वीके पांडियन ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहे हैं। उन्होंने यह फैसला ओडिशा विधानसभा के चुनाव में बीजू जनता दल (बीजद) की हार के बाद लिया था। लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के करीबी माने जाने वाले पांडियन राज्य की राजनीति से दूर नहीं हैं और अभी भी नवीन पटनायक की गुड बुक में शामिल हैं।
हाल ही में एक खबर आई थी जिसमें कहा गया था कि नवीन पटनायक ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से अनुरोध किया था कि उन्हें पांडियन से नहीं मिलना चाहिए।
इस मामले में पटनायक ने ट्विटर पर अपना बयान जारी करते हुए कहा था कि यह खबर पूरी तरह गलत है और वह पहले भी इस बात को कह चुके हैं कि पांडियन ने राज्य और बीजद की सेवा पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ की है और उन्हें इसी के लिए जाना जाता है और इसीलिए उनका सम्मान भी किया जाता है।
पांडियन के सक्रिय राजनीति छोड़ने के फैसले के बाद यह दूसरा मौका था जब नवीन पटनायक ने खुलकर पांडियन का बचाव किया।

पांडियन के राजनीति छोड़ने का फैसला करने से एक दिन पहले यानी 8 जून को, पटनायक ने कहा था कि बीजद में कुछ नेताओं के द्वारा चुनाव में हार के लिए जिस तरह पांडियन की आलोचना की जा रही है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और एक अफसर के तौर पर पांडियन ने शानदार काम किया है।
पार्टी पर है पांडियन की छाप
बीजद के सूत्रों का कहना है कि पटनायक के बयान इस बात का सबूत हैं कि पार्टी पर अभी भी पांडियन की छाप है। सूत्रों के मुताबिक, पांडियन की अभी भी नवीन पटनायक के घर नवीन निवास तक पहुंच है।
सूत्रों के मुताबिक, जहां अन्य नेता पार्टी के मामलों पर चर्चा करने के लिए सीधे नवीन पटनायक से मिलते हैं तो पांडियन के करीबी माने जाने वाले लोग ही उनसे मुख्यमंत्री आवास पर मिलते हैं।
बीजद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि नवीन पटनायक ने जब संतृप्त मिश्रा को अपना पहला राजनीतिक सचिव चुना था, तो यह भी इस बात का उदाहरण था कि पांडियन की पटनायक तक पहुंच है क्योंकि एक ऐसे व्यक्ति को जिसका कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है, उसे इस पद के लिए चुना जाना यह बताता है कि पांडियन नवीन पटनायक को बीजेडी के द्वारा लिए जाने वाले तमाम बड़े फैसलों में सहयोग करते रहेंगे। जिस तरह वह 2019 के चुनाव से पहले उनके निजी सचिव के रूप में करते थे।
बीजद के कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी के बावजूद पटनायक ने मिश्रा को बरकरार रखा। कई लोग धीमी आवाज में यह सवाल उठाते हैं कि पार्टी अभी भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में अपनी हार की वजह नहीं खोज पाई है बावजूद इसके कि नवीन पटनायक ने इस बात का भरोसा दिया था कि इस मामले में एक कमेटी बनाई जाएगी और वह बीजेपी से लड़ने का रोड मैप बताएगी।
हार की समीक्षा न करने पर सवाल
बीजद के एक नेता ने कहा कि यह समझना मुश्किल नहीं है कि बीजद अपनी हार की समीक्षा क्यों नहीं कर रही है। अगर समीक्षा होती है तो हार के लिए सभी अंगुलियां पांडियन और उनके करीबियों पर ही उठेंगी। ऐसा लगता है कि पांडियन ने बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक को समीक्षा नहीं करने के लिए मना लिया है।
हालांकि चुनाव के बाद पांडियन के करीबी नेताओं- जैसे प्रणव प्रकाश दास (संगठन सचिव) और महासचिव (मीडिया मामले) मानस मंगराज को या तो पार्टी के कामकाज से किनारे कर दिया गया है या दूर रखा गया है।

शैडो कैबिनेट को लेकर आलोचना
बीजद के कई वरिष्ठ नेताओं ने नवीन पटनायक के इस फैसले की आलोचना की है कि उन्होंने एक शैडो कैबिनेट बनाई हुई है, जैसा ब्रिटेन में विपक्ष के द्वारा किया जाता था। इसके तहत पटनायक ने बीजद के 50 विधायकों को अलग-अलग विभाग सौंपे हैं और उनसे कहा है कि वे सरकार के कामकाज पर नजर रखें।
बीजद के एक विधायक ने कहा, ‘अगर नवीन बाबू ने चुनाव से पहले नेताओं की कीमत समझी होती बजाए एक नौकरशाह को अहमियत देने के, तो वह आज भारत के सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री रहने के रास्ते पर होते।’
विधायक ने कहा कि शैडो कैबिनेट के कदम से पता चलता है कि यह ये दिखाने की कोशिश है कि पार्टी वापस लड़ने और एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है। यह काम करने का कॉर्पोरेट स्टाइल है और हो सकता है यह बहुत प्रभावी न हो।