विपक्षी नेताओं से लेकर ताकतवर नौकरशाह और बिजनेसमैन तक… प्रधानमंत्री कार्यालय यानी PMO में बाकायदा ऐसे लोगों पर डॉजियर (सीक्रेट फाइल) रखी जाती है। इसकी शुरुआत इंदिरा गांधी के जमाने में ही हुई थी। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी ताजा किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’(How Prime Ministers Decide) में यह दावा किया है।
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी लिखती हैं कि कई प्रधानमंत्रियों ने तो खुद स्वीकार किया है कि PMO में विरोधियों के खिलाफ डॉजियर रखा जाता है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी शामिल रहे हैं। चौधरी लिखती हैं कि जब मैंने चंद्रशेखर से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा था कि, ‘हां, इस तरह के डॉजियर हैं लेकिन मैंने कभी उनका इस्तेमाल नहीं किया। मुझे सिर्फ आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) के जरिए सूचनाएं मिलती रहती हैं।’
बकौल नीरजा चौधरी, चंद्रशेखर ने उनसे यह भी कहा था- मुझे बताया गया है कि इंदिरा गांधी के जमाने से इन फाइलों का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया… इनकी मौजूदगी ही काफी है।
ताले के अंदर रखी जाती है सीक्रेट फाइल
नीरजा चौधरी लिखती हैं कि पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में राज्य मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी भी इसकी तस्दीक करते हैं। वह कहते हैं कि पीएमओ में नेताओं से लेकर ताकतवर ब्यूरोक्रेट्स और तमाम विरोधियों के खिलाफ फाइलें होती हैं। इन फाइलों (डॉजियर) को ताले के अंदर रखा जाता है। बकौल चतुर्वेदी, इन फाइलों में विरोधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार से लेकर महिलाओं से संबंध और हर तरह की गड़बड़ी की जानकारी होती है।
इंदिरा गांधी के जमाने में शुरुआत
नरसिम्हा राव की सरकार में पीएमओ में मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी ने नीरजा चौधरी को बताया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय में इस तरह के डॉजियर रखने की शुरुआत इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। तब रॉ (RAW) यह काम किया करती थी। इंदिरा सरकार ने रॉ को विरोधियों से जुड़ी सारी जानकारी जुटाने का जिम्मा दिया था। इन्हें इकट्ठा रखने से उन्हें मदद मिलती थी क्योंकि इंदिरा गांधी हमेशा अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर सशंकित रहती थीं।
नीरजा चौधरी लिखती हैं कि इंदिरा गांधी के बाद भी PMO में विपक्षी नेताओं, नौकरशाह, बिजनेसमैन और ताकतवर लोगों के खिलाफ डॉजियर रखने की परंपरा जारी रही। बाद के कई प्रधानमंत्रियों ने इन डॉजियर को अपने विरोधियों पर लगाम लगाने के हथियार के तौर पर देखा।