भारत के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और पूर्व राज्यसभा सांसद मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन (M S Swaminathan) का 28 सितंबर, 2023 को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति के जनक (Father of the Green Revolution) भी कहा जाता है।
एमएस स्वामीनाथन ने अपने करियर की शुरुआत एक प्रशासक के रूप में करने वाले थे। उनका बतौर आईपीएस चयन हो गया था। लेकिन उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी क्योंकि उनकी रुचि खेती में थी। जल्द ही इस क्षेत्र में रिसर्च करने के लिए चले गए। उन्होंने भारत और विदेश दोनों जगहों पर इस क्षेत्र से संबंधित कई संस्थानों में काम किया।
साल 1981 से 1985 के बीच एमएस स्वामीनाथन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन काउंसिल के स्वतंत्र अध्यक्ष रहे। 1984 से 1990 के बीच इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्स के प्रेसिडेंट रहे। 1989-96 तक वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (इंडिया) के प्रेसिडेंट रहे। इसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के डायरेक्टर जनरल भी रहे।
एमएस स्वामीनाथन कौन थे?
एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित एक साक्षात्कार में, स्वामीनाथन ने बताया था कि कैसे उनका झुकाव पहली बार कृषि की ओर हुआ था। दरअसल, स्वामीनाथन का परिवार उनसे उम्मीद कर रहा था कि वह अपने पिता की तरह ही चिकित्सा के पेशे में जाएंगे।
स्वामीनाथन ने बताया था, “यह साल 1942 का समय था। गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था। 1942-43 में बंगाल का अकाल पड़ा था। हममें से कई लोग, जो उस समय छात्र थे और बहुत आदर्शवादी थे, खुद से पूछते थे कि हम स्वतंत्र भारत के लिए क्या कर सकते हैं? मैंने बंगाल के अकाल के कारण कृषि का अध्ययन करने का निर्णय लिया। मैंने अपना क्षेत्र बदल लिया और मेडिकल कॉलेज जाने के बजाय कोयंबटूर के कृषि कॉलेज में चला गया।”
बंगाल के अकाल में 20 लाख से 30 लाख लोगों की मौत हुई। अकाल मानव निर्मित था। यह उस समय की ब्रिटिश नीतियों का परिणाम था। अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल अपने सैनिकों तक अनाज पहुंचाने के लिए गुलाम देशों का दोहन किया था।
स्वामीनाथन ने कहा था, “मैंने कृषि अनुसंधान में जाने का फैसला किया। वह भी जेनेटिक्स और ब्रीडिंग के क्षेत्र में। बड़ी संख्या में किसान, चाहे छोटे हों या बड़े, किसी फसल की अच्छी किस्म से फायदा उठा सकते हैं। वहां पहुंचकर मैं जेनेटिक्स के विज्ञान की तरफ अधिक आकर्षित हुआ।”
छोड़ दी IPS की नौकरी?
एक समय ऐसा भी था जब परिवार के दबाव में स्वामीनाथन सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुए थे। उनका चयन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में हो गया था। उसी समय उन्हें जेनेटिक्स में नीदरलैंड में यूनेस्को फ़ेलोशिप का अवसर मिल गया। जीवन के प्रति उनके मिशन और अपने क्षेत्र के प्रति करुणा ने उन्हें जेनेटिक्स को चुनने के लिए प्रेरित किया।
स्वामीनाथन का शोध उन्हें यूरोप और अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में ले गया। स्वामीनाथन ने यूके के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी और अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय से दो साल का पोस्ट डॉक्टरल भी किया था। पोस्ट डॉक्टरल के दौरान उन्होंने आलुओं की अलग-अलग किस्मों की ब्रीडिंग पर काम किया था।
विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने एक प्रतिष्ठित प्रोफेसरशिप के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, उन्होंने कहा था, “मैंने खुद से पूछा, मैंने जेनेटिक्स का अध्ययन क्यों किया? इसका उद्देश्य भारत में पर्याप्त भोजन का उत्पादन करना था। इसलिए मैं वापस आ गया।”
साल 1954 में विदेश से लौटकर स्वामीनाथन कटक के केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में काम करने लगे। कटक चावल अनुसंधान संस्थान में उन्होंने जैपोनिका किस्म के चावलों का जीन इंडिका किस्म के चावलों में स्थानांतरित किया। उन्होंने ज्यादा उपज देने वाली ब्रीड को विकसित करने का पहला प्रयास किया, जो मिट्टी की उर्वरता और पानी की उपयुक्त व्यवस्था करने पर अच्छी फसल दे सकता था।
हरित क्रांति
1954 के अंत में स्वामीनाथन नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में एक सहायक साइटोजेनेटिकिस्ट के रूप में शामिल हुए थे। IARI में स्वामीनाथन ने अधिक उपज देने वाली गंहू की किस्म विकसित करने का काम किया। इसकी आवश्यकता भी थी, क्योंकि आज़ादी के बाद भारतीय कृषि बहुत अधिक उत्पादक नहीं थी। वर्षों के औपनिवेशिक शासन ने इसके विकास को प्रभावित किया और देश के पास इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए संसाधनों की कमी थी। परिणामस्वरूप, चावल और गेहूं जैसे अनाज को भी विदेशों से आयात करना पड़ता था।
1960 के दशक की शुरुआत में भारत का गेहूं और चावल का उत्पादन क्रमशः 10-12 मिलियन टन और 35-36 मिलियन टन पर था। इस वजह से भारत को बड़े पैमाने पर अनाज आयात करना पड़ता था। 1966-67 में 10 मिलियन टन से ज्यादा अनाज आयात करना पड़ा था। स्वामीनाथन की हरित क्रांति ने इस स्थिति को बदल दिया। हरित क्रांति का असर मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में देखने को मिला था।