प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को ऑस्ट्रिया की यात्रा पर थे। इस दौरान बुधवार को पीएम मोदी के साथ प्रेस वार्ता में ऑस्ट्रियाई चांसलर कार्ल नेहमर ने 1955 में ऑस्ट्रिया के एक तटस्थ और स्वतंत्र देश के रूप में उभरने में मदद करने में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर प्रकाश डाला।

पीएम मोदी के साथ प्रेस को बयान देते हुए, नेहमर ने 1950 के दशक में शुरू हुए भारत और ऑस्ट्रिया के रिश्ते के बारे में बात करते हुए नेहरू की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “जब शांति वार्ता की बात आई तो भारत ऑस्ट्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार और समर्थक था, जिसके परिणामस्वरूप (ऑस्ट्रियाई) राज्य संधि को निष्कर्ष तक पहुंचाया गया।”

संधि से पहले हुई बातचीत का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, “1953 में स्थिति कठिन थी। सोवियत संघ के साथ बातचीत करना मुश्किल था। वह विदेश मंत्री कार्ल ग्रुबर थे जिन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से संपर्क किया और बातचीत को सकारात्मक नतीजे पर पहुंचाने के लिए समर्थन मांगा और ऐसा ही हुआ, भारत ने ऑस्ट्रिया की मदद की और 1955 में ऑस्ट्रियाई राज्य संधि के साथ बातचीत सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंची।”

संधि में नेहरू की पर्दे के पीछे की भूमिका

प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई शिक्षाविद और अंतर्राष्ट्रीय प्रगति संगठन के अध्यक्ष, हैन्स कोचलर ने भी 2021 में दिए गए एक भाषण में वार्ता में नेहरू की पर्दे के पीछे की भूमिका को याद किया था। उन्होंने कहा था, “गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में से एक, भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऑस्ट्रिया के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 20 जून 1953 को उन्होंने स्विट्जरलैंड में ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री कार्ल ग्रुबर से मुलाकात की थी। कार्ल ग्रुबर ने उनसे मदद मांगी थी।”

जवाहरलाल नेहरू और ऑस्ट्रिया के बीच क्या था संबंध?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऑस्ट्रिया को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया था और विजयी ताकतों- संयुक्त राज्य अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस द्वारा कब्जा कर लिया गया था। हालांकि, , ऑस्ट्रिया तटस्थ रहकर एक संप्रभु देश बनना चाहता था। लेकिन, सोवियत और पश्चिम दोनों तरफ के देशों का इरादा ऑस्ट्रिया को अपनी छत्रछाया में लाने का था।

यहीं पर नेहरू की भूमिका सामने आई। हैन्स कोचलर ने ऑस्ट्रिया, तटस्थता और गुटनिरपेक्षता (2021) में लिखा कि कैसे अगस्त 1952 में, ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्रालय के राजनीतिक निदेशक नेहरू से मिलने के लिए नई दिल्ली आए, जिन्होंने उन्हें ऑस्ट्रिया की इच्छा को सोवियत संघ के सामने आवाज उठाने में मदद का आश्वासन दिया। भारत उन कुछ देशों में शामिल था, जिन्होंने विजेता देशों के कब्जे को खत्म करने और संप्रभुता की बहाली के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऑस्ट्रिया की अपील का समर्थन किया था।

नेहरू ने किया था संधि में सहयोग

2 जून, 1953 को ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री कार्ल ग्रुबर और नेहरू क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के राज्याभिषेक में शामिल हुए और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अगली सुबह वे लंदन में मिले। कोचलर ने लिखा है, “20 जून को हुई दूसरी मीटिंग में ग्रुबर ने ऑस्ट्रिया और चार सहयोगी देशों के बीच संधि की बातचीत में नेहरू की मदद मांगी। उनकी सरकार सैन्य गठबंधनों में ऑस्ट्रियाई भागीदारी के खिलाफ गारंटी देने के लिए तैयार थी।”

अपने 1976 के संस्मरणों में ग्रुबर ने संधि तक पहुँचने में नेहरू की भूमिका के बारे में लिखा है। मई 1955 के मास्को ज्ञापन ने ऑस्ट्रियाई राज्य संधि का मार्ग प्रशस्त किया। ब्रूनो क्रेस्की जो 1955 में पीएमओ में राज्य मंत्री थे बाद में ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री बने, उन्होंने लिखा है, इस प्रकार नेहरू का नाम हमारी तटस्थता के इतिहास से सदैव जुड़ा रहेगा।” ऑस्ट्रिया को पूर्ण स्वतंत्रता मिलने के लगभग एक महीने बाद, नेहरू जून 1955 में वियना की राजकीय यात्रा करने वाले पहले विदेशी नेता बने।

कांग्रेस ने भी दिलाई नेहरू की भूमिका की याद

उससे पहले कांग्रेस ने भी संप्रभु और तटस्थ ऑस्ट्रिया के विकास में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका की याद दिलाई थी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि ऑस्ट्रिया गणराज्य पूरी तरह से 26 अक्टूबर 1955 को स्थापित किया गया था और इसे वास्तविकता बनाने में एक व्यक्ति महत्वपूर्ण थे, यह वह व्यक्ति थे जिसे नरेंद्र मोदी नफरत करते हैं और बदनाम करना पसंद करते हैं।

जयराम रमेश ने प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई शिक्षाविद डॉ हंस कोचलर के उस लेख के बारे में बात की जो ऑस्ट्रिया के उदय में नेहरू की भूमिका के बारे में बात करते हैं। उन्होंने कहा, “नेहरू के सबसे बड़े प्रशंसकों में से एक महान ब्रूनो क्रेस्की थे जो 1970-83 के दौरान ऑस्ट्रिया के चांसलर थे।”