गुजरात में क्षत्रिय समाज इन दिनों बीजेपी से बेहद नाराज है। क्षत्रिय समाज के तमाम संगठनों ने केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला के खिलाफ अपनी तलवारें म्यान से बाहर निकाल ली हैं और पार्टी को चेतावनी दी है कि वह रुपाला से अपना टिकट वापस ले वरना चुनाव में उसे गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। क्षत्रिय समाज की इस नाराजगी की वजह पुरुषोत्तम रुपाला का बीते दिनों दिया गया एक बयान है। रुपाला को बीजेपी ने राजकोट से उम्मीदवार बनाया है।
क्या कहा था रुपाला ने?
पुरुषोत्तम रुपाला ने कुछ दिन पहले एक सभा में कहा था कि ब्रिटिश शासन के दौरान राजाओं और महाराजाओं ने भी अपना सिर झुका दिया था और उनके साथ रोटी-बेटी के संबंध बना लिए थे लेकिन दलित समुदाय से आने वाले रुखी समाज ने अपना सिर नहीं झुकाया। इसके लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं और यही वह बात थी जिसने सनातन धर्म को जीवित रखा…जय भीम।
सौराष्ट्र में जोरदार विरोध
केंद्रीय मंत्री का यह बयान जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो क्षत्रिय समाज के लोग मैदान में उतर आए। गुजरात में विशेषकर सौराष्ट्र के इलाके में क्षत्रिय समाज की बड़ी आबादी है और यहां पर रुपाला के बयान के खिलाफ जबरदस्त विरोध देखा जा रहा है। भारत की आजादी के वक्त सौराष्ट्र में 100 से ज्यादा छोटे-बड़े राजघराने थे।
बीते दिनों में क्षत्रिय समुदाय से जुड़े लोगों ने साबरकांठा, सुरेंद्रनगर, जूनागढ़, अहमदाबाद, सूरत और कुछ जगहों पर जोरदार प्रदर्शन किया है। केशोद और राजकोट में रुपाला के पुतले फूंके जा चुके हैं। आने वाले दिनों में राजकोट में क्षत्रिय समुदाय के नेताओं ने रुपाला के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन करने की योजना बनाई है।
दबाव के बाद वापस लिया बयान
क्षत्रिय समाज के पुरजोर विरोध के बाद पुरुषोत्तम रुपाला ने एक वीडियो जारी कर कहा कि वह अपने बयान को वापस लेते हैं। उन्होंने कहा कि उनका क्षत्रिय समुदाय या किसी राजघराने का अपमान करने का कोई इरादा नहीं था और वह सिर्फ दूसरे धर्म के लोगों के द्वारा किए गए अत्याचार के बारे में बताना चाहते थे लेकिन क्षत्रिय समुदाय का गुस्सा इसे शांत नहीं हुआ।
केवल गुजरात ही नहीं इसके बाहर भी क्षत्रिय समुदाय ने पुरुषोत्तम रुपाला के बयान के खिलाफ जोरदार ढंग से आवाज उठाई है। राजस्थान में बीजेपी से जुड़े क्षत्रिय समुदाय के नेता राज शेखावत ने एक वीडियो जारी कर कहा है कि वह पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफा देते हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व ने पुरुषोत्तम रुपाला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।
क्षत्रिय समुदाय का वोट गुजरात और राजस्थान के बाहर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदि में भी है। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को पता है कि अगर क्षत्रिय समुदाय की नाराजगी को दूर नहीं किया गया तो पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी
क्षत्रिय समुदाय के लगातार विरोध के बाद हालात इस कदर खराब हो गए कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल को खुद राजकोट आना पड़ा। उन्होंने क्षत्रिय समुदाय के नेताओं के विरोध को शांत करने की कोशिश की लेकिन समुदाय के नेता चाहते हैं कि बीजेपी पुरुषोत्तम रुपाला से अपना टिकट वापस ले।
पटेल और क्षत्रिय समुदाय
पुरुषोत्तम रुपाला पटेल समुदाय से आते हैं और सौराष्ट्र के इलाके में पटेल और क्षत्रिय समुदाय के बीच जातीय तनाव की स्थिति रही है। साल 1988 में पटेल समुदाय से आने वाले कांग्रेस के विधायक पोपट श्रोत्रिय की क्षत्रिय समुदाय के एक शख्स ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसी साल कैबिनेट मंत्री वल्लभभाई पटेल की हत्या में भी क्षत्रिय समुदाय के व्यक्ति का नाम आया था। इसे लेकर भी जातीय तनाव की स्थिति बनी थी।
कौन हैं पुरुषोत्तम रुपाला?
पुरुषोत्तम रुपाला के बारे में बताना होगा कि वह बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं और लगभग 5 दशक से बीजेपी से जुड़े हुए हैं। वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और किसान मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक रहे हैं। रुपाला आंध्र प्रदेश और गोवा के प्रभारी भी रहे हैं। इसके अलावा वह तीन बार अमरेली विधानसभा से विधायक रहे हैं और तीन बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें कृषि, किसान कल्याण और पंचायती राज जैसे अहम महकमों की जिम्मेदारी दी गई।
पटेल आंदोलन की तपिश
यहां बताना होगा कि गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल समुदाय ने आरक्षण की मांग को लेकर जबरदस्त आंदोलन किया था। यह आंदोलन इतना जबरदस्त था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने गृह राज्य गुजरात में चुनाव जीतने के लिए धुआंधार रैलियां की थी। बावजूद इसके बीजेपी 182 सीटों वाले गुजरात में बहुमत के लिए जरूरी 92 सीटों से सिर्फ 7 सीटें ही ज्यादा ला सकी थी। जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में उसे 115 सीटों पर जीत मिली थी। पटेल समुदाय के जबरदस्त विरोध का ही असर था कि 2012 के विधानसभा चुनाव में 61 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को 2017 में 77 सीटों पर जीत मिली थी।
उस वक्त पटेल समुदाय ने बीजेपी को अपनी ताकत का एहसास कराया था। तब गुजरात के ठाकोर समुदाय के लोग भी अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व में बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो गए थे। हालांकि बाद में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर बीजेपी में शामिल हो गए और 2022 के चुनाव में विधायक भी बने।

लेकिन पटेल और ठाकोर समुदाय की नाराजगी को झेल चुके भाजपा नेताओं को पता है कि लोकसभा चुनाव के मौके पर गुजरात में प्रभावशाली क्षत्रिय समुदाय की नाराजगी मोल लेना ठीक नहीं होगा। ऐसे में बीजेपी के लिए भी मुश्किल कम नहीं है क्योंकि अगर वह पुरुषोत्तम रुपाला का टिकट वापस लेती है तो उसे पटेल समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। गुजरात में पटेल और पाटीदार समुदाय की आबादी लगभग 20 फीसदी है और यह बेहद प्रभावशाली समुदाय है।
दूसरी ओर गुजरात में क्षत्रिय समाज की आबादी 5 फीसदी है लेकिन इसके नेता दावा करते हैं कि उनकी आबादी 8 फीसदी तक है। 7 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले गुजरात में क्षत्रिय समुदाय की आबादी 25 लाख है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या बीजेपी क्षत्रिय समुदाय की नाराजगी को नज़रअंदाज कर पाएगी?
क्या करेगी बीजेपी?
अहम सवाल यही है कि अगर बीजेपी क्षत्रिय समुदाय को मनाने में कामयाब नहीं रही तो क्या लोकसभा चुनाव में उसकी मुश्किलें बढ़ेंगी और अगर वह पुरुषोत्तम रुपाला का टिकट वापस लेने का फैसला करती है तो उसे पटेल और पाटीदार समुदाय की नाराजगी को झेलना होगा. निश्चित रूप से यह एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई वाली स्थिति है। देखना होगा कि पार्टी इस मुश्किल से निकलने के लिए क्या फैसला करती है।