जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार के बीच एक दिलचस्प तथ्य यह सामने आया है कि चुनाव मैदान में ऐसे राजनीतिक दल भी हुंकार भर रहे हैं, जिनकी वहां की राजनीति में कोई सक्रियता नहीं रही है। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि वे इस केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?
इस विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी संख्या बहुत बढ़ गई है। इसके अलावा एक नई बात यह भी है कि लगभग दो दर्जन गुमनाम राजनीतिक दल भी चुनाव मैदान में उतरे हैं और इनमें से कई तो जम्मू-कश्मीर के बाहर रजिस्टर्ड हैं।
फर्रुखाबाद में पंजीकृत दल ने दो उम्मीदवार उतारे
जैसे- उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में पंजीकृत एक राजनीतिक दल जिसका नाम अनारक्षित समाज पार्टी है और जो जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ने की बात कहता है, उसने भी जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
इसी तरह संपूर्ण भारत क्रांति पार्टी नई दिल्ली के विकासपुरी में रजिस्टर्ड है जबकि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का पंजीकृत पता यूपी के कानपुर का है।
उत्तर भारत में सक्रिय लेकिन जम्मू-कश्मीर में बिलकुल अनजान कुछ और राजनीतिक दल भी विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे दलों में राष्ट्रीय लोकदल, रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान) शामिल हैं। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने भी यहां अपना सदस्यता अभियान शुरू किया है।
गुमनाम राजनीतिक दल भी लड़ रहे चुनाव
ऐसे राजनीतिक जो रजिस्टर्ड नहीं हैं, लगभग गुमनाम हैं और जिन्होंने अधिकृत रूप से जम्मू-कश्मीर का पता दिया है और चुनाव लड़ रहे हैं, इनमें गरीब डेमोक्रेटिक पार्टी, अमन और शांति तहरीक-ए-जम्मू और कश्मीर; ऑल जम्मू एंड कश्मीर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी; राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी; जम्मू और कश्मीर ऑल अलायंस डेमोक्रेटिक पार्टी और जम्मू और कश्मीर नेशनलिस्ट पीपल्स फ्रंट का नाम शामिल है।
पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर बताते हैं कि इन गुमनाम राजनीतिक दलों की वजह से चुनावों की विश्वसनीयता पर असर पड़ रहा है और ऐसा कुछ समय से हो रहा है। वह कहते हैं कि कोई इन राजनीतिक दलों को स्पांसर कर रहा है क्योंकि अचानक से ही कुछ कुछ राजनीतिक दल सामने आ जाते हैं। नईम अख्तर कहते हैं कि राम विलास पासवान की पार्टी और जद (यू) जैसे राजनीतिक दल भी यहां चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि लोग यहां इनके बारे में ये तक नहीं जानते कि ये कौन हैं।
अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद यह पहला मौका है जब इस केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं।
उमर बोले- चुनाव में बीजेपी ने की है ‘डील’
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में एक सवाल राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के बयान के बाद भी खड़ा हुआ है। सवाल यह है कि क्या बीजेपी की चुनाव में वाकई कुछ राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ ‘डील’ हुई है?
उमर अब्दुल्ला ने ऐसी ‘डील’ होने का दावा किया है और कहा है कि ‘डील’ किए जाने के पीछे मकसद यह है कि ऐसा करके जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई जा सके। उमर अब्दुल्ला जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वहां से सात निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। उमर ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अपनी पार्टी और पीपल्स कांफ्रेंस पर चुप्पी को लेकर भी सवाल उठाया है।
मुझे टारगेट किया जा रहा: उमर
उमर अब्दुल्ला ने इस बात पर हैरानी जताई है कि जेल में बंद अलगाववादी नेता सरजन अहमद वागे ने उनके खिलाफ गांरदबल सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया है। याद दिलाना होगा कि उमर अब्दुल्ला को लोकसभा चुनाव में नेता और जेल से ही चुनाव लड़े इंजीनियर राशिद ने हराया था। उमर अब्दुल्ला का कहना है कि वे लोग सिर्फ एक शख्स को टारगेट करना चाहते हैं और वह गांदरबल सीट से नेशनल कांफ्रेंस का उम्मीदवार हैं।
निर्दलीय उम्मीदवारों का आंकड़ा बढ़ा
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के लिए अभी तक दो चरणों में कुल 330 लोगों ने नामांकन किया है और इसमें से निर्दलीय उम्मीदवारों का आंकड़ा 145 यानी 44% है।
यह 2014 में जब पिछली बार विधानसभा के चुनाव हुए थे, उससे काफी ज्यादा है। तब इन विधानसभा क्षेत्रों में 278 उम्मीदवारों में पर्चा भरा था और इसमें निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या 87 यानी 31% था। 2008 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 37% था।