Birthday of Mugal Emperor: मुगल बादशाह अकबर (Mughal Emperor Akbar) की कई संतानों की असमय मौत हो गई थी। बाद में बादशाह अकबर (Akbar) ने मन्नत मांगी कि अगर उन्हें बेटा हुआ तो पैदल अजमेर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाएंगे। अकबर, आमेर के राजा भारमल (Raja Bharmal) की बेटी जोधा बाई (Jodha Bai) के बेहद करीब थे। मरियम-उज-जमानी के नाम से मशहूर जोधा बाई जब गर्भवती हुईं तो अकबर खुशी से झूम पड़े। उन्होंने जोधाबाई को तमाम सैनिकों और हरम के अफसरों के साथ फतेहपुर सीकरी भेज दिया।

जोधा बाई को क्यों भेजा था फतेहपुर सीकरी?

इसकी दो वजहें थीं। एक तो जोधा बाई (Jodha Bai) और उनके होने वाले वारिस की सुरक्षा और दूसरा सूफी शेख सलीम चिश्ती को किया गया वादा। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शाज़ी ज़मां अपनी किताब ‘अकबर’ में लिखते हैं कि एक दिन अकबर, शेख सलीम चिश्ती (Salim Chisti) के पास पहुंचे। उनसे पूछा, ‘मेरे कितने बेटे होंगे?’ सलीम चिश्ती ने कहा- ‘तीन बेटे होंगे…’। बादशाह अकबर ने उसी वक्त सलीम चिश्ती को ज़बान दे दी कि एक बेटे की परवरिश उनकी देखरेख में होगी।

खबर सुनते ही खुशी से झूम पड़े अकबर

17 अगस्त 1569 को जोधा बाई ने सलीम (Salim) को जन्म दिया। उस वक्त अकबर आगरा में मौजूद थे। शेख सलीम चिश्ती के दामाद शेख इब्राहिम ने आगरा आकर उनको खबर सुनाई। बादशाह खुशी से झूम पड़े। उन्होंने तोहफे बांटे, कैदियों की रिहाई का ऐलान कर दिया।

आगरा से पैदल पहुंचे अजमेर दरगाह

चूंकि अकबर (Akbar) ने मन्नत मांगी थी कि उन्हें बेटा हुआ तो पैदल अजमेर जाएंगे। सलीम की पैदाइश के अगले वर्ष 1570 के जनवरी महीने में अकबर पैदल ही आगरा से अजमेर के लिए निकल पड़े। अजमेर (Ajmer) पहुंचकर अकबर ने इबादत की और एक से बढ़कर एक बेशकीमती तोहफे बांटे, लेकिन उन तोहफों को लेकर झगड़ा शुरू हो गया।

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मुगल बादशाह नूरूद्दीन मोहम्मद जहांगीर। फोटो- (Wikimedia Commons)

तोहफे को लेकर मच गई लूट-मार

शाज़ी ज़मां लिखते हैं कि झगड़ा इस बात का था कि जिन लोगों ने खुद को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का वारिस बता कर सारे तोहफे लिये थे वे असली वारिस थे ही नहीं। बाद में बादशाह अकबर ने जांच कराई तो दावा सही निकला। उसके बाद दरगाह की जिम्मेदारी शेख मोहम्मद बुखारी को सौंप दी, जो उस वक्त हिंदुस्तान के नामी सय्यद थे और मुगल सल्तनत के वफादार भी माने जाते थे।

आपको बता दें कि सलीम, नूरूद्दीन मोहम्मद जहांगीर (Nur-ud-Din Muhammad Salim) के नाम से जाने गए और अकबर के बाद मुगल सल्तनत की गद्दी पर बैठे।