भारत दुनिया का पहला देश था जिसने परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया। 1952 में शुरू हुए परिवार नियोजन कार्यक्रम में समय के साथ कई बदलाव आए। परिवार नियोजन का एक सुरक्षित और आसान तरीका आम लोगों के बीच कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देना था।

साल 1963 में सरकार ने पहली बार देश में बड़े पैमाने पर कंडोम बांटने की योजना बनाई थी। तब सरकार अपने कंडोम ब्रांड का नाम ‘कामराज’ रखना चाहती थी। भारत में कामदेव को यौन आकर्षण के देवता माना जाता है। कामदेव को ही कामराज भी कहते हैं। ‘काम’ का अर्थ ‘संभोग’ और ‘काम वासना’ का मतलब ‘संभोग की इच्छा’ होती है।

कंडोम के लिए यह एक उपयुक्त नाम था। लेकिन सरकार को इस नाम को छोड़ना पड़ा और अपने कंडोम ब्रांड को ‘निरोध’ नाम देना पड़ा। यह नाम भी एक आईआईएम छात्र के दिमाग की उपज थी। निरोध का मतलब सुरक्षा होता है।

कामराज नाम क्यों नहीं रखा गया?

सरकार ने अपने कंडोम ब्रांड का नाम कामराज इसलिए नहीं रखा क्योंकि तब सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज हुआ करते थे। के. कामराज कांग्रेस में नेहरू के बाद सबसे बड़े नेताओं में से एक थे। वह अप्रैल 1954 से अक्टूबर 1963 के बीच दो बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे थे। नेहरू के निधन के बाद लाल बहादूर शास्त्री और उसके बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में कामराज की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

गरीब परिवार से आने वाले कामराज खुद स्कूल ड्रॉपआउट थे। लेकिन उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में इतना काम किया, अब उनके जन्मदिन को पूरे तमिलनाडु में ‘एजुकेशन डेवलपमेंट डे’ के रूप में मनाया जाता है। के. कामराज के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दिए फोटो पर क्लिक करें

Kamraj
के. कामराज दो बार मद्रास (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री रहे।

1940 से भारत में मिलता था कंडोम

भारत में कुछ प्राइवेट कंपनियां 1940 से कंडोम बना रही थीं। लेकिन उनका उत्पादन कम था। असल में ये कंपनियां केवल कुछ अमीरों के लिए ही उपलब्ध थी, जबकि जनसंख्या वृद्धि दर निम्न आय समूहों में सबसे अधिक थी।

प्राइवेट कंपनियों से कंडोम खरीदना सरकार के लिए महंगा था। इससे निपटने के लिए IIM (Indian Institutes of Management) की टीम ने सुझाव दिया कि सरकार कंडोम का आयात करे और उन्हें आम भारतीय को कम कीमत पर बेचे। सरकार ने 1968 में अमेरिका, जापान और कोरिया 400 मिलियन कंडोम आयात किया।

सरकार विदेशों से ज्यादा दाम पर कंडोम आयात कर आम लोगों को कम कीमत पर देने लगी। हालांकि इससे सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था। इसके लिए केंद्र सरकार ने एक उपाय निकाला।

1960 के दशक में केंद्र ने केरल में सस्ती दरों पर कंडोम के निर्माण के लिए एक कंपनी शुरू करने का फैसला किया। केरल में रबर प्रमुख नकदी फसल रहा है। स्वदेशी कंडोम बनाने के लिए 1 मार्च, 1966 को सरकारी स्वामित्व वाली एचएलएल लाइफकेयर की स्थापना तिरुवनंतपुरम में की गई। 1969 में कंपनी ने कंडोम का निर्माण करना शुरू कर दिया।

शुरुआत में सरकार 15 पैसे में एक पैकेट बेचती थी, जिसमें तीन कंडोम हुआ करते थे। भारतीय बाजार में निरोध के अलावा अन्य कंडोम 80 प्रतिशत महंगे थे। कम दाम पर कंडोम उपलब्ध कराने का सरकार अभियान असलफ नहीं रहा क्योंकि 1972 तक भारत में कंडोम की खपत प्रति माह 70 लाख पहुंच गई। तब भारत के कंडोम मार्केट में 92 प्रतिशत हिस्सा निरोध का था। हालांकि समय के साथ प्राइवेट कंपनियों के बढ़ने से निरोध की डिमांड कम होती चली गई।

अब कितने प्रतिशत लोग इस्तेमाल करते हैं कंडोम?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 से पता चला था कि भारत में 10 में से सिर्फ एक पुरुष ही कंडोम का इस्तेमाल करता है। हालांकि महिलाओं में नसबंदी का चलन बढ़ा है।