।