अकबर (Mughal Emperor Akbar) ने महज 13 साल की उम्र में मुगल सल्तनत (Mughal Empire) की गद्दी संभाली थी। उम्र बीतने के साथ अकबर की लोकप्रियता भी बढ़ती गई। इसकी सबसे बड़ी वजह उनकी दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता थी। अकबर का इस्लाम (Islam) में जितना भरोसा था, उतना ही दूसरे धर्मों को तरजीह और तवज्जो दिया करते थे। एक वक्त ऐसा आया जब उन्होंने ईसाई धर्म के बारे में बारीकी से जानने का निर्णय लिया। उन्होंने बाकायदे गोवा की ईसाई मिशनरियों (Christian Missionary) को संदेशा भिजवा दिया।
अकबर ने संदेशा भिजवा बुलाए ईसाई पादरी
इतिहासकार और लेखिका अदरीजा रॉयचौधरी (Adrija Roychowdhury) इंडियन एक्सप्रेस पर एक लेख में बताती है कि अकबर ने अपने करीबी थिथर अब्दुल्ला को राजदूत के तौर पर पुर्तगाली शासन वाले गोवा भेजा और वहां के मिशनरी प्रमुख को कहलवाया कि कि अपने दो पादरियों को भेजें, जो अपने साथ ईसाई धर्म से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण पुस्तकें वगैरह ले आएं।
यह ठीक वही वक्त था जब मुगल बादशाह अकबर ने ‘दीन-ए-इलाही’ (Din-i Ilahi) नाम से नए धर्म की शुरुआत की थी। अदरीजा लिखती हैं कि इस बात को ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है कि अकबर की वाकई ईसाई धर्म में दिलचस्पी थी या अपने नए धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ के संबंध में कोई सामग्री ढूंढ रहे थे।
अकबर का न्योता देख दंग रह गई थी मिशनरियां
अकबर का आमंत्रण ईसाई मिशनरियों के लिए चौंकाने वाला था। उनको लगा कि अगर अकबर ने ईसाई धर्म अपना लिया तो पूरे उत्तर में मुस्लिम शासकों का धर्मांतरण कराया जा सकता है। यह बड़ा मौका साबित हो सकता है। उन्होंने फौरन बाइबल की अनुवादित प्रतियां, तमाम पेटिंग और क्रिश्चियनिटी से जुड़ी दूसरी चीजें इकट्ठा की।
अकबर को तोहफे में भेजी मदर मैरी की पेंटिंग और बाइबल
मुगल बादशाह अकबर (Mughal Emperor Akbar) के पास ईसाई मिशनरियों ने सबसे पहले जो चीज भिजवाई वो थी मदर मैरी की आदमकद ऑयल पेंटिंग। चूंकि मदर मैरी का जिक्र कुरान में भी मिलता है, ऐसे में ईसाई मिशनरियों को लगा कि इससे अकबर पर ईसाई धर्म को लेकर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मिशनरियों की तरफ से अकबर को बाइबल तोहफे के तौर दी गई, जिसमें पेंटिंग के जरिये तमाम चीजें विस्तार से बताई गई थीं।
ईसा मसीह के आगे दंडवत हुए, लेकिन नहीं अपनाया धर्म
अकबर, बाइबल में छपी तस्वीरों को देखकर इतने प्रभावित हुए कि ईसा मसीह (Isa Masih) और मदर मैरी की तस्वीरों के आगे दंडवत हो गए और प्रार्थना की। अकबर की ईसाई धर्म को अपनाने की कोई मंशा नहीं थी, अलबत्ता उन्हें लगा कि पेटिंग के जरिये मुगल साम्राज्य और मुगलों की गाथा को दूर-दूर तक पहुंचाया जा सकता है। बाद में इसका सहारा भी लिया। अपने दरबार में एक से बढ़कर एक पेंटर और कला साधकों की तैनाती की। जिनमें केसू दास, मनोहर, बासवान और केसू खुर्द प्रमुख थे।