हरियाणा में विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को पार्टी के विधायकों ने करारा झटका दिया और 2 दिन में ही चार विधायकों ने अपने इस्तीफे पार्टी नेतृत्व को भेज दिए। इसके अलावा तीन और अन्य विधायक भी जेजेपी के साथ नहीं हैं। इस तरह पार्टी के पास अब सिर्फ तीन विधायक ही बचे हैं।

हालांकि यह बात पहले से ही लगभग तय थी कि पार्टी के सात विधायक उसके साथ नहीं हैं लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले जब इसका खुले तौर पर ऐलान हो गया है तो निश्चित रूप से इसका असर पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी पड़ेगा।

इस्तीफा देने वालों में टोहाना से विधायक और पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली, गुहला चीका से विधायक ईश्वर सिंह, उकलाना से विधायक अनूप धानक, शाहबाद से विधायक रामकरण काला शामिल हैं। जेजेपी ने अपने दो विधायकों- नरवाना से राम निवास सुरजाखेड़ा और बरवाला से जोगीराम सिहाग की सदस्यता रद्द करने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस दिया हुआ है। नारनौंद से विधायक रामकुमार गौतम ने पिछले कई सालों से दुष्यंत चौटाला के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।

जेजेपी में बचे सिर्फ 3 विधायक

अब जेजेपी में उचाना कलां से विधायक दुष्यंत चौटाला, बाढड़ा से विधायक उनकी मां नैना चौटाला और जुलाना से विधायक अमरजीत ढांडा ही बचे हुए हैं। इन विधायकों के अलावा लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में बड़ी संख्या में जेजेपी के नेता और कार्यकर्ता अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला को छोड़कर दूसरे दलों में चले जा चुके हैं।

अभय बोले- धोखाधड़ी करने का फल मिला

2019 के विधानसभा चुनाव में पहली बार में ही 10 सीटें जीतकर किंग मेकर की भूमिका में आई जेजेपी को लगे इन झटकों के बारे में पार्टी सुप्रीमो अजय चौटाला के भाई और दुष्यंत चौटाला के चाचा अभय चौटाला ने कहा है कि जेजेपी को इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के साथ धोखाधड़ी करने का फल मिला है।

2018 में इनेलो से अलग होकर जेजेपी बनी थी। 2019 में जेजेपी ने जब पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो उसने सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो का ही किया था। यह चुनाव में मिली सीटों और वोट शेयर से साफ दिखाई देता है।

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इनेलो और जेजेपी में से कौन ज्यादा सीटें जीतेगा? (Source-FB)

सवाल यह है कि जेजेपी में हुई इस बड़ी टूट का क्या कोई फायदा इनेलो को मिलेगा? 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में शानदार प्रदर्शन करने वाली इनेलो को जेजेपी के कमजोर होने से किस तरह फायदा मिल सकता है, पिछले तीन चुनावों के नतीजे से इसका विश्लेषण करना होगा।

2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव को देखें तो इनेलो को जो सीटें मिली थी, उसमें से अधिकतर सीटें पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर, करनाल, जींद, सिरसा और भिवानी के इलाकों से आई थी। लेकिन जब जेजेपी 2019 में मैदान में उतरी तो इन जगहों पर उसने इनेलो को नुकसान तो पहुंचाया ही, पार्टी को चुनावी लड़ाई से भी बाहर कर दिया। वरना हरियाणा में सीधी चुनावी लड़ाई कांग्रेस और इनेलो के बीच ही देखने को मिलती थी।

पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में इनेलो को मिली सीटें

राजनीतिक दलविधानसभा चुनाव 2009 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट
कांग्रेस 401531
बीजेपी 44740
इनेलो31191
जेजेपी10
हजकां(बीएल)62
अन्य978

बीजेपी ने जेजेपी के साथ साढ़े चार साल तक सरकार चलाने के बाद उसे एकदम जिस तरह झटका दिया, उससे भी जेजेपी की छवि पर असर पड़ा क्योंकि बीजेपी ने जेजेपी को बिना बताए ही गठबंधन तोड़ दिया। इससे यह संदेश गया कि बीजेपी को अब जेजेपी के समर्थन की कोई जरूरत नहीं है।

हरियाणा की सरकार से बाहर होने के बाद लोकसभा चुनाव में जेजेपी ने सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन वह एक प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर सकी। कुछ सीटों पर तो हालात इस कदर खराब रहे कि पार्टी 15 से 20,000 वोटों के अंतर पर ही सिमट गई।

इसके अलावा जेजेपी लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर बढ़त नहीं बना सकी।

जेजेपी को लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट

लोकसभा सीट मिले वोट
भिवानी-महेंद्रगढ़15,265 
हिसार22032
गुरुग्राम13,278 
सिरसा20,080 

देवीलाल की विरासत पर कब्जे की कोशिश

जेजेपी की इस खराब हालत का फायदा इनेलो उठाना चाहती है क्योंकि यह बात साफ है कि अगर इनेलो को मजबूत होना है तो इसके लिए पहली शर्त जेजेपी का कमजोर होना ही होगा। क्योंकि यह दोनों ही पार्टियां खुद को देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का राजनीतिक वारिस बताती हैं। इसलिए हरियाणा की राजनीति में खुद को जिंदा रखने के लिए इनेलो और जेजेपी के बीच कड़ा चुनावी मुकाबला होना है।

जेजेपी में टूट के बाद पुराने कार्यकर्ता और मतदाता एक बार फिर इनेलो की ओर आते हैं तो इनेलो फिर से हरियाणा की राजनीति में मजबूत हो सकती है।

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हरियाणा का विधानसभा चुनाव जीत पाएगी बीजेपी?(Source-FB)

अभय ने बनाई किसान समर्थक छवि, कमजोर पड़े दुष्यंत

साल 2020 में जब हरियाणा में किसान आंदोलन की तपिश बहुत ज्यादा थी तो उस वक्त अभय चौटाला ने किसानों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था लेकिन किसानों के पुरजोर विरोध के बाद भी दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं लिया था।

किसानों के समर्थन में इस्तीफा देने के बाद अभय चौटाला ने खुद की छवि किसान समर्थक के रूप में बनाई है जबकि दूसरी ओर दुष्यंत इस मामले में कमजोर साबित हुए और वह बीजेपी के साथ खड़े रहे। निश्चित रूप से उन्हें लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान हुआ और दुष्यंत चौटाला ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि किसानों के गुस्से का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा है।

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प्रत्याशियों के चयन को लेकर सर्वे कराएगी बीजेपी। (Source-FB)

इनेलो को मिला बसपा का साथ, जेजेपी रह गई अकेले

लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद जेजेपी के लिए जरूरी था कि वह आम आदमी पार्टी या बसपा से गठबंधन करे क्योंकि पूरे प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ पाना पार्टी के लिए आसान नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जेजेपी को अकेले ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ा।

जबकि अभय चौटाला ने बसपा के साथ गठबंधन कर राज्य में एक मजबूत नेटवर्क बनाने की कोशिश की है। हरियाणा में दलित मतदाताओं की आबादी 21% है। इनेलो और बसपा अगर जाट और दलित मतदाताओं का गठबंधन बनाने में कामयाब रहे तो निश्चित रूप से अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।

जेजेपी के पास बड़ा चेहरा नहीं, चौटाला इनेलो के साथ

जेजेपी के सामने एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि अजय चौटाला, दुष्यंत चौटाला दिग्विजय और नैना चौटाला की लोकप्रियता इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के मुकाबले कम है। जेजेपी के पास इनके अलावा कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जो उसके लिए पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार कर सके। जबकि इनेलो के पास ओमप्रकाश और अभय चौटाला के अलावा गठबंधन के सहयोगी बसपा नेता आकाश आनंद भी हैं।