केंद्र सरकार ने 2021 में एनसीईआरटी (NCERT – National Council of Educational Research and Training) की किताबों में बदलाव की जो प्रक्रिया शुरू की थी, वह अमल में आना शुरू हो गया है। बदलावों के साथ किताबें छप कर बाजार में आ गई हैं। सीबीएसई से जुड़े स्कूलों में यही किताबें पढ़ाई जाती हैं। कुछ राज्यों के बोर्ड ने भी इन किताबों को ही अपनाने का फैसला किया है। सत्र 2023-24 के लिए आई किताबों में हुए बदलाव में से कई बदलाव 2022 में ही घोषित कर दिए गए थे। जो बदलाव हुए, उन पर विवाद हो गया है।
ताजा विवाद इस बात को लेकर है कि नई किताबों में कुछ ऐसे बदलाव हैं, जो 2022 में घोषित नहीं किए गए थे। महात्मा गांधी, नाथूराम गोडसे, गुजरात दंगा, मुगल शासक जैसे मुद्दों से जुड़ी कई बातें किताबों से हटा ली गई हैं। कई लोग कह रहे हैं कि ऐसा जान-बूझ कर इतिहास बदलने के मकसद से किया जा रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल एजुकेशन एडिटर रितिका चोपड़ा ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में बताया है कि किताबों क्या-क्या बदलाव हुए हैं। इस स्टोरी में भी हम आगे उन बदलावों को संक्षेप में समझेंगे, लेकिन पहले यह जान लेते हैं कि बदलाव की इस कवायद की जड़ में कौन-कौन लोग शामिल हैं।
किसकी गाइडलाइन में तैयार हुआ है पाठ्यक्रम?
2014 से 2022 तक तीन बार NCERT की किताबों में संशोधन किया जा चुका है। पहला संशोधन 2017 में हुआ था। तब NCERT की किताबों में 1334 बदलाव किए गए थे। दूसरा संशोधन साल 2019 में हुआ था, जिसका मकसद विद्यार्थियों पर से सिलेबस का बोझ कम करना था। तीसरा संशोधन 2022 में पूर्ण हुआ, जिसका मकसद ‘रेशनलाइजेशन’ और ‘कंटेंट लोड कम करना’ बताया गया था। यह सारी कवायद राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तय करने से जुड़ी है।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने सितंबर 2021 में एक राष्ट्रीय संचालन समिति बनाई थी। इसी समिति ने पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए व्यापक दिशा-निर्देश दिए। 12-सदस्यीय समिति की अध्यक्षता इसरो के पूर्व प्रमुख के कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन को दी गई थी। इन्होंने ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 का मसौदा तैयार करने वाली नौ सदस्यीय समिति का भी नेतृत्व किया था। पद्म श्री (1982), पद्म भूषण (1992) और पद्म विभूषण (2000) से सम्मानित कस्तूरीरंगन 1994 से 2003 तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख थे।
डॉ कस्तूरीरंगन के अलावा समिति में गोविंद प्रसाद शर्मा, महेश चंद्र पंत, नजमा अख्तर, टी वी कट्टिमणि, मिशेल डैनिनो, मिलिंद कांबले, जगबीर सिंह, मंजुल भार्गव, एमके श्रीधर, धीर झिंगरान और शंकर मरुवाड़ा शामिल थे।
संघ के सदस्य गोविंद प्रसाद शर्मा
गोविंद प्रसाद शर्मा नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। वह आरएसएस की एजुकेशन विंग विद्या भारती के अध्यक्ष रह चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यही शाखा देश भर में स्कूलों की श्रृंखला चलाती है। शर्मा विद्या भारती की केंद्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं।
अक्टूबर 2020 में ग्वालियर में आयोजित ‘ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला’ में अपनी बात रखते हुए शर्मा ने कहा था, “औपनिवेशिक और वामपंथी सोच के कारण वर्तमान शिक्षा त्रस्त है। मोदी सरकार ने इस विसंगति को समझते हुए, इसे दूर करने के लिए कस्तूरीरंगन की सिफारिशों को लागू किया है।”
शर्मा जिस मंच से अपनी बात रख रहे थे, उस मंच पर फूलों से सजी RSS के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर की तस्वीर रखी हुई थी।

‘मार्क्सवादी इतिहासकारों’ के आलोचक मिलेश डैनिनो
फ्रांसीसी मूल के मिशेल डैनिनो आईआईटी गांधीनगर में गेस्ट प्रोफेसर हैं। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 2017 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया था। डौनिनो ने ‘द लॉस्ट रिवर: ऑन द ट्रेल ऑफ सरस्वती’ किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने इस पौराणिक नदी के वास्तव में होने का दावा किया है। मिशेल डैनिनो पर यह आरोप लगता रहा है कि वह हिंदुत्ववादी विचारधारा की तरफ झुके हुए हैं।
मिशेल डैनिनो आर्यन आक्रमण सिद्धांत को बनावटी मानते हैं। हालांकि चर्चित इतिहासकार रोमिला थापर (Emerita, at Jawaharlal Nehru University) और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई विद्वान इस सिद्धांत को सही मानते हैं। दक्षिणपंथी खेमे में रोमिला थापर की आलोचना ‘वामपंथी इतिहासकार’ कह की जाती है।
मिशेल डैनिनो ने साल 2012 में ‘The Problem of Indian History’ नाम से एक आर्टिकल लिखा था, जिसमें उन्होंने बताया था कि भारतीय इतिहास का वर्तमान मॉडल मोटे तौर ‘इतिहास का मार्क्सवादी मॉडल’ है। वह अपने इस आर्टिकल में रोमिला थापर पर तंज कसते हुए लिखते हैं, भारत में इतिहास का मार्क्सवादी मॉडल है इसलिए वैदिक धर्म “Primitive animism (प्राचीन जीवात्मवाद)” और गीता “सामंतवाद” को बढ़ावा देने वाला बन जाता है।
वह आगे लिखते हैं, मार्क्सवादी द्वन्द्ववाद केवल उन चीज़ों को छोटा कर देता है जिसे वह समझ नहीं सकता, जैसे- अति-बौद्धिक सिंथेटिक आध्यात्मिकता, जो भारतीय प्रतिभा के लिए विशिष्ट है।”
डैनिनो धर्म के आधार पर भारतीय इतिहास के काल विभाजन की आलोचना करते हुए पूछते हैं कि अगर शुरुआत के चार कालों को धर्म के आधार पर वैदिक, बौद्ध, हिंदू और मुस्लिम में बांटा जा रहा है तो पांचवें को ब्रिटिश काल के बजाए ‘ईसाई काल’ क्यों नहीं कहा जा रहा।
इतना ही नहीं डैनिनो की यह भी आपत्ति है कि वैदिक काल को इतिहास में कम जगह दी गई है। वह लिखते हैं, वैदिक काल के बारे में आज लगभग उतना ही कम ज्ञात है जितना कि दो शताब्दी पहले था।
वह इतिहास में बौद्धों और हिंदुओं के बीच दिखाए गए तनाव की आलोचना करते हुए लिखते हैं, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म जितना हमें बताया गया है, उससे कहीं कम विभाजित थे।
भारत के हिंदू दक्षिणपंथियों की तरह ही मिशेल डैनिनो को भी लगता है कि इतिहास में भारत की उपलब्धियों को बहुत अधिक शामिल नहीं किया गया है। वह एक जगह भारत की ऐतिहासिक उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए लिखते हैं, “भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि निश्चित रूप से उसका सांस्कृतिक एकीकरण है, जो आपसी सम्मान के आधार पर वैदिक संस्कृति और स्थानीय परंपराओं के बीच एक लंबी जैविक बातचीत से संभव हुआ है, जिसका समकालिक परिणाम हिंदू धर्म है।”
RSS नेता से आशीर्वाद लेने वालीं नजमा अख्तर
नजमा अख्तर जामिया मिल्लिया इस्लामिया की वाइस चांसलर हैं। वह 2019 से इस पद पर हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नजमा अख्तर की नियुक्ति के तुरंत बाद एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे रहे थे।

दक्षिणपंथी दलित मिलिंद कांबले
मिलिंद कांबले एक प्रसिद्ध व्यापारी हैं। वह IIM जम्मू के चेयरपर्सन भी हैं। साल 2013 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। कांबले खुद दलित समुदाय से आते हैं लेकिन द इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज में उन्होंने कहा था- आरक्षण एक रनवे है, जहां से टेकऑफ करने चाहिए, न कि रनवे पर ही घूमते रहना चाहिए। जनवरी 2023 में उन्होंने कहा था, मैंने आरक्षण का लाभ लेना छोड़ दिया है ताकि उसे मिल सके जिसे जरूरत है। बाबा साहब ने जो आरक्षण की नीति बनाई, वह एक रन-वे है। आप उस रन-वे पर आइए और स्पीड लेकर वहां से टेकऑप कीजिए। न कि उस रन-वे पर ही घूमते रहिए।
आउटलुक में प्रकाशित (जून 2017) एक आर्टिकल में दलित एक्टिविस्ट (पूर्व RSS सदस्य) और लेखक भंवर मेघवंशी ने मिलिंद कांबले की आलोचना की थी। उन्होंने लिखा था, दलितों के भीतर उद्यमी वर्ग भी पैदा हुआ है, जिसने डिक्की जैसे संगठनों के जरिए दलित पूंजीवाद की भरपूर वकालत की थी। इस दलित पूंजीवाद का विलय दक्षिणपंथी संघी मनुवाद में होता नजर आ रहा है। डिक्की के मुखिया मिलिंद कांबले का संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच साझा करना और आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य के अंक का लोकार्पण करना दलित पूंजीवाद का ब्राह्मणवादी मनुवाद के समक्ष घुटने टेकने जैसा है। वैसे बाजारवाद और मनुवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।”

मिलिंद कांबले संघ की तरह ही धर्मांतरित दलितों और आदिवासियों को आरक्षण देने के खिलाफ हैं। मार्च 2023 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, (आरएसएस) के आधिकारिक मीडिया केंद्र ‘विश्व संवाद केन्द्र’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कांबले ने कहा था, आरक्षण का प्रावधान उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए किया गया था। लेकिन, उसका लाभ जिन्हें मिलने चाहिए था, उनसे छीनकर धर्मांतरित लोग (ईसाई व मुस्लिम) ले गए। और अभी भी उस पर डाका डालने का प्रयास हो रहा है। धर्मांतरितों को आरक्षण देने के नाम पर कुछ लोग देश में पॉलिटिकल पावर हथियाना चाहते हैं। धर्मांतरित लोगों को अपने अधिकारों का रोना अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष रोना चाहिए।”
NIEPA चांसलर हैं महेश चंद्र पंत
महेश चंद्र पंत National Institute Of Education Planning And Administration के चांसलर हैं। पंत भौतिकी में मास्टर डिग्री और एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन में डिप्लोमा रखते हैं। उन्होंने कई हाई-प्रोफ़ाइल पदों पर कार्य किया है और भारत में शैक्षिक सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कर्नाटक राज्योत्सव अवॉर्ड से सम्मानित हैं टी वी कट्टिमणि
आंध्र प्रदेश की केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (सीटीयूएपी) के पहले कुलपति टी वी कट्टिमणि ने उच्च शिक्षा में उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसके लिए उन्हें कर्नाटक का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘कर्नाटक राज्योत्सव अवॉर्ड’ भी मिल चुका है।
PU के पूर्व कुलाधिपति हैं जगबीर सिंह
प्रो. जगबीर सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं। वह पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा के कुलाधिपति भी रह चुके हैं।
गणित का नोबेल फील्ड्स मेडल पाने वाले मंजुल
मंजुल भार्गव भारतीय मूल के एक अमेरिकी गणितज्ञ हैं। उन्हें 2014 में फील्ड्स मेडल मिल चुका है।
सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता एमके श्रीधर
एमके श्रीधर सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह राष्ट्रीय मसलों पर काम करते हैं। 80 प्रतिशत विकलांग श्रीधर को कर्नाटक सरकार कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा उन्हें भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन ‘जनरल प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल’ से सम्मानित कर चुका है। सरकार ने श्रीधर को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने समिति में कस्तूरीरंगन के साथ रखा था।
LLF के संस्थापक निदेशक हैं धीर झिंगरान
धीर झिंगरान गैर लाभकारी संस्था ‘लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन’ के संस्थापक निदेशक हैं। यह संस्था सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की मूलभूत शिक्षा में सुधार लाने के लिए काम करती है।
उद्यमी और मार्केटिंग पेशेवर हैं शंकर मरुवाड़ा
शंकर मरुवाड़ा एकस्टेप फाउंडेशन के सह-संस्थापक और सीईओ हैं। उनके पास कॉर्पोरेट, उद्यमशीलता, गैर-लाभकारी और सरकारी क्षेत्रों में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है। कंपनी दावा करती है कि उनका मिशन भारत में 200 मिलियन बच्चों के लिए सीखने के अवसरों तक पहुंच बढ़ाकर साक्षरता में सुधार करना है।
NCERT किताबों में क्या हुआ है बदलाव?
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) का मुख्य काम बच्चों की पढ़ाई से जुड़े विषयों पर शोध करना और पढ़ाई के नए तरीकों का सुझाव देना है। यही संस्था केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के लिए किताबें भी छापती है। केंद्र के तहत आने वाली स्कूलों के अलावा एनसीईआरटी की किताबों को कुछ राज्यों की स्कूलों में भी पढ़ाया जाता है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की किताबों से मुगलों से जुड़े कुछे चैप्टर, आपातकाल से जुड़े चैप्टर, गुजरात दंगा से जुड़ा चैप्टर हटाया गया है। कुछ चैप्टर के नाम बदले गए हैं। वहीं कुछ चैप्टर से चुनिंदा उद्धरण भी हटा दिए हैं। मसलन:
गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिंदू कट्टरपंथियों को उकसाया
गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध, आदि (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)