लोकसभा चुनाव 2024 अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। चुनाव के लिए दो महीने तक चले लंबे अभियान में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन दोनों के बीच तीखी जुबानी जंग देखने को मिली। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस केएम जोसेफ ने चुनावों में वोट पाने के लिए धर्म, भाषा और जाति के इस्तेमाल के आधार पर वोट की अपील को कानूनी तौर पर गलत बताया। जस्टिस ने कहा कि चुनाव आयोग को इसके खिलाफ ब‍िना देर क‍िए कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर आयोग ऐसा नहीं करता है तो यह संव‍िधान के प्रत‍ि सबसे बड़ा नुकसान होगा।

एर्नाकुलम के सरकारी लॉ कॉलेज में ‘बदलते भारत में संविधान’ विषय पर आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा, “वोट पाने के लिए धर्म, नस्ल, भाषा, जाति का इस्तेमाल वर्जित है। चुनाव आयोग को इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, समय रहते सख्‍त कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे मामलों को पेंडिंग नहीं रखना चाहिए। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो वे संविधान का सबसे बड़ा नुकसान कर रहे हैं।”

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अभिराम सिंह बनाम सीडी कॉमाचेन मामले में दिए गए फैसले में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(3) की व्याख्या की है और कहा है कि धर्म के आधार पर किसी उम्मीदवार या उसके प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ मतदाता से अपील वर्जित है।

जस्‍ट‍िस जोसेफ की बात यहां सुन सकते हैं:

‘चुनाव अभियान में धर्म का कोई स्थान नहीं’

जस्टिस ने कहा, “चुनाव अभियान में धर्म का कोई स्थान नहीं है। धर्म के लिए अपील तथ्यों के आधार पर, चुनावी भाषणों में इस्तेमाल किए गए शब्दों के आधार पर तय किया जाने वाला मामला है। आपको यह समझना होगा कि नेता अपनी सीमाएं अच्छी तरह से जानते हैं। मैं कहूंगा उन पर आदर्श आचार संहिता और कानून दोनों के तहत कार्रवाई की जा सकती है, अगर वे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से कोई भी ऐसा तरीका अपनाते हैं, जिससे धर्म के आधार पर उन्हें वोट मिलेंगे। मेरा मानना ​​है कि जिन चीजों को आधार बना कर आप वहां तक जा रहे हैं और जो उसके परिणाम होंगे दोनों महत्वपूर्ण हैं। राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना केवल लोगों की सेवा करने का एक साधन हो सकता है। जिस माध्यम से आपको राजनीतिक शक्ति मिलती है वह पवित्र होना चाहिए।”

जस्‍ट‍िस जोसेफ ने यह बात ऐसे वक्‍त कही है जब लोकसभा चुनाव 2024 के लंबे प्रचार के दौरान तमाम नेताओं ने धर्म और जात‍ि से संबंध‍ित तीखे बयान द‍िए और इनके आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोश‍िश की।

चुनाव अभियान ने बदली अपनी दिशा

वादों और गारंटी के साथ शुरू हुआ लोकसभा चुनाव 2024 का प्रचार अभियान बाद में धर्म, जाति की ओर मुड़ गया। एनडीए और इंडिया, दोनों ने अपनी-अपनी “गारंटी” के साथ प्रचार शुरू किया था, पर दोनों पक्षों ने बीच में ही अपनी-अपनी दिशा बदल ली।

भाजपा ने जहां कांग्रेस पर कमजोर वर्गों की संपत्ति को मुस्लिमों को पुनर्वितरित करने और ओबीसी का आरक्षण छीन कर मुसलमानों में बांटने का इरादा रखने का आरोप लगाया। वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सत्ताधारी पार्टी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा छीनने के लिए संविधान को बदलना चाहती है।

बीजेपी का चुनाव अभियान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 मार्च को उत्तर प्रदेश के मेरठ से भाजपा के अभियान की शुरुआत की और विकास की जोरदार वकालत की। उन्होंने सभा में कहा, “आपने अब तक विकास का केवल एक ट्रेलर देखा है। यह चुनाव सिर्फ एक सरकार चुनने के लिए नहीं है, बल्कि विकसित भारत बनाने के लिए है।”

कांग्रेस का ‘न्याय पत्र’

कांग्रेस ने 28 दिसंबर 2023 को अपने 138वें स्थापना दिवस पर नागपुर से चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। पार्टी के चुनावी घोषणापत्र, ‘न्याय पत्र’ में 25 गारंटियां शामिल हैं, जिनमें 30 लाख सरकारी नौकरियों को भरना, सभी गरीब परिवारों की महिला मुखिया के लिए 1 लाख रुपये और देशव्यापी जाति जनगणना के बाद आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाना शामिल है।

विकास और हिंदुत्व की कितनी बात?

शुरुआत में बीजेपी का प्रचार अभियान विकास और हिंदुत्व पर आधारित रहा। पार्टी को मोदी की लोकप्रियता का लाभ उठाने, उनकी स्वच्छ छवि, कड़े फैसले लेने की क्षमता को हाइलाइट करने के लिए कहा गया था। बीजेपी ने पूरे किए गए वादों की एक लंबी सूची तैयार की जो उसके घोषणापत्र का हिस्सा थे। इस लिस्ट में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, आर्टिकल 370 को निरस्त करना, सीएए के माध्यम से तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करना शामिल है।

पहले चरण के मतदान के बाद शुरू हुआ ध्रुवीकरण का खेल

19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के दो दिन बाद, राजस्थान के बांसवाड़ा में पीएम मोदी के एक भाषण ने हंगामा खड़ा कर दिया। उन्होंने कांग्रेस पर लोगों की संपत्ति छीनने और इसे घुसपैठियों और उन लोगों के बीच वितरित करने का आरोप लगाया जिनके अधिक बच्चे हैं। भाजपा ने कांग्रेस के घोषणापत्र को भी शुरू में मुस्लिम लीग की छाप वाला और बाद में माओवादी दस्तावेज़ जैसा करार दिया था।

पीएम मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्व PM मनमोहन सिंह ने इस बात की वकालत की थी कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इस दावे को कांग्रेस ने सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मनमोहन सिंह ने एससी, एसटी, महिलाओं और गरीब मुसलमानों के लिए पहले अधिकारों की बात की थी। पीएम मोदी के इस बयान पर जमकर हंगामा हुआ। विपक्षी दलों ने भाजपा पर ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया।

आरक्षण का मुद्दा

जाति आधारित आरक्षण का मुद्दा भी इस चुनाव में एक अहम मुद्दा बना। विपक्ष ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह 400 से अधिक सीटें जीतना चाहती है ताकि वह संविधान को बदल सके और जाति के आधार पर कोटा को खत्म कर सके। वहीं, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जाति-जनगणना की वकालत की। कांग्रेस ने एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षण पर लगी 50% की सीमा बढ़ाने का वादा किया था।

नेताओं की एक-दूसरे पर व्यक्तिगत टिप्पणियां

अभियान के अंतिम दिनों में व्यक्तिगत टिप्पणियाँ अभियान पर हावी रहीं। पीएम मोदी ने कई इंटरव्यू दिए, जिसमें उनके जीवन और राजनीतिक यात्रा के बारे में बात की गईं।पीएम मोदी ने ऐसे ही एक टेलीविजन इंटरव्यू में कहा था, “जब तक मेरी मां जीवित थी, मैं सोचता था कि मैं बायोलॉजिकली पैदा हुआ हूं। उनके निधन के बाद जब मैं अपने अनुभवों को देखता हूं तो मुझे यकीन हो जाता है कि मुझे भगवान ने भेजा था।”

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि पीएम को परमात्मा ने उद्योगपतियों, गौतम अडानी और मुकेश अंबानी की मदद करने के लिए भेजा था।

कुल मिलाकर, इस बार चुनाव अभियान ने जाति, कोटा, संविधान, सांप्रदायिकता, हिंदुत्व और नौकरियों के मुद्दों को उछाला। भाजपा के लिए मोदी उसके मुख्य आकर्षण और स्टार प्रचारक थे। वहीं, विपक्ष के लिए क्षेत्रीय नेताओं और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने अभियान संभाला।