अंजिश्नु दास
चुनावी मौसम में भारत का वातावरण गर्म रहने वाला है। इस सप्ताह की शुरुआत में मौसम विभाग (India Meteorological Department) ने अनुमान लगाया था कि अप्रैल से जून तक देश के अधिकांश हिस्सों में भयंकर गर्मी पड़ सकती है।
इस बीच 10 से 20 दिनों तक हीट वेव चल सकती है। अनुमान है कि हीट वेव 19 अप्रैल से 1 जून तक होने वाले लोकसभा चुनाव के मतदान के बीच में ही चलेगी।
पहले गर्मियों में नहीं होते थे आम चुनाव
पहले आम चुनाव गर्मियों में नहीं होते थे। चुनाव आयोग आम तौर पर सर्दियों के महीनों में चुनाव निर्धारित करता था। 1952 में पहले चुनाव के लिए जनवरी में मतदान हुआ था। शुरुआत के 10 चुनावों में से केवल तीन चुनावों की तारीख मार्च तक गई। लेकिन 1991 में नौवीं लोकसभा का कार्यकाल समय से पहले समाप्त हो गया और नए चुनावों की आवश्यकता हुई, तब मतदान की तारीखें 5 जून तक बढ़ गईं।

कब से अप्रैल-मई में हो रहे हैं चुनाव?
1998 और 1999 के ऑफ-साइकिल चुनाव क्रमशः फरवरी और सितंबर-अक्टूबर में हुए थे। अगर 1998 और 1999 को अफवाद स्वरूप छोड़ दें तो 1996 के बाद के चुनाव अप्रैल से मई तक हुए हैं। 2004 से आम चुनाव लगातार अप्रैल-मई में हो रहे हैं।
गर्मी और मतदान के दिन
1952 और 2019 के बीच भारत का वार्षिक औसत तापमान लगभग 24°C और 26°C के बीच रहा। लेकिन मतदान के महीनों के दौरान औसत तापमान में लगातार वृद्धि हुई है क्योंकि चुनाव कैलेंडर में और नीचे खिसक गए हैं।
यदि 1952 के शीतकालीन चुनावों में मतदान के दौरान औसत तापमान 18.67 डिग्री सेल्सियस था, तो 2019 के आम चुनाव में औसत तापमान 29.55 डिग्री सेल्सियस था, औसत अधिकतम तापमान 35.28 डिग्री सेल्सियस था।
मतदान के दौरान तापमान में वृद्धि के बावजूद राष्ट्रीय औसत मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ा है। 1957 में केवल 45.7% वोटिंग हुई थी, जो 2019 में रिकॉर्ड स्तर तक बढ़कर 67.4% पहुंच गई थी।
1962 के बाद से मतदान 55% से नीचे नहीं गिरा है, यहां तक कि पहली बार (1991) जब गर्मी में चुनाव हुआ था, तब भी 55.9% मतदाताओं ने मतदान किया था।
मतदान के दौरान चलेगी लू!
अब जब आम चुनाव के महीने आते हैं तो उच्च औसत तापमान गर्मी की लहरों की बढ़ती आवृत्ति के साथ मेल खाता है। आईएमडी गर्मी की लहर को उस अवधि के रूप में परिभाषित करता है जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस या पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, और सामान्य अधिकतम तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक होता है।
यदि अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो यह घोषित कर दिया जाता है कि हीट वेव चल रही है; जबकि “गंभीर” हीट वेव का मतलब 47°C से ऊपर का तापमान होता है।

हाल के दशकों में हीट वेव की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ रही हैं। आईएमडी के स्टेशनों द्वारा दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक हीट वेव की संख्या बढ़ती जा रही है। 1970 और 2019 के बीच देश भर में ऐसे दिनों की औसत संख्या सालाना 90 से अधिक हो थी।
2020 और 2021 में हीट वेव के दिनों की संख्या रिकॉर्ड रूप से गिरावट दर्ज की गई, दिनों की संख्या क्रमश: 42 और 36 रहीं। लेकिन 2022 में हीट वेव वाले 205 दिन थे।
इस साल आईएमडी ने अगले तीन महीनों में 10 से 20 दिनों (सामान्य 4 से 8 दिनों के मुकाबले) तक हीट वेव चलने की भविष्यवाणी की है, जिनमें से कई अप्रैल और जून के बीच चलेंगी। प्री-मानसून में शुष्कता और पानी की कमी से भी गर्मी बढ़ने की संभावना है।
चुनाव पर गर्मी का असर
भारत में जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक भागीदारी पर केंट विश्वविद्यालय के अमृत अमीरापु और इरमा क्लॉट्स-फिगुएरस और लंदन विश्वविद्यालय के जुआन पाब्लो रुड द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि गर्मी असल में वोटिंग प्रतिशत को बढ़ा रही है।
2008 और 2017 के बीच हुए विधानसभा चुनावों के अध्ययन से यह मालूम चलता है कि जब मौसम ज्यादा गर्म होता है तो वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है। दरअसल, तापमान 36 डिग्री सेल्सियस के पार जाने और कृषि उत्पादन में गिरावट आने पर वोटिंग बढ़ता जाता है। वहीं जब तापमान कंट्रोल में रहता है और कृषि उत्पादन बढ़ता है तो मतदान प्रतिशत कम हो जाता है।
अध्ययन का निष्कर्ष यह था कि यदि चुनाव से पहले वर्ष में औसत तापमान सीमा से 1 डिग्री सेल्सियस अधिक था, तो लगभग 1.5% अधिक मतदान हुआ।