इमरजेंसी के बाद केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। लेकिन सरकार बनने के कुछ दिनों के अंदर ही जनता पार्टी के नेताओं में मतभेद सामने आने लगे। यहां तक कि मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के रिश्ते भी तल्ख हो गए। चरण सिंह, उस सरकार में गृह मंत्री थे और बाद में उप प्रधानमंत्री भी बने। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में इसका विस्तार से जिक्र किया है।

मोरारजी देसाई पर भड़क गए थे चरण सिंह

चंद्रशेखर लिखते हैं कि एक दिन चौधरी चरण सिंह मुझसे कहने लगे कि मेरा दामाद पुलिस में था। मोरारजी भाई ने बिना मुझसे पूछे उसका तबादला कर विदेश में नियुक्त कर दिया। चरण सिंह ने आगे कहा, मेरा इकलौता बेटा अमेरिका में रहता है। उससे मेरा खास लगाव नहीं है, लेकिन जब कभी मेरा मन उदास होता था तो दामाद के यहां चला जाता हूं। लेकिन मोररजी भाई ने उसको विदेश भेज ठीक नहीं किया। कम से कम एक बार मुझसे पूछ लेना चाहिए था।

चंद्रशेखर लिखते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह ने मुझसे यह बात बताई, उससे पहले तक सियासी गलियारों में चर्चा थी कि खुद चरण सिंह ने ही अपने दामाद की विदेश में नियुक्ति कराई है।

चरण सिंह के साथ दूसरा वाकया

चंद्रशेखर लिखते हैं कि चरण सिंह के साथ एक और वाकया हुआ। एक दिन सुबह-सुबह उनके यहां से मेरे घर फोन आया। दूसरी तरफ जो शख्स था, उसने कहा कि चौधरी साहब कह गए हैं कि मुझे बता दिया जाए कि उनके साथ (चौधरी चरण सिंह के साथ) जो डॉक्टर जाता था, उसे प्रधानमंत्री ने जाने से मना कर दिया है। मैंने मन में सोचा कि यह कैसे हो सकता है? किसी गलतफहमी का नतीजा है। आखिर मोरारजी भाई किसी डॉक्टर को क्यों रोकेंगे?

सुन तमतमा गए थे चंद्रशेखर

बकौल चंद्रशेखर, यह बात मुझे बहुत बुरी लगी। सुबह 7:00 बजे मैंने मोरारजी देसाई को फोन मिला दिया। मैंने प्रधानमंत्री से पूछा कि आपने चौधरी साहब के साथ जाने वाले डॉक्टर को मना करा दिया? वे तपाक से बोले- हां मना करा दिया…। मैंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? मोरारजी भाई का जवाब था कि जब खुद उनके साथ कोई डॉक्टर नहीं जाता है तो चरण सिंह के साथ क्यों जाएगा? मैं उनका जवाब सुनकर हैरान था। मैंने कहा आपको तो कोई रोग नहीं है, लेकिन उनको है, इसलिए उनके साथ डॉक्टर जाता है।

मोरारजी देसाई का जवाब

चंद्रशेखर लिखते हैं कि चौधरी चरण सिंह को हृदय की बीमारी थी और इसलिए जब कभी वह कहीं बाहर जाते थे तो उनके साथ एक डॉक्टर जरूर जाता था। उस दिन चौधरी चरण सिंह को लखनऊ जाना था। जब प्रधानमंत्री ने डॉक्टर को मना करवा दिया तो उनके साथ उनके दामाद डॉक्टर जेपी सिंह छुट्टी लेकर गए। इस तरह की तमाम बातों के चलते जनता पार्टी के नेताओं में तालमेल नहीं रहा और तिल का ताड़ बनने लगा।