दिल्ली हाईकोर्ट की पहली महिला जज और भारतीय हाईकोर्ट के इतिहास में पहली महिला चीफ जस्टिस लीला सेठ महात्मा गांधी की हत्या के वक्त एक कॉलेज छात्रा थीं। 16 वर्ष की उम्र में दार्जिलिंग के लॉरेटो कॉन्वेंट से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद, आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें कलकत्ता (कोलकाता) जाना पड़ा। वह लॉरेटो कॉलेज के बोर्डिंग स्कूल में रहकर पढ़ाई करने लगीं। पढ़ाई तो यहां कॉलेज की होती थी लेकिन नियम-कायदे स्कूल वाले ही थे। पढ़ाई-लिखाई ही नहीं हर गतिविधि पर नजर रखी जाती थी। नियमित रूप से होमवर्क दिया जाता था। इसके बारे में आगे विस्तार से जानेंगे, पहले गांधी हत्या से जुड़ा प्रसंग जान लेते हैं।

जब गांधी की हत्या की मिली खबर

पेंगुइन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा “घर और अदालत” में लील सेठ लिखती हैं, “मुझे 30 जनवरी, 1948 की वह शाम आज भी याद है। हॉस्टल की हम करीब 15 लड़कियां पहली मंजिल की एक क्लास में अपना होमवर्क पूरा करने में जुटी थीं, तभी एक नन ने वहां आकर शांत, लेकिन व्यथित आवाज़ में बताया कि गांधीजी की मौत हो गई है। हम लोग स्तब्ध रह गए और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। उसने बताया कि उन्हें गोली मार दी गई। यह सुनकर तो हमारे पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई। ज्यादातर लड़कियों की जुबान पर बस एक ही सवाल था, ‘ऐसा किसने किया, आखिर किसने?’ इस पर नन ने कहा, ‘इस बारे में तो कुछ पता नहीं पर प्रार्थना सभा के दौरान यह घटना हुई।’ उन्होंने आगे कहा कि अगर हम चाहें तो अपने कमरों में जा सकते हैं लेकिन कॉलेज परिसर से बाहर न जाएं, क्योंकि कुछ भी समस्या खड़ी हो सकती है। नन के जाते ही कमरे में हम सब इकट्ठा होकर खुसर-पुसर करने लगे। हम सब इस घटना से बेहद दुखी थे। अगर नेहरू की पंक्तियों में दोहराऊं तो हमारे जीवन से रोशनी की किरण चली गई थी और हमें लग रहा था कि घना और डरावना अंधेरा घिरता जा रहा है। हम क़यास लगा रहे थे कि आखिर हत्यारा कौन हो सकता है। मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाली महाराष्ट्र की एक लड़की ने काफी गुस्से में कहा, इसके पीछे मुस्लिमों का ही हाथ होगा, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। लेकिन बाद में वह महाराष्ट्र का एक हिंदू निकला, जिसका नाम नाथूराम गोडसे था।”

जब हनुमान बनीं लीला सेठ

भारत अंग्रेजी राज से मुक्त हो चुका था, ऐसे में कॉलेज का संचालन करने वाली आयरिश नन भी कुछ बदलाव चाहती थीं। कॉलेज में आमतौर पर शेक्सपियर के नाटकों या ईसा के जन्म और उनके जीवन पर आधारित नाटक का मंचन होता था। लेकिन उस वर्ष तय हुआ कि किसी भारतीय कथा का मंचन किया जाएगा। शब्दों का कम से कम इस्तेमाल करते हुए राम कथा का संगीतबद्ध मंचन करने का फैसला लिया गया। लेकिन एक समस्या थी। कोई भी हनुमान की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं था।

लीला सेठ लिखती हैं, “कॉलेज की सभी लड़कियां चाहती थीं कि वे साड़ियां और गहने पहनें, खूबसूरत दिखे या फिर राम व लक्ष्मण की सशक्त भूमिकाओं में नज़र आएं। कोई भी लंबी पूंछ वाला बंदर नहीं बनना चाहती थीं, आखिरकार नाटक देखने बहुत सारे लोग आने वाले थे, जिसमें सेंट जेवियर कॉलेज के युवा छात्र भी शामिल थे। नन बहुत दुखी हो गईं, आखिरकार हनुमान के बिना रामायण कैसे हो सकता है? ऐसे में मैंने यह भूमिका निभाने के लिए हामी भर दी और मुझे इसमें बहुत मज़ा भी आया।”

कॉलेज के नियम-कायदे

लॉरेटो कॉलेज किसी भी तरह से प्रेसीडेंसी कॉलेज जैसा नहीं था, जहां विद्यार्थियों को अपनी मर्जी से कहीं आने-जाने की पूरी छूट थी। लॉरेटो कॉलेज नन चलाती थीं और वहां कड़े नियम-कायदों का पालन करना पड़ता था। बकौल लीला “ऐसा लगता था कि यह कॉलेज न होकर एक तरह से स्कूल ही है, इसीलिए हम इसे ‘स्कॉलेज’ भी कहते थे।”

लीला सेठ का कॉलेज मुख्यतः दिन का कॉलेज था और हॉस्टल में रहने वाली लड़कियां बहुत ही कम थीं। वहां एक रजिस्टर रखा रहता था, जिसमें यह दर्ज होता था कि वह कहां गईं, किससे मिलीं और वापस कब लौटीं ताकि अगर ज़रूरत पड़े तो बाद में यह सारा ब्योरा देखा जा सके। किसी युवक से मिलने या उसके साथ बाहर जाने की सख्त मनाही थी।

पहला यादगार मामला

बतौर वकील लीला सेठ का पहला यादगार मामला एक क्रिमिनल केस था। सेठ एक लोको पायलट का केस लड़ रही थीं, जिस पर लापरवाही से ट्रेन चलाने का आरोप लगा था। घटना में लोगों की जान भी गई थी। लेकिन लीला सेठ ने अपनी कड़ी मेहनत से घटना के तकनीकी पहलुओं पर जज का ध्यान दिलाया। अंतत: लोको पायलट जेल जाने और नौकरी खोने से बच गया। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि लोको पायलट ने लीला सेठ को उनकी फीस के रूप में घर का बना घी दिया था। क्या था यह पूरा प्रसंग, विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

leila seth