चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लोग अदालतों में चल रहे मामलों से इस कदर तंग आ जाते हैं कि वह सिर्फ सेटलमेंट चाहते हैं। सीजेआई लोक अदालतों की भूमिका पर बात कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के 75 साल पूरे होने के मौके पर सप्ताह भर चलने वाली विशेष लोक अदालत का आयोजन किया गया।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोक अदालतों को इसीलिए बनाया गया था कि लोगों को न्याय मिल सके।
सीजेआई ने कहा, ‘यह (लोक अदालत) जजों की, जजों के लिए, जजों द्वारा संस्था नहीं है। यहां बहुत कुछ है जो हम एक-दूसरे से सीखते हैं। हमने वकीलों से सीखा कि छोटे-छोटे मुद्दों पर उनकी कितनी पकड़ है, सच कहूं तो मुझे इस बारे में अच्छी तरह पता है।

सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘लोग कोर्ट के मामलों से इतने त्रस्त हो जाते हैं कि वह कोई भी सेटलमेंट चाहते हैं, बस कोर्ट से दूर करा दीजिए।’ चंद्रचूड़ ने कहा कि यह प्रक्रिया एक सजा की तरह है और जजों के लिए चिंता का विषय है।
चंद्रचूड़ ने कहा कि जब हमने लोक अदालत के लिए पैनल का गठन किया था, तब हमने इस बात को तय किया था कि हर पैनल में दो जज होंगे, मेरे मामले में तीन जज होंगे और बार के दो सदस्य होंगे। ऐसा करने के पीछे मकसद यह था कि एडवोकेट्स को संस्था पर ओनरशिप मिले। सीजेआई ने कहा कि लोक अदालत कोई ऐसी संस्था नहीं है जो केवल जजों द्वारा चलाई जाती है।
उन्होंने कहा कि उन्हें लोक अदालतों का गठन करते समय बार और बेंच के साथ ही सभी से जबरदस्त समर्थन और सहयोग मिला था।

…यह दिल्ली का सुप्रीम कोर्ट नहीं
सीजेआई ने कहा कि उन्हें वास्तव में ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भले ही दिल्ली में हो लेकिन यह दिल्ली का सुप्रीम कोर्ट नहीं है, यह भारत का सुप्रीम कोर्ट है। जब से मैंने सीजेआई का पद संभाला है, हमने रजिस्ट्री में देश भर से अफसरों को लाने की कोशिश की है, वे लोग अपने साथ विविधता और समावेश भी लाते हैं।
सीजेआई ने कहा कि विशेष लोक अदालत को शुरुआत में 7 जजों की बेंच के साथ शुरू किया गया था और हमें इस बात का संदेह था कि हम लोक अदालतों के मामले में सफल होंगे। लोक अदालत का मतलब लोगों के घर तक इंसाफ को पहुंचाना है और लोगों को इस बात का भरोसा दिलाना है कि हम उनके साथ रहेंगे।

क्या होती है लोक अदालत?
लोक अदालत वह मंच है, जहां अदालतों में चल रहे विवाद या फिर लंबित मामलों का या फिर शुरुआती चरण में चल रहे मामलों का बेहतर ढंग से निपटारा किया जाता है या फिर इन मामलों में समझौता करा दिया जाता है। इस तरह के समझौते, जिनमें दोनों पक्ष सहमत हों, इनके खिलाफ किसी तरह की कोई अपील भी दायर नहीं की जा सकती।