रिपोर्टर, उपन्यासकार, कहानीकार, स्वतंत्रता सेनानी फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के छोटे से गांव ओराही हिंगना में हुआ था। रेणु ने कालजयी उपन्यास ‘मैला आंचल’ के अलावा पंचलाइट, लाल पान की बेगम, रसप्रिया,जैसी रोचक कहानियां भी लिखी हैं।

वह लेखक होने से पहले एक आंदोलनकारी थे। वह बचपन से ही आजादी की लड़ाई में शामिल रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें दो साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था।

प्रेमी रेणु

क्रांतिकारी और लेखक होने के अलावा रेणु प्रेम भी थे। पहली बार मैट्रिक (10वीं) की परीक्षा में फेल होने के बाद रेणु ने दूसरी बार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। वहीं उन्होंने इंटरमीडिएट (12वीं) की पढ़ाई भी शुरू कर दी। इसी दौरान उन्हें एक सुहास नाम की छात्रा से प्रेम हो गया।

फणीश्वरनाथ रेणु की संक्षिप्त जीवनी लिखने वाले पत्रकार पुष्यमित्र अपनी किताब में बताते हैं कि बीएचयू में पढ़ाई के दौरान ही रेणु को सुहास से प्यार हुआ था। लेकिन चेचक के कारण उस छात्रा की मौत हो गयी। इस घटना का रेणु पर जबरदस्त असर पड़ और वह पढ़ाई लिखाई बीच में ही छोड़कर गांव लौट गए। उन्होंने 12वीं की पढ़ाई तो की लेकिन परीक्षा नहीं दी।

इस तरह हिंदी साहित्य के एक महान लेखक सिर्फ 10वीं पास ही रह गए। हालांकि यह भी दिलचस्प है कि जिस रेणु की रचनाओं को बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, जिनकी कृतियों पर स्टूडेंट्स पीएचडी करते हैं, वह रेणु सिर्फ 10वीं पास हैं।

अस्पताल में नर्स से हो गया था प्यार

साल 1941 में रेणु के पिता ने उनकी शादी रेखा देवी से करा दी। रेणु और उनकी पत्नी को एक बेटी हुई। हालांकि कुछ समय बाद रेखा देवी लकवाग्रस्त हो गईं और अपने मायके रहने लगीं। इसके बाद रेणु आजादी के आंदोलन के साथ-साथ नेपाल की क्रांति में भी शामिल होने होने लगे। इस दौरान वह कई बार जेल गए, जहां उन्हें पुलिस यातना देती। वह लगातार आंदोलन करने और मार खा-खाकर कमजोर हो गए थे।

साल 1944 में जेल में रहते हुए ही उनकी तबीयत इतनी बिगड़ गयी कि उन्हें लगभग मरणासन्न हालत में पटना के पीएमसीएच अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। रेणु अस्पताल के जिस वार्ड में भर्ती थे, उन्हें उसकी ही इंचार्ज लतिका रायचौधुरी से प्यार हो गया। रेणु पर्चियों पर लिख-लिखकर लतिका को संदेश भेजा करते थें, जिसपर वह ध्यान भी नहीं देती थीं।

पुष्यमित्र बताते हैं कि लतिका ने बाद में लिखा की उन्हें रेणु के ठीक होने की उम्मीद नहीं थी। हालांकि वह बच गए और लतिका को पत्र लिखते रहे। लेकिन लतिका ने चिट्ठियों को भी नजरअंदाज किया।

नेपाल की क्रांति के बाद 1951 में रेणु की हालत फिर बिगड़ गयी। उन्हें खून की उल्टी और दस्त होने लगा। रेणु के दोस्तों ने लतिका से संपर्क किया और इलाज की गुहार लगाई। रेणु को मरने की हालत में देखकर उनका मन बदला। लतिका ने रेणु का खूब ख्याल रखा, कई महीनों की सेवा के बाद वह ठीक हो गए।

शादी किए बिना साथ रहने पर हुआ बवाल

लतिका की देखभाल के बाद स्वस्थ होने पर रेणु घर नहीं लौटे। वह सामान लेकर लतिका यहां रहने पहुंच गए। दोनों बिना शादी किए एक साथ चाइल्ड वेलफेयर सेंटर में रहा करते थे। एक रोज सेंटर में इस रिश्ते को लेकर विवाद हो गया और 5 फरवरी, 1952 को दोनों को शादी करनी पड़ गयी। शादी लतिका घर हजारीबाग में हुई है। हालांकि 1951 में रेणु के पिता उनकी दूसरी शादी पद्मा देवी से करा दी थी। पद्मा से भी रेणु को संतान हुए। लतिका से रेणु को कोई बच्चा नहीं हुआ।