Maharashtra Assembly Polls 2024: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सोमवार का दिन बहुत अहम रहा क्योंकि इस दिन मराठा आरक्षण आंदोलन की अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने चुनाव मैदान से हटने का ऐलान कर दिया। यह एक ऐसा घटनाक्रम था जिसकी उम्मीद शायद किसी को भी नहीं थी और निश्चित रूप से लोगों को उनके इस फैसले से हैरानी हुई। पाटिल ने यह भी कहा है कि वह विधानसभा चुनाव में किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेंगे।

मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा समुदाय से भी कहा है कि वह केवल आरक्षण का विरोध करने वाले उम्मीदवारों को हराने के मकसद से वोट ना दें।

मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से मुश्किलों का सामना कर रही बीजेपी को निश्चित रूप से इससे बड़ी मदद मिली है। मनोज जरांगे पाटिल और मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे कार्यकर्ताओं के निशाने पर राज्य में बीजेपी के सबसे बड़े नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस निशाने पर रहे हैं। लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है कि पाटिल के इस फैसले से क्या महाराष्ट्र में महायुति और बीजेपी को फायदा मिलेगा?

निश्चित रूप से मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर महाराष्ट्र में जिस तरह के हालात पिछले 3 साल से थे, उसमें बीजेपी के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल हो रहा था। लोकसभा चुनाव के नतीजों में जब बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले महायुति गठबंधन की सीटें घटी तो यह माना गया कि महायुति को मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से नुकसान हुआ है।

लोकसभा चुनाव 2024 में MVA को हुआ था नुकसान

राजनीतिक दल 2024 में मिली सीटें2019 में मिली सीटें
बीजेपी 923
कांग्रेस131
एनसीपी14
एनसीपी (शरद चंद्र पवार)8
शिवसेना (यूबीटी)9
शिवसेना 718

पीछे क्यों हट गए पाटिल?

सवाल यह खड़ा हो रहा है कि मनोज जरांगे पाटिल ने जब मराठा आरक्षण आंदोलन के लिए इतने वक्त लंबे वक्त तक आंदोलन किया और चुनाव में अपने उम्मीदवारों को ऐलान भी किया था तभी उन्होंने इतना बड़ा फैसला क्यों ले लिया? जबकि एक दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि वह मराठा समुदाय को आरक्षण देने से इनकार करने के लिए सत्तारूढ़ महायुति से बदला लेंगे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में रोते हुए पाटिल ने महायुति पर मराठा समुदाय को अपमानित करने और धोखा देने का आरोप लगाया था।

जरांगे ने दावा किया कि उन्होंने यह फैसला किसी के दबाव में नहीं लिया है बल्कि वह अपनी गुरिल्ला रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। पाटिल ने कहा, “हम इस चुनाव में दलित और मुस्लिम उम्मीदवार उतारने जा रहे थे लेकिन एक जाति के बल पर चुनाव लड़ना और जीतना संभव नहीं है।”

MVA को लगा झटका?

क्या मनोज जरांगे पाटिल के इस फैसले से विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (MVA) को झटका लगा है क्योंकि मराठा आरक्षण के मामले को MVA ने भी उठाया था और इस गठबंधन को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में उसे इस मुद्दे की वजह से राजनीतिक फायदा हो सकता है।

मराठा और ओबीसी समुदाय थे आमने-सामने

बताना होगा कि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से मराठा और ओबीसी समुदाय आमने-सामने आ गए थे और इन दोनों ही समुदायों के बीच तनाव के हालात थे। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी 30 से 32% है जबकि ओबीसी समुदाय की आबादी 40% के आसपास है। राज्य में विधानसभा की 288 सीटें हैं और मराठा समुदाय 80 से 85 सीटों पर हार और जीत का फैसला तय करने की ताकत रखता है।

सियासत में है मराठा समुदाय का असर

महाराष्ट्र की सियासत में मराठा समुदाय की हैसियत इससे समझी जा सकती है कि राज्य में अब तक 12 मुख्यमंत्री इस समुदाय से रहे हैं और मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा ही हैं।

पाटिल के यू टर्न लेने की थी आशंका

पाटिल के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि यह हमारे लिए असली दिवाली है। बीजेपी के प्रवक्ता प्रवीण दारकेकर ने बातचीत में पाटिल के इस फैसले का समर्थन किया। मराठा आरक्षण आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले मराठा क्रांति मोर्चा के एक प्रमुख नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि उन्हें पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा था कि मनोज जरांगे पाटिल यू टर्न ले सकते हैं।

निश्चित रूप से मनोज जरांगे पाटिल का यह फैसला फडणवीस को बहुत राहत देने वाला है। मराठा आरक्षण के आंदोलन पर लाठीचार्ज के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया था।