मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) थमने का नाम नहीं ले रही है। ताजा घटनाक्रम में विद्रोहियों ने राज्य के मंत्री आरके रंजन के घर में आग लगा दी। एक दिन पहले ही विद्रोहियों के हमले में 9 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले 2 महीने से जारी हिंसा के बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह (Nongthombam Biren Singh) पर भी सवाल उठ रहे हैं। उनपर कुकी विद्रोहियों से मिलीभगत का आरोप भी लग रहा है।
दिग्गज फुटबॉलर रहे हैं मणिपुर सीएम
साल 2017 में जब बीजेपी पहली बार मणिपुर में सत्ता में आई थी, तब पार्टी ने एन. बीरेन सिंह का नाम सीएम के लिए प्रस्तावित कर सबको चौंका दिया था। 1 जनवरी 1961 को जन्मे बीरेन सिंह फुटबॉलर रहे हैं और लंबे समय तक बीएसएफ की तरफ से खेला है। BSF की टीम में शामिल होने का किस्सा भी दिलचस्प है। 1979 के आसपास बीरेन सिंह फुटबॉल टीम में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद कर रहे थे। एक दिन, बीएसएफ, जालंधर टीम के कोच की निगाह उन पर पड़ी। कोच उनके खेल से खासा प्रभावित हुए और टीम में शामिल कर लिया। अगले 5 सालों तक (साल1984) तक बीएसएफ की तरफ से खेलते रहे। 1991 में डूरंड कप का फाइनल मुकाबला भी खेला।
एन. बीरेन सिंह (N Biren Singh) का फुटबॉल के प्रति लगाव इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने अपने तीन बच्चों में सबसे छोटे बेटे का नाम ब्राजील के मशहूर फुटबॉलर जीको (Zikho) के नाम पर रखा है और घर पर प्यार से ‘पेले’ (Pele) के नाम से बुलाते हैं।

पुश्तैनी जमीन बेच शुरू किया था अखबार
फुटबॉल की दुनिया को अलविदा कहने के बाद जब बीरेन सिंह वापस मणिपुर वापस लौटे तो बतौर पत्रकार अपना करियर शुरू किया। अखबार निकालने का फैसला किया, लेकिन आर्थिक तंगी रोड़ा बन रही है। बीरेन सिंह ने अपने पिता की 2 एकड़ जमीन बेच दी और Thoudan के नाम से अखबार शुरू किया। देखते ही देखते यह अखबार मणिपुर में खासा चर्चित हो गया।
बीरेन सिंह का ज्यादा वक्त तक पत्रकारिता में मन नहीं लगा और साल 2011 में महज 2 लाख रुपये में अखबार बेच दिया। इसके बाद राजनीति ज्वाइन कर ली। साल 2002 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे। इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक पुराने इंटरव्यू में बीरेन सिंह ने कहा था कि ”भारतीय सेना के प्रति मणिपुर के लोगों के बढ़ते गुस्से ने उन्हें राजनीति ज्वाइन करने को प्रेरित किया था”।

ओकराम इबोबी सिंह से दोस्ती और दुश्मनी की कहानी
फुटबॉल और पत्रकारिता के बाद सियासत के रूप में बीरेन सिंह की तीसरी पारी भी हिट रही। पहला ही चुनाव जीतने में सफल रहे। यही वो दौर था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह (Okram Ibobi Singh) की एन. बीरेन सिंह पर नजर पड़ी। बीरेन सिंह ने कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दिया और बाद में औपचारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल हो गए। साल 2007 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और दोबारा विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। इस बार उन्हें सिंचाई व बाढ़ और खेल मंत्रालय जैसा भारी-भरकम पोर्टफोलिया मिला।
साल 2007 का चुनाव जीतने के बाद बीरेन सिंह एक तरीके से सीएम इबोबी के दाहिने हाथ बन गए। सीएम के सामने जहां भी मुश्किल आती, बीरेन सिंह वहां खड़े हो जाते। कांग्रेस के करीबी सूत्र बताते हैं कि उन दिनों सीएम इबोबी ज्यादातर फैसले बीरेन सिंह के सुझाव पर ही लिया करते थे।
साल 2012 में आया टर्निंग प्वाइंट
साल 2012 आते-आते इबोबी और बीरेन सिंह के रिश्तो में खटास आ गई। 2012 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता में लौटी लेकिन बीरेन सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। कांग्रेस के उनके एक पूर्व साथी कहते हैं, ”उस समय तक एन. बीरेन सिंह की मुख्यमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं थी, लेकिन उन्होंने सीएम के लिए जितना काम किया था उसके बावजूद कैबिनेट में जगह नहीं मिली। यही बात उन्हें अखरी थी”।
2017 चुनाव से पहले BJP में शामिल हो गए
साल 2016 आते-आते बीरेन सिंह बगावत पर उतारू हो गए। उन्होंने 20 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ने की धमकी दी। उस समय इबोबी ने किसी तरह मामले को संभाला। कैबिनेट में बदलाव किया। बीरेन सिंह को पार्टी का उपाध्यक्ष और प्रवक्ता बनाया। हालांकि सिंह इससे संतुष्ट नहीं हुए और आखिरकार साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।
पत्नी और दामाद भी विधायक
कांग्रेस छोड़ते वक्त एन. बीरेन सिंह ने पार्टी पर वंशवाद की राजनीति का आरोप लगाया था और सीएम इबोबी का उदाहरण देते हुए कहा था कि उनकी पत्नी और बेटे दोनों को टिकट मिला। अब बेशक, एन. बीरेन सिंह सीएम हैं तो वहीं उनकी एसएस ओलिश (S S Olish) बीजेपी के टिकट पर विधायक हैं। बीरेन सिंह के दामाद और कांग्रेस के पूर्व नेता आरके इमो (R K Imo) भी MLA हैं और मणिपुर के पावर सेंटर कहे जाते हैं।