बिहार की जड़ें सैकड़ों वर्षों पुरानी हैं, पुराणों में इसका जिक्र है, सुनहरे अक्षरों में इसका इतिहास है और संस्कृति ऐसी कि पूरी दुनिया तक तक इसका विस्तार हुआ है। बिहार की संस्कृति ही इसकी सबसे बड़ी धरोहर है। बिहारी होना गर्व की अनुभूति है, बिहारी सामान का साथ होना अपनेपन का अहसास है। आज ऐसी ही एक धरोहर की चर्चा करनी है, जो बिहार में संस्कृति, फैशन और राजनीति तीनों का ही एक बड़ा प्रतीक है। हम बात कर रहे हैं गमछे की, वो गमछा जो सादगी के साथ-साथ मेहनतकश की सबसे बड़ी पहचान है। किसान के कंधों पर गमछा, शादी में कई रीतियों में इस्तेमाल होता गमछा और राजनीति में भी पॉलिटिकल मैसेजिंग के ही काम आता गमछा।
पीएम मोदी ने लहराया गमछा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को जब मुजफ्फरपुर पहुंचे, हेलिकॉप्टर से उतरते ही उन्होंने करीब 30 सेकंड तक अपना गमछा लहराया, जनता का अभिवादन किया। उनका अंदाज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, चर्चा का विषय भी बना, लेकिन बिहार के लोगों के लिए, बिहार की संस्कृति में तो ऐसा काफी आम है। साधारण शब्दों में कहें तो गमछा पूरे उत्तर भारत में ही किसान और मजदूर वर्ग की पहचान बना हुआ है। ऐसे में पीएम मोदी का गमछा लहराना और उसके पीछे की पॉलिटिकल मैसेजिंग समझना मुश्किल नहीं है।
गमछा शब्द कहां से आया है?
गमछा एक ऐसा शब्द है जिसका जिक्र वेद पुराण तक में हुआ है। बहस इस बात को लेकर रहती है कि यह एक संस्कृत शब्द है या फिर बंगाली। संस्कृत के जानकार मानते हैं कि एक शब्द होता है अङ्गोञ्छन या अङ्गोञ्छ। इसका मतलब ही होता है अंग पोंछने वाला कपड़ा। हिंदी में ही इस संस्कृत शब्द को अंगोछा कहा जाता है। अंगोछा ही आगे चलकर कई जगह गोंछा के रूप में प्रख्यात हुआ तो कई जगह इसे सिर्फ गमछा कहा गया। बंगाली भाषा के जानकार मानते हैं कि इस शब्द का जन्म गामुसा शब्द से हुआ है। बंगाली में गामुसा का भी मतलब होता है शरीर पोंछने वाला वस्त्र।
बिहार में आर्थिक क्रांति लाया गमछा
बिहार के लिहाज से तो गमछा एक आर्थिक क्रांति भी कही जा सकती है। राज्य की हैंडलूम इंडस्ट्री काफी बड़ी है, बिहार सरकार की वेबसाइट से पता चला है कि वर्तमान में 3.66 लाख बुनकर इस इंडस्ट्री में कार्यरत हैं, यहां भी गमछों का उद्योग काफी निर्णायक है। गया जिला तो गमछों का सबसे बड़ा बाजार कहा जा सकता है। यहां एक इलाका है- पटवाटोली। अकेले यहां पर 10 हजार से ज्यादा पावर लूम संचालित हो रहे हैं, रोज के लाखों गमछे तैयार हो रहे हैं।
बिहार की संस्कृति का हिस्सा है गमछा
जो गमछा बिहार में व्यापार का इतना बड़ा साधन है, अलग-अलग पर्व पर यही इस राज्य की संस्कृति को भी दर्शा जाता है। हाल ही में संपन्न हुए छठ पर्व में भी गमछे का प्रयोग देखने को मिला था। पुरुषों ने धोती के साथ गमछे को भी धारण किया था। इसे पवित्रता और सादगी दोनों से जोड़कर देखा गया। पितृपक्ष श्राद्ध, मकर संक्रांति, और दशहरा जैसे त्योहारों के वक्त भी गमछा धारण किया जाता है। इसे प्राचीन काल से ही धार्मिक शुद्धता के रूप में माना गया है। शादी के दौरान भी बिहार में पूजा या द्वारचार के वक्त दूल्हे के सिर पर गमछा बांधा जाता है। इसे सिर्फ शुभ ही नहीं बल्कि सुरक्षा का प्रतीक भी कहा जाता है। कन्यादान के दौरान भी पिता द्वारा इसी गमछे का प्रयोग होता है।
भोजपुरी सिनेमा में पॉपुलर है गमछा
वैसे गमछे ने मनोरंजन की दुनिया में स्टार्डम का स्टैटस भी हासिल किया है। भोजपुरी स्टार ने जब-जब अपनी फिल्मों में गमछा डाला है, इसे मर्दानगी का रूप दिया गया है। मनोज तिवारी से लेकर खेसारी लाल यादव तक, निरहुआ से लेकर पवन सिंह तक, जब-जब स्क्रीन पर गमछा पहने ये सुपरस्टार आए हैं, गर्दा ही उड़ा है। यूपी-बिहार वाला ये सामान्य गमछा बॉलीवुड में भी एंट्री कर चुका है। यह अलग बात है कि वहां आज भी ज्यादातर फिल्मों में गरीबी, मजदूरी के साथ गमछे को जोड़ा गया है। कुछ फिल्मों में डाकुओं का किरदार दिखाने के लिए भी गमछे का प्रयोग हो जाता है।
नेताओं की पहचान है गमछा
अब संस्कृति में पवित्रता, फिल्मों में मर्दानगी और राजनीति में सम्मान के साथ गमछे को जोड़ा गया है। गले में जब तक कोई गमछा ना डाल ले, उसे नेता तक नहीं माना जाता। भारत में ज्यादातार राज्यों में, खासकर यूपी-बिहार में नेताओं ने इस गमछे को काफी संजोकर रखा है। पार्टी में किसी का स्वागत करना हो, गमछा पहना दिया जाता है, खुद को गरीबों, पिछड़ों, किसानों का मसीहा दिखाना हो, गमछा लहरा दिया जाता है। बिहार में भी पीएम मोदी ने जब 30 सेकेंड तक गमछा लहराया, जहां संदेश पहुंचना चाहिए था, वहां तक जरूर पहुंच गया।
बिहार की आन-बान-शान है गमछा
वैसे नेता ही नहीं, उनके समर्थक, फिर चाहे कार्यकर्ता हों या फिर आम जनता, उन्होंने भी इस गमछे का खूब इस्तेमाल किया है। बीजेपी वाले के पास भगवा गमछा, राजद के समर्थक के पास हरा, कोई युवा जनसुराज का पीला गमछा भी ओढ़े दिख जाएगा। यानी कि एक गमछा बिहार की फिल्मी दुनिया में भी छाएगा, संस्कृति का हिस्सा भी रहेगा और राजनीति का प्रतीक तो हमेशा से रहा ही है। यही है बिहार की धरोहर, उसकी आन-बान और शान।
