Mithun Chakraborty Dadasaheb Phalke Award: बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को भारत सरकार ने दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने का ऐलान किया है। यह पुरस्कार सिनेमा के क्षेत्र में योगदान के लिए सरकार की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले मिथुन चक्रवर्ती ने अपने अभिनय के दम पर लोगों के दिलों पर राज किया है।
पश्चिम बंगाल से आने वाले अभिनेताओं में मिथुन चक्रवर्ती ही ऐसे नाम हैं जिन्हें उत्तर भारत में भी जबरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई। उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बांग्ला फिल्मों से ही की थी। वह हिंदी, बंगाली, भोजपुरी, उड़िया, तेलुगु और तमिल में 350 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके हैं।
अपने डांसिंग स्किल्स के लिए मशहूर मिथुन 80 और 90 के दशक में सुपरस्टार थे और सहायक भूमिकाओं में भी उन्होंने शानदार अभिनय किया है। मृणाल सेन की मृगया (1976), सुरक्षा (1979), बिमल दत्त की कस्तूरी (1980), और ख्वाजा अहमद अब्बास की द नक्सलाइट्स (इसे कान फिल्म महोत्सव में दिखाया गया) जैसी फिल्मों से खुद को शानदार एक्टर के रूप में स्थापित किया। लेकिन मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहेब फाल्के अवार्ड मिलने का एक बड़ा सियासी मतलब भी है। सियासी मतलब इसलिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में मिथुन चक्रवर्ती की राजनीति में भी सक्रियता बढ़ी है।
आइए, एक नजर उनके राजनीतिक करियर पर भी डालते हैं।
मिथुन चक्रवर्ती साल 2013 में तृणमूल कांग्रेस से जुड़े थे। मिथुन की लोकप्रियता को देखते हुए टीएमसी की प्रमुख ममता बनर्जी ने उन्हें राज्यसभा सांसद मनोनीत किया था लेकिन मिथुन ने बीच में ही राजनीति से ब्रेक ले लिया था।
टीएमसी से बीजेपी में आए मिथुन चक्रवर्ती
पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने मिथुन चक्रवर्ती को अपने साथ लाने के लिए पूरी ताकत लगाई। मार्च, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में कोलकाता में मिथुन चक्रवर्ती बीजेपी में शामिल हुए थे। उससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत भी कई बार मिथुन चक्रवर्ती से मुलाकात कर चुके थे।
बीजेपी ने मिथुन चक्रवर्ती को विधानसभा चुनाव में पार्टी का स्टार प्रचारक बनाया। मिथुन ने भी पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया। उस वक्त यह माना जा रहा था कि बीजेपी राज्य में सरकार बना सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने र्विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पूरा जोर लगाया लेकिन पार्टी को 294 में से 77 सीटों पर ही जीत मिली। बीजेपी को मिथुन चक्रवर्ती से जैसी उम्मीद थी वैसी जीत वह पार्टी को नहीं दिला सके।
विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में जिला परिषद और पंचायत के चुनाव में भी टीएमसी का पलड़ा भारी रहा था।
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कई नेताओं ने छोड़ा साथ, लोकसभा चुनाव में घटी सीटें
विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी के भीतर भगदड़ मच गई और कई बड़े नेता पार्टी को छोड़कर चले गए। इनमें मुकुल रॉय, बाबुल सुप्रियो भी शामिल थे। लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य बड़े नेताओं ने यह दावा किया था कि पार्टी को बंगाल में बड़ी जीत मिलेगी। बीजेपी ने बंगाल की 42 में से 35 सीटें जीतने का टारगेट रखा था लेकिन वह 2019 में मिली सीटों से भी काफी पीछे रह गई।
2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 18 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार राज्य में सिर्फ 12 सीटें ही जीत पाई जबकि टीएमसी ने राज्य की 42 में से 29 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की।
पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने का सपना
बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सपना पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने का है। पश्चिम बंगाल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गृह राज्य है लेकिन पार्टी को लगातार मिल रही शिकस्त और गिर रहे ग्राफ की वजह से कार्यकर्ता हताश दिखाई देते हैं।
2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी कई बार पश्चिम बंगाल का दौरा कर चुके हैं। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिलने के बाद राज्य में जब चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव हुए तो उसमें भी बीजेपी सारी सीटें हार गई जबकि 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से तीन सीटों पर जीती थी।
प्रदेश अध्यक्ष नहीं खोज पा रही पार्टी
पश्चिम बंगाल में पिछले कई महीनों से बीजेपी के नए अध्यक्ष की खोज चल रही है। चूंकि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार मोदी सरकार में मंत्री भी हैं इसलिए पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष की खोज कर रही है लेकिन पार्टी में नेताओं के बीच अंदरूनी लड़ाई इतनी तेज है कि पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने में काफी मुश्किल आ रही है। पश्चिम बंगाल में हाल यह है कि बीजेपी के बागी नेताओं ने ही बीजेपी बचाओ मंच बनाया हुआ है।
बीजेपी-टीएमसी के बीच सिमटी सियासी लड़ाई
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक लड़ाई पूरी तरह बीजेपी और टीएमसी के बीच सिमट चुकी है और वाम दल और कांग्रेस असरदार नहीं रह गए हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इन दोनों दलों के बीच ही आमने-सामने का मुकाबला रहता है। बीजेपी को ऐसी उम्मीद है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का दौर खत्म होने के बाद वह राज्य में अपनी सरकार बनाने में कामयाब होगी। अब बंगाल के विधानसभा चुनाव में मुश्किल से पौने 2 साल का वक्त बचा है। ऐसे में बीजेपी का लक्ष्य एक बार फिर पूरी ताकत के साथ बंगाल के चुनाव में जुटकर सरकार बनाने का है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी को अपनी खराब सियासी हालत में मिथुन चक्रवर्ती से बड़ी उम्मीदें हैं। पिछले कुछ महीनों में मिथुन चक्रवर्ती कई बार इस बात का दावा कर चुके हैं कि टीएमसी के 30 से ज्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं और राज्य में जल्द ही बीजेपी की सरकार बनेगी।
बंगाल बीजेपी के पास लोकप्रिय चेहरा नहीं
बीजेपी के पास पश्चिम बंगाल में कोई बड़ा लोकप्रिय चेहरा नहीं है। पार्टी ने बंगाल में लोकप्रिय और भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की लेकिन गांगुली इसके लिए तैयार नहीं हुए।
मिथुन चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल में शहरी और ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं और बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले शायद एक बार फिर उनकी लोकप्रियता से सियासी फायदा हासिल करना चाहती है। मिथुन को देखने और उनके वन-लाइनर भाषणों को बंगाल में लोग काफी पसंद करते हैं।
देखना होगा कि मिथुन चक्रवर्ती को फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान देने से क्या बीजेपी को पश्चिम बंगाल में आने वाले विधानसभा चुनाव में कोई राजनीतिक फायदा मिलेगा?