ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस पार्टी और वामपंथी दलों के बीच रिश्ते विवादित रहे हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का थोड़ा बहुत झुकाव वामपंथियों की ओर माना जाता है। लेकिन यह भूलना नहीं चाहिए कि वह नेहरू ही थे, जिन्होंने 1959 में केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को भंग कर दिया था।
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने अपनी किताब ‘भारतीय संविधान-अनकही कहानी’ (प्रभात प्रकाशन) में अलग-अलग दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि नेहरू ने भारत में कम्युनिस्ट पार्टी को बढ़ावा देना का वचन दिया था। नेहरू ने यह वचन एक बहुत बड़े वामपंथी लीडर को विदेशी धरती पर दिया था।
एक ‘गुप्त बैठक’
नेहरू के करीबी और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन की जीवनी में जयराम रमेश ने एक जगह लिखा है कि अपनी लंदन यात्रा (1936) की सफलता के कुछ दिन बाद नेहरू ने रजनी पामदत्त से मुलाकात की थी।
नेहरू के आधिकारिक जीवनीकार सर्वपल्ली गोपाल हैं। उन्होंने लिखा है कि ‘ऐसा हुआ कि लुसान (स्विट्जरलैंड की लेक सिटी) में जवाहरलाल नेहरू संयोग से बैन ब्रैडले (बेंजामिन फ्रांसिस ब्रैडले) से मिले। वे एक अस्पताल में भर्ती थे। उनके साथ रजनी पामदत्त भी थे, जो उनसे मिलने आए थे। पामदत्त और जवाहरलाल नेहरू ने तीन दिन साथ-साथ बिताए। वहीं नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का इलाज चल रहा था, जिन्हें जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट में बाडेनवाइलर के एक अस्पताल से लाया गया था।
सवाल उठता है कि नेहरू जिस ब्रैडले से मिलने नेहरू पहुंचे थे, वे कौन थे? दरअसल ब्रैडले मेरठ षड्यंत्र में एक आरोपी थे। साम्राज्यवाद विरोधी अभियान में ब्रिटेन के एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में उनकी पहचान थी।
जैसा कि सर्वपल्ली गोपाल ने लिखा है क्या क्या रजनी पामदत्त से नेहरू की भेंट वास्तव में संयोगवश थी? रजनी पामदत्त ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के दिमाग थे। जयराम रमेश ने लिखा है कि वह भेंट संयोगवश नहीं थी। सर्वपल्ली गोपाल ने इसलिए उसे संयोगवश लिखा, क्योंकि रजनी पामदत्त ने उन्हें बताया होगा। लेकिन जो तथ्य हैं, वे बिल्कुल अलग हैं।
राय लिखते हैं, “सच यह है कि रजनी पामदत्त ने ब्रैडले की बीमारी को एक ओट बनाया। वे नेहरू से योजनापूर्वक मिले। उस भेंट के बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट मंच कोमिंटर्न को एक रिपोर्ट भेजी। रिपोर्ट में लिखा है कि नेहरू से मेरी 16 घंटे बात हुई। वह गोपनीय पत्र मेनन की जीवनी में छपा है। पत्र को पढ़कर पता चलता है कि रजनी पामदत्त ने नेहरू का छद्म नाम ‘प्रोफेसर’ रखा था।” कोमिंटर्न मंडली में नेहरू को प्रोफेसर कहकह ही पुकारा जाता था।
कम्युनिस्ट पार्टी को बढ़ावा देने का वचन
सर्वपल्ली गोपाल ने लिखा है कि “जवाहरलाल नेहरू ने रजनी पामदत्त को यह वचन दिया था कि कांग्रेस के अध्यक्ष के नाते, वे सबकुछ करेंगे, जिससे भारत में कम्युनिस्ट पार्टी को बढ़ावा मिले, और उन्होंने विशेष रूप से किए जानेवाले कार्यों की एक तालिका भी उन्हें दी, जिसे वे पूरा करने की कोशिश करेंगे।
वीके कृष्ण मेनन की जीवनी में जयराम रमेश ने लिखा है कि नेहरू से बातचीत के बाद रजनी पामदत्त आश्वस्त हुए कि भले ही नेहरू गांधी के प्रभाव में हैं, फिर भी वे कम्युनिस्टों के प्रति सहानुभूति का रुख अपनाएंगे।
राय लिखते हैं, “उसके बाद ही कम्युनिस्ट कांग्रेस को जहां सहयोग करने लगे, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम्युनिस्ट नीति में भी परिवर्तन हुआ। कम्युनिस्टों ने कांग्रेस को साम्राज्यवाद विरोधी एकता का एक प्रमुख जनसंगठन माना। उसी वादे के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस में विदेश विभाग बनाया। डॉ. राममनोहर लोहिया को उसका दायित्व सौंपा।”