ओशो (Osho) का जन्म 11 दिसंबर, 1931 मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम चंद्रमोहन जैन रखा था। ओशो के पिता का नाम बाबूलाल जैन था। वह एक कपड़ा व्यापारी थी। ओशो अपने माता-पिता की 11 संतानों में सबसे बड़े थे।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

जबलपुर से पढ़ाई-लिखाई करने के बाद ओशो जबलपुर यूनिवर्सिटी (Jabalpur University) में लेक्चरर बन गए। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा का अध्ययन किया और प्रवचन देना शुरु किया। पहले लोगों ने उन्हें आचार्य रजनीश (Acharya Rajneesh) के तौर पर जाना। बाद में उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया।

किस विषय पर प्रवचन देते थे ओशो?

ओशो पारंपरिक संतों से अलग थे। वह किसी धार्मिक ग्रंथ का पाठ नहीं करवाते थे। न ही पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांड करवात थे। बल्कि वह तो, खुद प्रचलित धर्मों के खिलाफ बोलते थे। वह कहते थे, ”हां, मैं सभी तथाकथित धर्मों के खिलाफ हूं क्योंकि वे धर्म हैं ही नहीं। मैं धर्म के लिए हूं लेकिन धर्मों के लिए नहीं। सच्चा धर्म केवल विज्ञान की तरह एक ही हो सकता है। आपके पास मुसलमान फिजिक्स, हिंदू फिजिक्स, ईसाई फिजिक्स नहीं हो सकता; यह बकवास होगा। लेकिन धर्मों ने यही किया है – उन्होंने पूरी पृथ्वी को पागलखाना बना दिया है।”

ओशो के प्रवचन के विषय बिलकुल अलग हुआ करते थे, वह प्रेम, काम, रिलेशनशिपस पर बोलते थे। उनके विचारों की एक संकलन ‘सम्भोग से समाधि की ओर’ को आज भी विवादित माना जाता है।

जब अमेरिका में ‘रजनीशपुरम’ की उठी मांग

भारत में ठीक-ठाक प्रसिद्धि हासिल कर लेने के बाद ओशो को साल 1981 में स्वास्थ्य खराब के कारण चिकित्सकों के परामर्श पर अमेरिका जाना पड़ा। वहां वह साल 1985 में अमेरिकी सरकार द्वारा निकाले जाने तक रहे। उनके अमेरिका पहुंचते ही तो, उनके शिष्यों ने ओरेगॉन राज्य में 64000 एकड़ जमीन खरीद लिया। उसी जमीन पर आश्रम बनाकर ओशो को रहने के लिए बुलाया गया। उस रेगिस्तानी इलाके में ओशो अपने 5000 अनुयायियों के साथ रहा करते थे। देखते ही देखते आश्रम कई कॉलोनियों में बदल गया।

उनका अमेरिका प्रवास बेहद विवादास्पद रहा। एक वक्त ऐसा भी आया, जब ओशो के शिष्य उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराने पहुंच गए। हालांकि स्थानीय लोगों के विरोध के कारण ऐसा हो नहीं पाया।

अमेरिका से क्यों निकाले गए ओशो?

ओशों के अनुयायियों की बढ़ती संख्या और विचारों से वह अमेरिकी सरकार के नजर में आ गए थे। साल 1985 के अक्टूबर माह में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया। उन पर 35 मामले बने। पुलिस हिरासत में भी लिए गए। साथ ही चार लाख अमेरिकी डॉलर का जुर्माना भी देना पड़ा। उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने का आदेश दिया गया। 14 नवंबर 1985 को ओशो अमेरिका से निकलकर भारत पहुंचे।

21 देशों में फैला खौफ

फरवरी 1986 में ओशो दुनिया घूमने के इरादे से निकले थे। लेकिन अमेरिका के दबाव के कारण उनका विश्व भ्रमण अधूरा रह गया। दरअसल अमेरिका के दबाव में 21 देशों ने उन्हें या तो देश से निष्कासित कर दिया या घुसने ही नहीं दिया। उन देशों में ग्रीस, इटली, स्विटजरलैंड, स्वीडन, ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, कनाडा और स्पेन शामिल थे।