भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी के सबसे करीबी लोगों में गिना जाता है। पटेल गांधी के अनुयायी थे। पटेल  को भारतीय राजनीति में स्थापित करने श्रेय भी गांधी को ही दिया जाता है। मौलाना आजाद अपनी किताब ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ में लिखते हैं, ”यह गांधीजी थे, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाया। 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया।”

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पटेल ने मुसलमानों की हत्या से किया इनकार

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सीमा के दोनों तरफ जमकर रक्तपात हुआ था। पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अत्याचार हुआ। भारत में मुसलमानों के साथ हिंसा हुई। देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं थी। गृहमंत्री होने के नाते इस पर काबू पाने की जिम्मेदारी पटेल के हिस्से थी। लेकिन महात्मा गांधी सरदार पटेल की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं थे।

हत्या और आगजनी की बढ़ती घटनाओं को देख गांधी ने पटेल से पूछा कि वह इस उत्पात को रोकने के लिए क्या करेंगे। सरदार पटेल ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश करते हुए कहा, जो सूचनाएं आपको मिल रही हैं, वह पूरी तरह अतिरंजित हैं। मुसलमानों के लिए चिंता या भय की बात नहीं है।

पीयूष बबेले की किताब नेहरू मिथक और सत्य में मौलाना आजाद की चर्चित किताब ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ के हवाले से एक महत्वपूर्ण बैठक का जिक्र किया गया है। उस बैठक में नेहरू, गांधी, पटेल और मौलाना शामिल थे।

मौलाना लिखते हैं, ”मुझे अच्छी तरह से एक मौका याद है जब हम तीनों लोग गांधी जी के पास बैठे थे। जवाहरलाल नेहरू ने बड़े दुख के साथ कहा था कि वह दिल्ली में ऐसे हालात बर्दाश्त नहीं कर सकते, जहां मुस्लिम नागरिकों को कुत्त बिल्ली की तरह मारा जा रहा हो।… पटेल ने गांधी से कहा कि जवाहरलाल की शिकायतें पूरी तरह गलत हैं।”

पटेल को गांधी का जवाब

पटेल के जवाब से गांधी को संतोष न था। अंतत: उन्होंने उपवास का फैसला लिया। 12 जनवरी 1948 को शुरु हुआ वह उपवास, गांधी का आखिरी उपवास साबित हुआ। गांधी के इस फैसले से पटेल नाराज थे। 12 जनवरी की शाम फिर चारों नेता मिले। पटेल ने गांधी के उपवास पर सवाल उठाते हुए कहा था, ”गांधीजी इस तरह कर रहे हैं जैसे मुसलमानों की हत्या के लिए सरदार पटेल ही जिम्मदार हों”

इसके जवाब में गांधी ने कहा, ”मैं चीन में नहीं हूं, दिल्ली में हूं। न ही मैंने अपनी आंखें और कान खो दिए हैं। अगर तुम मुझसे आंखों देखी और कानों सुनी पर अविश्वास करने को कहोगे और कहोगे कि मुसलमानों के लिए चिंता की कोई बात नहीं तो निश्चित तौर पर न तो तुम मुझे कुछ समझा सकोगे और न मैं तुम्हें कुछ समझा सकूंगा।” बकौल मौलाना गांधी का यह जवाब सुनकर पटेल उन पर चिल्ला पड़े। नेहरू और मौलाना ने पटेल के इस व्यवहार का विरोध किया।

‘पटेल के खिलाफ था गांधी का उपवास’

पीयूष बबेले की किताब में मौलाना के उस वक्तव्य का जिक्र मिलता है, जिसके मुताबिक गांधी का आखिरी उपवास पटेल के खिलाफ था। मौलाना लिखते हैं, ”गांधीजी ने कहा कि उन्होंने देश के मुसलमानों को अपनी आंखों के सामने मारे जाते हुए देखा। यह सब तब हो रहा है जब उनके अपने वल्लभभाई भारत सरकार के गृहमंत्री हैं और राजधानी की कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हैं।

पटेल न सिर्फ मुसलमानों को संरक्षण देने में नाकाम रहे थे, बल्कि उन्होंने इस बारे में की गई ज्यादातर शिकायतों को बड़े सतही ढंग से खारिज कर दिया था। गांधीजी ने कहा कि उनके पास अब उपवास के सिवा कोई चारा नहीं है। तय कार्यक्रम के मुताबिक उपवास शुरु हुआ। एक तरह से देखा जाए तो उनका उपवास सरदार पटेल के खिलाफ था और पटेल इस बात को अच्छी तरह जानते थे।