प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर विपक्षी दलों पर ‘रेवड़ी’ बांटने का आरोप लगता हैं। लेकिन विडंबना यह है कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जारी किए गए भाजपा में घोषणा पत्र में भी कई तरह की सर्विस फ्री में देने का वादा किया गया है। हालांकि पीएम मोदी इसे ‘रेवड़ी’ नहीं बल्कि ‘मोदी की गारंटी’ कहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने ‘घोषण पत्र’ को ‘संकल्प पत्र’ कहती है, जिसमें इस बार न सिर्फ पूरे किए वैचारिक वादों (राम मंदिर उद्घाटन, अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति का खात्म, आदि) की सूची है, बल्कि संभावित आगामी कार्यकाल में क्या-क्या ‘मुफ्त’ दिया जाएगा, उसकी घोषणा भी है।

भाजपा का वादा है कि वह अपने तीसरे कार्यकाल में समान नागरिक संहिता को लागू करेगी, देश में वन नेशन-वन इलेक्शन और कॉमन इलेक्टोरल रोल की भी व्यवस्था शुरू करेगी। घोषणा पत्र जारी करते हुए पीएम ने कहा था, “25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाकर हमने साबित किया है कि हम जो कहते हैं वो करते हैं। हम परिणाम लाने के लिए काम करते हैं।”
पीएम मोदी जिस HCES (Household Consumption and Expenditure Surveys) के डेटा के आधार पर 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का दावा कर रहे हैं, उसे अर्थशास्त्री स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर (Swaminathan S Anklesaria Aiyar) संदिग्ध बताते हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

मोदी सरकार में गरीबी और गरीबों का हाल क्या है, इसे IMF के डेटा से समझ सकते हैं। 2014 से 2023 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति आय 67 फीसदी बढ़ी थी। 2004 से 2014 के बीच यह आंकड़ा 145 प्रतिशत था। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

पीएम ने घोषणा पत्र जारी करेने के दौरान कहा, “हमने बड़ी संख्या में रोज़गार बढ़ाने की बात की है। युवा भारत की युवा उम्मीदों की छवि भाजपा के घोषणापत्र में है।” रोजगार के मामले में नरेंद्र मोदी का कार्यकाल कैसा रहा है, उसे हाल में आए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट से जान सकते हैं। दस साल में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या छह प्रतिशत बढ़ गई है। वहीं काम तलाश में भटक रहे लोगों में 83 प्रतिशत युवा हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) के आंकड़े बताते हैं कि घर-घर खाना पहुंचाने वाले (फूड डिलीवरी पर्सन) वाले 45 फीसदी युवा, ग्रेजुएट या टेक्निकल ट्रेंड हैं। पढ़ाई के मुताबिक काम मिलना मुश्किल हो गया है। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

भाजपा अपने घोषणा पत्र को विकसित भारत का रोडमैप बता रही है। पीएम मोदी का वादा है कि वह 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बना देंगे, हालांकि उसके लिए जितनी जीडीपी ग्रोथ चाहिए, वो ग्रोथ एनडीए सरकार पिछले नौ साल में हासिल नहीं कर सकी है। भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ना होगा। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

भारत एक वेलफेयर स्टेट है
भारत एक वेलफेयर स्टेट है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत अपने नागरिकों को बुनियादी आर्थिक सुरक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि उन्हें बुढ़ापे, बेरोजगारी, दुर्घटनाओं और बीमारी से जुड़े बाजार के जोखिमों से सुरक्षा प्रदान की जा सके।
एक वेलफेयर स्टेट यह अपने नागरिकों को कानून और व्यवस्था जैसी बुनियादी न्यूनतम सेवाएं प्रदान करता है। देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था होती है, जिसके तहत निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों मिलकर जनकल्याण में लगे रहते हैं।
यहां इसका जिक्र इसलिए जरूरी था ताकि यह रेखांकित किया जा सके कि सरकार द्वारा देश के जरूरतमंद नागरिकों के लिए चलाई जाने वाली योजनाएं उनका हक हैं।
‘मोदी की गारंटी’ बनाम ‘UPA की कल्याणकारी योजनाएं’
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के कार्यकाल को अक्सर उदार कल्याण एजेंडे वाले वर्षों के रूप में सराहा जाता है। लेकिन क्या केंद्रीय बजट के आवंटन इस आकलन की पुष्टि करते हैं?
आइए मनमोहन सरकार के आखिरी पांच साल और नरेंद्र मोदी के अब तक के कार्यकाल के आखिरी पांच वर्षों का विश्लेषण करते। देखते हैं कि किस सरकार ने जनकल्याण पर कितना खर्च किया। हम जिसे “एनडीए की योजनाएं” कहते हैं, उस पर होने वाले खर्च की तुलना संयुक्त “यूपीए की योजनाओं” से करते हैं।
उससे पहले कुछ योजनाओं को लेकर स्पष्टता जरूरती है। अक्सर मोदी सरकार की कुछ योजनाओं को ‘न्यू वेलफेयरिज्म’ से अलंकृत किया जाता है। ऐसी योजना में शौचालय निर्माण, एलपीजी सिलेंडर, आवास और पानी कनेक्शन को गिनवाया जाता है। हालांकि, इनमें से कई योजनाएं यूपीए के वर्षों में मौजूद थीं, अलग-अलग नामों (जैसे- स्वच्छ भारत, पहले निर्मल भारत था, पीएम-आवास, पहले इंदिरा आवास था) और कम बजट के साथ अस्तित्व में थीं। 2014 के बाद, यूपीए की योजनाएं नए नामों के साथ जारी रहीं (उदाहरण के लिए, MDM प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण, या पीएम पोषण अब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना बन गया है)।
पीएम पोषण योजना का हाल
मिड-डे मील या प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण को एनडीए सरकार में पीएम पोषण के नाम से जाना जाता है। मनमोहन सिंह की सरकार ने जहां 2009-10 से 2013-14 के बीच 47,763.25 करोड़ रुपये रिलीज किए, वहीं मोदी सरकार के आखिरी पांच साल में इस योजना पर 53,878.91 करोड़ खर्च किए गए हैं।
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि अब भी उतने लोगों को मुफ्त राशन नहीं दिया जा रहा है, जितने लोगों को इसकी जरूरती है। उदाहरण के लिए द हिंदू में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रीतिका खेड़ा और अर्थशास्त्र के छात्र मोहम्मद असजद ने लिखा है,
यूपीए की योजना में स्पष्टता थी। एनएफएसए 2013 ने शहरी क्षेत्रों में 50% और ग्रामीण क्षेत्रों में 75% कवरेज को अनिवार्य किया था। ऐसे लोगों को प्रति माह पांच-पांच किलोग्राम चावल (2 रुपये प्रति किलो) और गेंहू (3 रुपये प्रति किलो) दिया जाता था। अप्रैल 2020 से दिसंबर 2022 तक, सरकार ने COVID-19 राहत के रूप में लोगों की पात्रता दोगुनी कर दी। यानी लोगों को प्रत्येक माह पांच किलोग्राम से 10 किलोग्राम अनाज मिलने लगा। लेकिन 2023 में COVID-19 के कारण दिया जाने वाला लाभ बंद कर दिया गया। अब अनाज पांच किलो मिलता है। 2021 की जनगणना कराने में एनडीए की विफलता ने लाखों लोगों को पीडीएस से बाहर कर दिया है। जनसंख्या अनुमानों पर आधारित अनुमानों से पता चलता है कि 2021 की आबादी में एनएफएसए अनिवार्य कवरेज अनुपात (शहरी में 50% और ग्रामीण क्षेत्रों में 75%) लागू करने से पीडीएस में 100 मिलियन से अधिक की वृद्धि होगी।
मोनरेगा पर मोदी ने जमकर किया खर्च
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में खड़े होकर मनमोहन सिंह सरकार द्वारा शुरू की गई मनरेगा को कांग्रेस की विफलताओं के प्रतीक बता मजाक उड़ाया था। दिलचस्प है कि इस योजना पर मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार से भी ज्यादा धन खर्च किया है।
मोदी सरकार (2019-20 से 2023-24)
वित्त वर्ष | रकम (करोड़ में) |
2019-20 | 71,686.70 |
2020-21 | 1,11,169.53 |
2021-22 | 98,467.85 |
2022-23 | 98,467 |
2023-24 | 86,000 |
मोदी सरकार (2019-20 से 2022-23) ने मनरेगा पर 4,65,791.08 करोड़ रुपये किए हैं। यूपीए सरकार ने आखिरी पांच साल में यह आंकड़ा 1,61,860 करोड़ रुपये था।
मनमोहन सरकार (2009-10 से 2013-14)
वित्त वर्ष | रकम (करोड़ में) |
2009-10 | 33,539 |
2010-11 | 35,841 |
2011-12 | 29,213 |
2012-13 | 30,274 |
2013-14 | 32,993 |
आवास योजना
इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर मोदी सरकार ने पीएम आवास योजना कर दिया था। मोदी सरकार (2019-20 से 2022-23) ने इस योजना पर 2,20,612.84 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
वित्त वर्ष | रकम (करोड़ में) |
2019-20 | 25,853 |
2020-21 | 40,259.84 |
2021-22 | 27,500 |
2022-23 | 48,000 |
2023-24 | 79,000 |
केंद्र सरकार ने कम किया अपना योगदान
द हिंदू के लेख के मुताबिक, कल्याणकारी योजनाओं में पहले केंद्र सरकार का शेयर 90 प्रतिशत हुआ करता था, अब 60 प्रतिशत रह गया है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन (बुजुर्गों, विधवाओं के लिए) में केंद्र योगदान साल 2006 में ₹200 प्रति माह हुआ करता था, अब भी आंकड़ा यही है। इस बीच, अधिकांश राज्य टॉपअप प्रदान करते हैं और कई ने कवरेज बढ़ा दी है। ओडिशा की मधु बाबू पेंशन योजना राज्य के 58% पेंशनभोगियों को सहायता प्रदान करती है। ओडिशा और तमिलनाडु गर्भवती महिलाओं को मातृत्व अधिकार के रूप में केंद्र की पीएमएमवीवाई (₹5,000-₹6,000) की तुलना में अधिक राशि (क्रमशः ₹10,000 और ₹18,000) प्रदान करते हैं।
ज्यादा कुछ नहीं बदला है!
NFHS के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2015-16 में एलपीजी इस्तेमाल करने वाले के 43 प्रतिशत थे, जो 2019-21 में 58 प्रतिशत हो गए। 2015-16 में 39 प्रतिशत लोग खुल में शौच करते थे, 2019-21 में यह आकंड़ा 19 प्रतिशत रह गया। जबकि केंद्र सरकार का दावा है कि देश खुले में शौच से मुक्त हो चुका है।