पटिलाया के सातवें महाराजा सर भूपेंद्र सिंह की गिनती भारत के सबसे खर्चीले राजाओं में होती है। उनकी फिजूलखर्ची के चर्चे यूरोप तक थे। सर भूपेंद्रसिंह के पास अनमोल रत्नों का बड़ा भंडार था, जिसमें 1001 नीले और सफेद हीरों से बना सीने का एक कवच भी शामिल था।
साल 1927 में प्रकाशित ‘द टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब भूपेंद्र सिंह पेरिस पहुंचे थे तब उनके साथ गुलाबी पगड़ी पहने चालीस नौकर चल रहे थे। साथ में बीस पसंदीदा नाचने वाली लड़कियां थीं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वह पेरिस छह ताबूत लेकर पहुंचे थे, जिसमें 7571 हीरे और 1432 पन्ने, नीलम, माणिक और अतुलनीय सुंदरता के मोती भरे हुए थे।
महाराजा भूपेंद्र सिंह के पास पास 44 रोल्स रॉयस और 500 बेहतरीन घोड़े थे, जिनका इस्तेमाल वह पोलो खेलने के लिए किया करते थे।
विलासी था भूपेंद्र सिंह का जीवन
जहां तक महाराजा भूपेंद्र सिंह के निजी जीवन का सवाल है, तो उसे ब्रिटिश इतिहासकार और लेखक लुसी मूर के शब्दों से समझा जा सकता है। सन् 2004 में प्रकाशित अपनी किताब Maharanis में मूर लिखती हैं, “हम सभी के दिन की शुरुआत करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। अंग्रेज अपने दिन की शुरुआत बेकन और अंडे से करते हैं, जर्मन सॉसेज से करते हैं, अमेरिकी अंगूर से करते हैं और महामहिम (भूपेंद्र सिंह) एक कुंवारी लड़की पसंद करते हैं।”
बता दें कि महाराजा भूपेंद्र सिंह के 88 बच्चे थे, जिनमें से 52 अपनी पांच पत्नियों और अन्य सभी हरम की महिलाओं से थे। एक वक्त पर उनके हरम में करीब 350 महिलाएं थीं। वह हरम के लिए महिलाओं का चुनाव खुद करते थे। वह महिलाओं में सुंदरता के अलावा उनके गुण भी देखते थे। उनके हरम में अलग-अलग गुणों की महारथी शामिल थीं।
हरम में था खास प्रयोगशाला
महाराजा भूपेंद्र सिंह का हरम भारत से लेकर यूरोप तक चर्चित था। हरम के कमरों की छतों और दीवारों पर कमात्तेजक कलाकृतियां बनी हुई थीं। वह कलाकृतियों में दिख रही मुद्राओं को हरम की महिलाओं के साथ संभव करने का भी प्रयास करते रहते थे। उन्होंने अपनी सुंदरियों को अपनी रुचि के अनुसार नये-नये रुपों में ढालते रहने का कार्यक्रम भी चला रखा था। इसके लिए जौहरी, फैशन डिजाइनर और मेकअप आर्टिस्ट की पूरी एक फौज काम पर लगी रहती थी।
डोमीनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स की चर्चित किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुताबिक, महाराजा भूपेंद्र सिंह के महल में बकायदा एक प्रयोगशाला भी संचालित होता था, जिसमें फ्रांसीसी, अंग्रेज और हिंदुस्तानी प्लाटिस सर्जनों का एक ग्रुप महाराजा की बदली हुई रुचियों के अनुसार महिलाओं को ढाला करता था।
भूपेंद्र सिंह लंदन की फैशन पत्रिकाओं में छपी महिलाओं को देखकर डिमांड करते थे कि उनके हरम की महिलाओं के शरीर को अमुक मॉडल के शरीर की तरह बनाया जाए। इसके बाद सर्जन महिलाओं के गठन में बदलाव करते थे।
भूपेंद्र सिंह की प्रयोगशाला में रासायनिक विधियों से तरह-तरह के सुगंधित इत्र, मेकअप, लेप-उबटन और औषधियां तैयार की जाती थीं। इसी प्रयोगशाला में महाराजा अपने लिए कामोत्तेजक दवाइयां भी तैयार करवाते थे, जिसमें गोरैया के मांस का भी इस्तेमाल होता था। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)