India-Pakistan 1965 War: 1962 का युद्ध चीन से हारने के बाद भारत में निराशा का माहौल था, बड़े बदलावों की मांग उठ रही थी, सरकार पर भी जबरदस्त दबाव था। लेकिन आपदा में अवसर तलाश रहा था पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान। जम्मू-कश्मीर को कब्जे में लेने की उसकी सनक खत्म नहीं हुई थी, वहां की सेना और सरकार दोनों ही साजिशें रच रही थी। किसी भी तरह बस मुस्लिम बाहुल कश्मीर को हथियाना था। पाक में बैठे नेताओं को, वहां की सेना को लगा 1962 के युद्ध के बाद भारत टूट चुका है, ऐसे में इसी समय हमला कर बडी जीत हासिल की जा सकती है।

पाकिस्तान में बैठे हुक्मरान इसलिए भी ज्यादा उत्साहित थे क्योंकि अमेरिका से उन्हें नए-नए हथियार मिले थे, ऐसे हथियार जो घातक थे, उस समय के लिहाज से एडवांस थे और सबसे बड़ी बात- भारत के पास नहीं थे। 1953 में ही अमेरिका की पाकिस्तान के साथ एक डील हुई थी, उसके तहत उसे कई सारे हथियार मिले थे। उस समय के आंकड़े खंगालने पर पता चलता है कि पाकिस्तान के पास 756 बैटल टैंक मौजूद थे, बड़ी बात यह थी कि वो सारे रात में भी हमला करने में सक्षम थे। दूसरी तरफ भारत के पास सिर्फ 608 बैटल टैंक थे, वो भी रात में हमला नहीं कर सकते थे।

इसी वजह से पाकिस्तान की हुकूमत अति विश्वास का शिकार चल रही थी, सपने बड़े देखे जा रहे थे। इसके ऊपर क्योंकि पाक सेना ने कुछ साल पहले ही तख्तापलट किया था, ऐसे में माना जा रहा था कि बड़े हमले को अंजाम दिया जाएगा। 1965 के वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे। उनका मानना था कि अगर कश्मीर को छीन नहीं सकते तो आपस में लड़ाई करवा ही जंग जीत ली जाए। इसी सोच का नतीजा था ऑपरेशन जिब्राल्टर जहां कश्मीरी मुसलमानों को ही भड़काने की कोशिश हो रही थी, उन्हें अपने पक्ष में कर भारत के खिलाफ बगावत के लिए उकसाना था।

लेकिन इस ऑपरेशन जिब्राल्टर से पहले पाकिस्तान ने दूसरा दुस्साहस किया था, यह कहानी जनवरी 1965 की है जब गुजरात के कच्छ रण में पाकिस्तान ने कुछ पोस्ट बनानी शुरू कर दी थीं। इस ऑपरेशन का नाम था डेजर्ट हॉक। पाक सेना ने सोचा था कि गुजरात के रास्ते घुसपैठ होगी और सीधे जम्मू-कश्मीर पर हमला किया जाएगा। लेकिन सीमा पर तैनात भारतीय पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने पाकिस्तान के इन मंसूबे को पूरी तरह फेल कर दिया। दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी हुई और पाकिस्तान को भयंकर नुकसान उठाना पड़ा। उसके चार जवान तब भारत ने गिरफ्तार भी कर लिए।

अब यहां समझना जरूरी है कि उस समय तक भारत और पाकिस्तान में कोई युद्ध नहीं छिड़ा था। इस तरह की घुसपैठ, ऐसी गोलीबारी तो आजादी के बाद कई मौकों पर देखने को मिली थी। पाकिस्तान तो पहले भी सीजफायर का उल्लंघन कर चुका था। इस बीच ब्रिटेश पीएम हैरॉल्ड विल्सन ने दोनों भारत और पाकिस्तान को एक ट्रिब्यूनल बनाने के लिए राजी कर लिया। सत्ता के नशे में चूर आयूब खान को लगा कि भारत झुक चुका है, वो अभी डरा हुआ है, उसने इस ट्रिब्यूनल को भी उसकी कमजोरी समझ लिया। यही से शुरू हुई असली साजिश और आजादी के बाद भारत को मिलने वाला था पाकिस्तान से दूसरा बड़ा धोखा।

इस धोखे का नाम था ऑपरेशन जिब्राल्टर। पाकिस्तान से 30 हजार लड़ाके जम्मू-कश्मीर में अब तक की सबसे बड़ी घुसपैठ के लिए तैयार थे। कश्मीरियों के भेष में इन्हें आना था, वहां के मुसलमानों को भड़काना था और भारत के खिलाफ ही भारत के लोगों के द्वारा ही जंग छिड़वानी थी। पाकिस्तान को लग रहा था कि ऐसा कर जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करना ज्यादा आसान रहेगा। वैसे इस ऑपरेशन का नाम जिब्राल्टर भी एक खास कारण से रखा गया था। जिब्राल्टर वो जगह है जहां से अरब देशों की सेना ने यूरोप की ओर कूंच की थी। वहां से निकलते ही अरब की सेना को जीत मिलती गई। अब पाकिस्तान की नजर में जम्मू-कश्मीर उसका जिब्राल्टर था, यह वो पड़ाव था जहां पहुंकर वो भारत को मात देना चाहता था।

अब पाकिस्तान जिन लोकल कश्मीरियों के सहारे भारत को हराने के सपने देख रहा था, उन्हीं कश्मीरियों ने पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका दिया। उन कश्मीरियों ने पाकिस्तान की इस नापाक साजिश के बारे में हिंदुस्तान की सेना को बता दिया। जो भी इनपुट मिले, वो सब सेना को दिए गए। यानी कि पाकिस्तान तो इस बात से अनजान था कि भारत को उसकी साजिश के बारे में पता चल चुका है, ऐसे में वो आगे बढ़ता गया और भारतीय सेना ने उसके स्वागत की तैयारी की।

भारत ने फैसला किया था कि वो पाकिस्तान के कब्जे वाले हारी पीर दर्रे पर जीत हासिल करेंगे। इस रूट की अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि पाक की तरफ से ज्यादातर घुसपैठ यहां से होती थी। पैरा, 19 पंजाब और 4 राजपूत बटालियन को हारी पीर दर्रे जीतने की जिम्मेदारी दी गई थी। पाक की फायरिंग से चुनौतियां तो बढ़ीं, लेकिन सेना ने अपने शौर्य से वो इलाका छीन लिया। इस जीत को ऐसे समझ सकते हैं कि पहले उरी से पुंछ पहुंचने में जहां 282 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था, इस जीत की वजह से वो दूरी सिर्फ 56 किलोमीटर की रह गई। यह साफ हो चुका था कि पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्राल्टर पूरी तरह फेल हो चुका था। उल्टा भारत ने उसके कब्जे से भी कुछ इलाकों को छीन लिया था।

अब पाकिस्तान ने भी इस हार के बाद अपना फोकस शिफ्ट किया और उसने एक नए मिशन की शुरुआत की। इस मिशन को नाम दिया गया ग्रैंड स्लैम। इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तानी सेना को जम्मू-कश्मीर के अखनूर पर अपना कब्जा जमाना था। भारत को क्योंकि उसकी इस साजिश की भनक नहीं थी, ऐसे में खतरा ज्यादा बड़ा रहा। पाक सेना तवी नदी के पास तक पहुंच चुकी थी, वहां से अखनूर की दूरी बहुत कम रही। अब आनन-फानन में भारत को भी जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी, पठानकोट एयरबेस से 8 वैंपायर विमानों ने उड़ान भरी और पाक सैनिकों पर कहकर बनकर टूटी। एक किताब है- फ्रॉम कच्छ टू ताशकंद: द इंडो पाक वॉर 1965। इस किताब की मानें तो भारत की इस कार्रवाई ने फिर पाकिस्तान के हौसले पस्त कर दिए और 13 पाकिस्तानी टैंक और 30 से 50 उसकी हथियारों वाली गाड़ियां तबाह कर दी गईं।

1965 युद्ध का यह वो समय था जब भारत की एयरफोर्स उतर चुकी थी, ऐसे में पाकिस्तान को भी अपनी वायुसेना को बुलाना पड़ा। यहां ये युद्ध और ज्यादा विस्फोटक हो चला और दोनों तरफ ही काफी नुकसान हुआ। इस बीच देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी कसम खा चुके थे कि अब पाकिस्तान को उसके दुस्साहस का जवाब देना पड़ेगा। कोई भी सहन नहीं कर सकता था कि जम्मू-कश्मीर के अखनूर तक पाक सेना पहुंचने वाली थी। ऐसे में भारत ने भी फिर एक ऑपरेशन शुरू किया, नाम दिया गया ऑपरेशन बैंगल। मकसद सीधा था- लाहौर तक जाना था।

इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने डोगराई के उत्तर में भसीन, दोगाइच और वाहग्रियान पर अपना कब्जा जमा लिया था। लाहौर पर भी गोले बरसाए जा रहे थे। पाकिस्तान ने जो सपने नहीं सोचा था, वो हो चुका था। कश्मरी के ख्वाब देख रहे आयूब खान लाहौल तक गंवा सकते थे। हड़बड़ी में पाकिस्तान ने भी भारत के अमृतसर पर हमला करने की सोची। 300 टैंक और 10 हजार सिपाहियों के साथ पाक सेना हमला किया। इसे उस समय का सबसे बड़ा टैंकर युद्ध माना जाता है जहां कम संसाधान के बाद भी भारत ने करारा जवाब दिया। बताया जाता है कि उस टैंकर युद्ध में पाकिस्तान ने अपने 100 से ज्यादा टैंकर गंवा दिए थे।

अब ये वो वक्त था जब अमेरिका भारत का साथ नहीं देता था। पाकिस्तान को हारता देख अमेरिका भी कोशिश करने लगा था कि किसी तरह यह जंग रुक जाए। ऐसे में एक दांव चला गया, अमेरिका ने भारत को गेहूं ना देने की बात कर दी। शर्त रखी कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेंहू भी नहीं मिलेगा। उस समय लाल बहादुर शास्त्री ने झुकने से मना कर दिया और देश से एक अपील की, उन्होंने जोर देकर कहा कि देश के लोग हफ्ते में एक बार जरूर उपवास करना शुरू कर दें। इस बीच पाकिस्तान भी मदद के लिए चीन गया था, वहां से भी भारत पर दबाव बन रहा था। ऐसे में 22 सितंबर 1965 को यूएन की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच में सीजफायर हो गया। इस युद्ध में पाकिस्तान ने अपने 5988 जवान गंवाए, भारत के भी 2735 जवान शहीद हुए।

इस एक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान से उसकी 1920 किलोमीटर जमीन छीन ली थी। इसके बाद 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौता हुआ और दोनों ही देश पुरानी वाली पोजीशन पर वापस पहुंच गए, यानी कि 1965 की जंग में जिन भी इलाकों पर कब्जा किया गया, वहां से पीछे हटा गया। लेकिन एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था, उसका ऑपरेशन जिब्राल्टर पूरी तरह फेल रहा।