लोकसभा चुनाव 2024 की बढ़ती सरगर्मी के बीच पप्पू यादव आजकल चर्चा में हैं। हाल ही में वह कांग्रेसी हुए और एक अप्रैल को उन्होंने पूर्णिया (बिहार) से अपनी उम्मीदवारी का ऐलान भी कर दिया। खुद ही। बोले- 4 अप्रैल को नामांकन करूंगा।
पप्पू यादव के नाम से मशहूर राजेश रंजन मधेपुरा से सांसद रहे हैं और जन अधिकार पार्टी (JAP) के संस्थापक भी रहे। उन्होंने 2015 में यह पार्टी बनाई थी।
पप्पू यादव की पहली राजनीतिक बाधा थे लालू यादव
दबंग छवि वाले इस यादव नेता की राजनीतिक तरक्की में तीन बड़ी बाधाएं रहीं। पहला लालू प्रसाद। बिहार में लालू प्रसाद यादवों के वह नेता हैं, जिनका कद पप्पू यादव से कहीं बड़ा है। कह सकते हैं कि तीन-चार दशक में बिहार में लालू से बड़ा यादवों का कोई नेता नहीं है।
पप्पू यादव के राजनीतिक सफर में दूसरी बाधा 1998 में हुई सीपीआई (एम) के नेता अजीत सरकार की हत्या का केस रहा। हालांकि, पप्पू यादव इस मामले में बरी हो गए, लेकिन इससे उनका राजनीतिक सफर जरूर अवरुद्ध हुआ।
पप्पू यादव की एक और सीमा यह रही कि कोसी क्षेत्र के सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और सीमांचल के पूर्णिया के अलावा अपना जनाधार नहीं बना पाए।
दादा प्यार से पप्पू बुलाते थे
पप्पू यादव का जन्म मधेपुरा के कुमारखंड में हुआ था। उनके दादा बांका के भड़को से कुमारखंड चले गए थे। दादा प्यार से उन्हें पप्पू बुलाते थे। बाद के सालों में यही नाम उनकी पहचान बन गया।
पप्पू यादव ने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद के सालों में उन्होंने ‘डिप्लोमा इन डिजास्टर मैनेजमेंट’ और ‘मानवाधिकार’ में डिप्लोमा हासिल किया।
पहली बार निर्दलीय बने थे विधायक
पप्पू यादव पहली बार 1990 में मधेपुरा की सिंघेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक बने (तब जनता दल ने उन्हें टिकट नहीं दिया था)। चुनाव के बाद, वह लालू प्रसाद यादव के साथ हो लिए थे। तब पहली बार लालू की सरकार बनी थी।
जब लालू यादव ने दी चेतावनी
1990 में ही नौगछिया (भागलपुर) में एक नरसंहार हुआ था। पप्पू यादव वहां दौरा करने चले गए थे। लालू ने उन्हें तुरंत चेताया- यादवों का नेता बनने की कोशिश मत करो। कुछ और बातों को लेकर मतभेद बढ़े तो पप्पू यादव ने अपनी अलग राह पकड़ ली और फिर निर्दलीय हो गए।
पहली बार निर्दलीय बने थे सांसद
1991 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय सांसद बने, लेकिन मतदान में धांधली के आरोपों के बीच चुनाव को रद्द कर दिया गया। उस चुनाव में पप्पू यादव को मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे शरद यादव ने अपना राजनीतिक प्रबंधक बनाया था। उन्होंने आनंद मोहन को हराने में अहम भूमिका अदा की। लेकिन, बाद में शरद यादव से पप्पू यादव का मतभेद हो गया। मसला इस बार भी वही था। यादवों का नेता बनने और इलाके में वर्चस्व कायम करने की लड़ाई।
जीत में मदद करने वाले शरद यादव को हराया
2014 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने मधेपुरा से उन्हीं शरद यादव को हराया जिन्हें जिताने में कभी उनकी मदद की थी। राजद ने उन्हें मधेपुरा से तीन बार सांसद बनवाया।
22 साल में बनाई दो पार्टी
1993 में पप्पू यादव ने बिहार विकास पार्टी बनाई थी, जिसका बाद में समाजवादी पार्टी में विलय हो गया था। 1995 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दो सीटें जीतीं। 2015 में उन्होंने जन अधिकार पार्टी बनाई थी, जिसका अब कोई वजूद नहीं है।
पप्पू यादव की पत्नी रंजीत कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से तीन बार की सांसद हैं। रंजीत सिख हैं। उन्हें पटना में लॉन टेनिस खेलते हुए देखकर पप्पू यादव को उनसे प्यार हो गया था। उनका बेटा सार्थक क्रिकेटर है।
पूर्णिया का समीकरण
पप्पू यादव पूर्णिया से तीन बार सांसद रहे हैं। पहली बार साल 1991 वह निर्दलीय सांसद बने थे। दूसरी बार 1996 में समाजवादी पार्टी की टिकट से सांसद बने। तीसरी बार 1999 में एक बार फिर निर्दलीय सांसद चुने गए।
कभी पूर्णिया लोकसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। 1957 से 1967 तक कांग्रेस के फणी गोपाल सेन गुप्ता तीन बार सांसद बने थे। 1971 में कांग्रेस के मोहम्मद ताहिर को जीत मिली थी। लेकिन आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। लोकदल के लखनलाल कपूर को जीत मिली थी। हालांकि अगले ही चुनाव में कांग्रेस की वापसी हो गई। 1980 और 1984 में कांग्रेस की टिकट पर माधुरी सिंह सांसद बनी। इसके बाद पूर्णिया सीट से आज तक कोई कांग्रेस उम्मीदवार नहीं जीता है।
पिछले दो चुनाव से इस सीट से जदयू के संतोष कुशवाहा सांसद चुने जा रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा को 55.75 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के उदय सिंह को 32.54 प्रतिशत वोट मिले थे।