Raj Thackeray Maharashtra Election 2024: महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ ही दिनों में जबरदस्त चुनाव प्रचार शुरू होने वाला है। महायुति और महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन की आमने-सामने की जोरदार लड़ाई में छोटे राजनीतिक दल जैसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) भी कुछ जगहों पर पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। मनसे के प्रमुख राज ठाकरे के लिए महाराष्ट्र का यह विधानसभा चुनाव करो या मरो का चुनाव है। महाराष्ट्र के मुद्दों की राजनीति करने के लिए पहचाने जाने वाले राज ठाकरे को अपनी पार्टी को जिंदा रखना है क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में मनसे का ग्राफ लगातार गिरा है।

राज ठाकरे ने इस चुनाव में अपने बेटे अमित ठाकरे को भी मैदान में उतारा है।

महाराष्ट्र का यह विधानसभा चुनाव इसलिए बेहद जोरदार है क्योंकि राज्य में 6 बड़ी पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में बहुमत हासिल करने के लिए महायुति और MVA के बीच सियासी मैदान में जोरदार लड़ाई चल रही है। महाराष्ट्र में सरकार चला रहे महायुति गठबंधन में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल है। जबकि विपक्षी एमवीए में शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस शामिल हैं।

महायुति के साथ नहीं हुआ गठबंधन

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस तरह की अटकलें लगाई जा रही थी कि मनसे का महायुति के साथ गठबंधन हो सकता है लेकिन अंत वक्त तक भी ऐसा नहीं हुआ। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि मनसे महायुति महागठबंधन में शामिल नहीं होगी। फडणवीस ने कहा था कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मनसे ने बीजेपी का समर्थन किया था लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी राहें अलग हो गई हैं। फडणवीस ने राज ठाकरे को अपना दोस्त भी बताया लेकिन कहा कि इस चुनाव में मनसे के उम्मीदवार महायुति के उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

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पहले चुनाव में जीती थी 13 सीटें

मराठी गौरव की बात करने वाले राज ठाकरे ने 2009 के विधानसभा चुनाव में पहली बार अपनी छाप तब छोड़ी थी जब अपने पहले ही चुनाव में मनसे ने विधानसभा की 13 सीटें जीत ली थी लेकिन इसके बाद के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मनसे का वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया। 2019 के विधानसभा चुनाव में मनसे का सिर्फ एक विधायक ही चुनाव जीत सका था।

2019 में किया था बीजेपी का विरोध

राज ठाकरे एक वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक माने जाते थे लेकिन बाद में वह मोदी और बीजेपी के आलोचक बन गए। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तो राज ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए रैलियां भी की थीं लेकिन कांग्रेस-एनसीपी को इसका कोई फायदा नहीं हुआ था।

राज ठाकरे मराठी मानुष से आगे बढ़ते हुए हिंदुत्व की राजनीति के रास्ते तक पहुंचे हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने महाराष्ट्र में मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा का आह्वान करने की अपील की थी। राज ठाकरे ने हिंदू समुदाय और अपनी पार्टी के नेताओं से कहा था कि वे हनुमान चालीसा बजाएं। राज ठाकरे शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी बनना चाहते थे। इसीलिए जब शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथ में आई तो राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली।

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…बीजेपी की ओर आए राज ठाकरे

इस साल अगस्त में राज ठाकरे को इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग की जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने बीजेपी से नजदीकियां बढ़ाई, पार्टी के लिए प्रचार किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच भी शेयर किया है। हाल ही में एक मराठी समाचार चैनल को दिए गए साक्षात्कार में ठाकरे ने कहा था कि शिवसेना के अलावा एकमात्र राजनीतिक दल जिसके साथ मेरा रिश्ता था वह बीजेपी है।

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उद्धव के साथ है राजनीतिक लड़ाई

राज ठाकरे की अपने चचेरे भाई और शिवसेना(UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे से सियासी लड़ाई साफ नजर आती है। इस विधानसभा चुनाव में एक सवाल यह भी है कि राज ठाकरे के द्वारा चुनाव मैदान में उतरने से क्या उद्धव ठाकरे को मराठी वोटों को लेकर कुछ नुकसान हो सकता है? क्योंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत की वजह से भी शिवसेना को काफी राजनीतिक नुकसान हो चुका है।

राज ठाकरे ने पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र में नाकों को टोल फ्री करने को लेकर आवाज उठाई थी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब एकनाथ शिंदे की सरकार ने इसका ऐलान किया तो इससे मनसे की छवि बदली है। टोल फीस हटाने की वकालत करने वाले लोगों के बीच मनसे की छवि आम आदमी के समर्थक वाली बनी थी।

माहिम विधानसभा सीट से अपने बेटे को चुनाव मैदान में उतारकर राज ठाकरे ने एक नई शुरुआत की है। अमित ठाकरे का मुकाबला एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के विधायक सदा सरवणकर और शिवसेना (यूबीटी) के महेश सावंत से है। राज ठाकरे के सामने बड़ी चुनौती अपनी पार्टी को जिंदा रखने के साथ ही अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने की भी है। शिवसेना (यूबीटी) का कहना है कि राज ठाकरे बीजेपी के नजदीक इसलिए गए हैं क्योंकि वह अपने बेटे का राजनीतिक करियर बनाना चाहते हैं।