पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा है कि संविधान किसी भी वयस्क महिला को आजादी से अपना जीवन गुजारने और अपनी मर्जी से फैसले लेने का पूरा अधिकार देता है। अदालत ने कहा कि एक वयस्क महिला की पहचान और स्वतंत्रता उसके रिश्तों या पारिवारिक जिम्मेदारियों से तय नहीं होती है।

हाई कोर्ट ने कहा कि अदालतों की भूमिका सामाजिक मानदंडों या नैतिकता को लागू करना नहीं है बल्कि संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांतों को बरकरार रखना है।

इस मामले में एक पिता की ओर से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी।

जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा कि ऐसा मानना कि किसी महिला का पिता या कोई और उसके ऊपर अपनी इच्छा थोप सकता है, यह उस महिला के समानता और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार का सीधा-सीधा उल्लंघन है और यह अधिकार उसे संविधान से मिला हुआ है।

जज ने कहा कि इसलिए अदालत कथित रूप से बंदी बनाई गई महिला के हक की हिफाजत करेगी और उसकी स्वायत्तता का भी सम्मान करेगी।

अदालत ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता पिता की चिताओं को भी समझा जा सकता है लेकिन इसे महिला की व्यक्तिगत आजादी से ऊपर नहीं रखा जा सकता।

क्या कहा गया था याचिका में?

पिता की ओर से दायर याचिका में यह मांग की गई थी कि उनकी बेटी एक व्यक्ति की अवैध हिरासत में है और उसे इससे मुक्त कराया जाए। जबकि न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने बयान में बेटी ने कहा था कि वह अकेले रह रही है और अपने पिता और भाई के पास इसलिए नहीं लौटना चाहती क्योंकि वे उसका इस बात के लिए उत्पीड़न कर रहे हैं कि वह अपने पति के पास वापस चली जाए जबकि वह ऐसा नहीं चाहती क्योंकि उसके पति का व्यवहार बेहद खराब है। महिला ने यह भी कहा था कि उसके पिता और भाई का व्यवहार भी खराब है।

याचिकाकर्ता पिता के वकील ने तर्क दिया कि महिला को उसके पिता को सौंप दिया जाना चाहिए। वकील का कहना था कि महिला के अपने पति से अलग रहने की वजह से उसके दो बच्चे परेशानी से गुजर रहे हैं और इसलिए यह जरूरी है कि वह अपने पिता के घर वापस लौट जाए। जिससे उसके बच्चों को ससुराल से वापस लाया जा सके।

इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने पिता की ओर से बेटी की सुरक्षा और उसकी देखरेख के साथ ही अपने परिवार और अपनी बेटी की सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर भी चिंता जताई। लेकिन अदालत ने कहा कि महिला खुलकर कह चुकी है कि वह याचिकाकर्ता यानी अपने पिता के पास वापस नहीं लौटना चाहती है।