साल 1967 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने अपने समाजवादी एजेंडा को जमकर बढ़ावा दिया था। दो ऐसे फैसले भी लिए जिनका आज तक जिक्र होता है- पहला था बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दूसरा था राजे-रजवाड़ों का प्रिवीपर्स बंद करना।
इंदिरा गांधी की जीवनी ‘इंदिरा- भारत की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री’ (जगरनॉट बुक्स) में सागरिका घोष लिखती हैं, “राजे-रजवाड़ों के लिए लागू विशेषाधिकार को खत्म करने के लिए इंदिरा गांधी सितंबर 1970 में बाकायदा संविधान संशोधन विधेयक लेकर आई थीं। अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों के खिलाफ लड़ाई का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता था कि सामंतवादी महाराजाओं के विरुद्ध मोर्चा खोला जाए जिन्हें खजाना और जमीन-जायदाद विरासत मिले थे। इस कार्रवाई से भारत सरकार के खजाने को सालाना 60 लाख डॉलर से अधिक राशि की बचत हुई।”
इंदिरा ने कहा, “लोगों को सबसे ज्यादा प्रिवीपर्स नहीं बल्कि बाकी सुविधाएं बुरी लगती थीं, पूर्व राजे-महाराजे मुफ्त की बिजली और पानी का मजा लेते थे। गरीब से गरीब आदमी को भी पानी का बिल चुकाना पड़ता था मगर राजे-महाराजों को नहीं! …यही सब विशेषाधिकार आम आदमी की आँख में खटकते थे।” हालांकि जब जब राज्यसभा में इंदिरा का विधेयक पास नहीं हो सका तो उन्होंने राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करवा कर इसे कानूनी जामा पहना दिया।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्स के खात्मे ने इंदिरा की गरीबपरस्त छवि बना दी। जनता को इंदिरा के फैसले खूब पसंद आ रहे थे। ऐसे में माहौल को भांपते हुए इंदिरा ने अपने प्रधान सचिव परमेश्वर नारायण हक्सर (पीएन हक्सर) की सलाह पर 1971 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी।
गरीबी हटाओ के नारे के साथ मैदान में उतरीं इंदिरा
मध्यावधि चुनाव में इंदिरा ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ उतरीं। माना जाता है यह नारा हक्सर के दिमाग में उपज थी। इंदिरा के ‘गरीबी हटाओ’ नारे का जवाब विपक्षी दलों ने ‘इंदिरा हटाओ’ नारे से दिया। जाहिर है जहां इंदिरा का नारा समाज में समाज में परिवर्तन का आह्वान वाला था। वहीं विपक्षी दलों का नारा बेहद निजी था।
इंदिरा अपने चुनाव प्रचार में गरीबी को मुद्दा बना रही थीं। लेकिन विपक्षी दल बार-बार इंदिरा गांधी को ही मुद्दा बना रहे थे। सागरिका घोष लिखती हैं, “रायबरेली के लोग याद करते हैं कि चुनावी सभाओं में इंदिरा कैसे विपक्ष के महागठबंधन का मखौल उड़ाती थीं। अपनी सभाओं में इंदिरा कहती थीं- वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ।” बता दें कि विपक्षी गठबंधन में तब जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, कांग्रेस (संगठन), समाजवादी और अन्य शामिल थे।
“मैं हूं मुद्दा”
चुनाव प्रचार के दौरान न्यूज़वीक पत्रिका के संवाददाता ने जब इंदिरा से पूछा कि चुनाव के प्रमुख मुद्दे क्या हैं? तब इंदिरा ने जवाब दिया- मैं हूं मुद्दा।
सागरिका लिखती हैं, “चुनाव प्रचार के दौरान 43 दिन में उन्होंने 36,000 किमी से अधिक फासला तय करके 300 से ज्यादा चुनाव सभाओं में भाषण दिए और उन्हें दो करोड़ से अधिक लोगों ने सुना और देखा। उन्हें उनकी मेहनत का जबरदस्त इनाम मिला। नई कांग्रेस (आर) को 1971 में लोकसभा की 352 सीटों पर जबरदस्त जीत मिली। उन्हें 1971 में 18 मार्च को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।”