‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) की संभावना तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित आठ सदस्यीय कमेटी ने काम शुरू कर दिया है। अध्यक्ष कोविंंद ने रविवार को इस संबंध में कई बैठकें कीं। कमेटी में संवैधानिक मामलों के जानकार और देश के नामी वकील हरीश साल्वे को भी रखा गया है। कमेटी के सदस्यों के बारे में विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ज्यादातर भाजपा समर्थक हैं और ऐसे में लगता है कि कमेटी को केवल तैयार रिपोर्ट पर मुहर लगाने का काम करना है। बहरहाल, जानते हैं हरीश साल्वे के बारे में, जिनके मुवक्किलों में भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रतन टाटा, अंबानी और अजित मोहन जैसे दिग्गज शामिल रहे हैं।
भाजपा के ‘वकील’ हरीश साल्वे!
संवैधानिक, प्रशासनिक, कमर्शियल और टैक्सेशन लॉ के विशेषज्ञ, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे कई मौकों पर भाजपा के विचारों और फैसलों का बचाव कर चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में हरीश साल्वे नवंबर 1999 से नवंबर 2002 तक भारत के सॉलिसिटर जनरल रहे थे।
जब साल्वे में सॉलिसिटर जनरल का पद छोड़ा तो वाजपेयी सरकार ने उन्हें एक दूसरे काम में इंगेज किया। दरअसल, जुलाई 1992 अमेरिकी बिजली कंपनी एनरॉन ने महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड (MSEB) के साथ समझौता किया था। जिसके तहत उसे दाभोल में 2,550 मेगावाट का स्टेशन स्थापित करना था। लेकिन साल 2001 में एनरॉन प्रोजेक्ट से बाहर हो गई और खुद को दिवालीया बता दिया। सरकार ने इम मामले में भारत का पक्ष रखने के लिए हरीश साल्वे को नियुक्त किया। लेकिन 2004 में यूपीए सरकार के सत्ता में आने के बाद उनकी जगह पाकिस्तानी वकील ख़ावर क़ुरैशी को नियुक्त किया गया।
एक दशक से भी अधिक समय के बाद, साल 2017 में कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष साल्वे और कुरैशी आमने सामने आए। साल्वे ने ICJ को पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा जाधव को दी गई मौत की सजा को निलंबित करने के लिए मना लिया। देश के सबसे महंगे वकीलों में शुमार साल्वे ने कुलभूषण जाधव मामले में 1 रुपये की फीस ली।
कांग्रेसी थे हरीश साल्वे के पिता
हरीश साल्वे के पिता (NKP Salve) कांग्रेस नेता थे। पिता-पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद भी रहे। हरीश साल्वे ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह वाजपेयी सरकार में सॉलिसिटर जनरल बनें। हरीश साल्वे 1980 में नागपुर विश्वविद्यालय से लॉ ग्रेजुएट हुए थे और उसी वर्ष से प्रैक्टिस शुरू कर दी। साल 1992 में उन्हें वरिष्ठ वकील नामित किया गया।
नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने (2014) पर जब सोली सोराबजी पद छोड़ना चाहते थे तो साल्वे ने कथित तौर पर अटॉर्नी जनरल बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
गुजरात दंग 2002: जनहित के खिलाफ काम करने का लगा आरोप
साल्वे को 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित मामलों में भी न्याय मित्र नियुक्त किया गया था। अंग्रेजी में न्याय मित्र को ‘एमीकस क्यूरी’ कहते हैं, इनका काम जनहित के मामलों में कोर्ट की मदद करना होता है, ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके। हालांकि कुछ दंगा पीड़ितों ने आरोप लगाया था कि साल्वे जनहित के खिलाफ खाम कर रहे हैं। वकील कामिनी जायसवाल और प्रशांत भूषण ने साल्वे पर पुलिस और सरकार को बचाने का आरोप लगाया। लेकिन कोर्ट ने इन आरोपों को खारीज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी का किया बचाव
2019 के लोकसभा चुनाव में जब बीएसएफ से बर्खास्त फौजी तेज बहादुर यादव वाराणसी से नरेंद्र मोदी को चुनौती देने पहुंचे थे, लेकिन उनका नामांकन खारिज कर दिया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से राहत न मिलने पर वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जहां पीएम मोदी की तरफ से हरीश साल्वे ने दलील की थी।
साल्वे के ग्राहकों में देश के कॉरपोरेट सेक्टर के दिग्गज मुकेश अंबानी से लेकर रतन टाटा तक शामिल हैं। उन्होंने टैक्स डील मामले में वोडाफोन और दिल्ली विधानसभा द्वारा तलब किए जाने के बाद फेसबुक इंडिया के पूर्व प्रमुख अजीत मोहन का भी बचाव किया था।
पिछले हफ्ते ही सप्ताह साल्वे ने संविधान के अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों का बचाव किया। उन्होंने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 370 को लेकर कहा, “यह एक “राजनीतिक समझौता” था जो जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय और एकीकरण के समय हुआ था।”
जनवरी 2020 में हरीश साल्वे को इंग्लैंड और वेल्स की अदालतों के लिए रानी के वकील के रूप में नियुक्त किया गया था। साल 2015 में साल्वे को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
‘मोदी भक्त’ होने का लगता है आरोप?
हरीश साल्वे के बारे में यह कहा जाता है कि वह मोदी सरकार के सभी फैसलों का समर्थन करते हैं। कुछ लोग उन्हें ‘मोदी भक्त’ भी कह देते हैं। टाइम्स नाउ को दिए इंटरव्यू में एंकर ने उनसे यह सवाल भी पूछ लिया था कि लोग आपको भक्त कहते हैं, आपको कैसा लगता है? साल्वे का जवाब था, “अगर कोई बात मुझे पसंद आती है तो मैं आंख बंद कर उसका समर्थन करता हूं। यही मेरा माइंड सेट है। इसके लिए आप मुझे कुछ कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं।”
कमेटी में कौन-कौन?
लगातार कमेटी में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को भी रखा गया था। लेकिन शनिवार देर शाम उन्होंने कमेटी का सदस्य बनने से इनकार कर दिया। कमेटी को लेकर विधि एवं न्याय मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी है। अब कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष सी कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी हैं।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कमेटी की सदस्यता अस्वीकार करते हुए उसके अधिकांश सदस्यों की प्रोफाइल पर सवाल उठाया। ऐसे में इसकी पड़ताल जरूरी हो जाती है कि कमेटी में शामिल सदस्य कौन हैं और उनका बैकग्राउंड क्या रहा है? कमेटी के सदस्यों की प्रोफाइल की श्रृंखला के पहले अंक में हम हरीश साल्वे के बारे में जानेंगे।