लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कुछ सप्ताह में मतदान होना है। लेकिन बिहार में कांग्रेस संकट के दौर से गुजर रही है। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इसके पहले दो कांग्रेस विधायक पाला बदलकर एनडीए में चले गए थे।

अब आलम यह है कि कांग्रेस को अपने हिस्से की सीटों पर चुनाव लड़वाने के लिए उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। महागठबंधन के सीटों बंटवारे में कांग्रेस के खाते में नौ सीटें गई हैं, जिनमें से मात्र दो पर पार्टी उम्मीदवार उतार पायी है, सात के लिए अब भी प्रत्याशियों की तलाश जारी है।

दिलचस्प है कि कांग्रेस ने दो तीन सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है, वहां मुकाबला जदयू नेताओं से हैं, जबकि जिन सात सीटों पर प्रत्याशी की तलाश जारी है, उनमें से पांच पर सीधा मुकाबला भाजपा से है।

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बिहार में कांग्रेस की सीट

किन सीटों पर उतारे उम्मीदवार, किससे है मुकाबला?

कांग्रेस ने किशनगंज से डॉ. मोहम्मद जावेद और कटिहार से तारिक अनवर उम्मीदवार बनाया है। इन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार का मुकाबला जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेताओं से है।

किशनगंज से पिछली बार कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को ही जीत मिली थी। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जदयू के सैयद महमूद अशरफ थे। इस बार जदयू ने किशनगंज से मुजाहिद आलम को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में जावेद को 33.92 प्रतिशत और अशरफ को 30.74 प्रतिशत वोट मिले थे।

कटिहार में कांग्रेस के तारिक अनवर का मुकाबला जदयू के दुलाल चंद गोस्वामी से है। वह सीटिंग सांसद भी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तारिक अनवर ने दुलाल चंद गोस्वामी को कड़ी टक्कर दी थी। गोस्वामी को 50.99 प्रतिशत और अनवर को 45.77 प्रतिशत वोट मिले थे।

भागलपुर से कांग्रेस अजीत शर्मा को उम्मीदवार बना सकती है। हालांकि नाम अभी फाइनल नहीं हुआ है। भागलपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार का मुकाबला जदयू नेता और सीटिंग सांसद अजय मंडल से होगा। पिछली बार यह सीट राजद के हिस्से था और शैलेश कुमार की बुरी हार हुई थी। मंडल को 61.61 प्रतिशत और कुमार को 33.69 प्रतिशत वोट मिले थे।

तीनों सीटों पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान है।

भाजपा से किन-किन सीटों पर मुकाबला?

कांग्रेस के खाते में गई कुल नौ सीटों में से तीन पर उसका मुकाबला जदयू, पांच पर भाजपा और एक पर लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) से है।

सीटपार्टी
मुजफ्फरपुरभाजपा
महाराजगंजभाजपा
पश्चिमी चंपारणभाजपा
पटना साहिबभाजपा
सासारामभाजपा
समस्तीपुरLJP-R
कांग्रेस उम्मीदवारों का इन पांच सीटों पर भाजपा से मुकाबला

किसने-किसने छोड़ी कांग्रेस?

पिछले कुछ महीनो में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा के अलावा दो विधायक मुरारी गौतम और सिद्धार्थ सौरभ ने भी कांग्रेस के किनारा कर लिया है। सीएम नीतीश कुमार के एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाने के दौरान दोनों कांग्रेस विधायक भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में चले गए थे। दोनों विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष को कहा है लेकिन कार्रवाई नहीं हुई है। हालांकि दोनों विधायकों ने भाजपा तक किसी दूसरी पार्टी की सदस्यता नहीं ली है।

इन नेताओं के अलावा बिहार यूथ कांग्रेस अध्यक्ष तरुण चौधरी, प्रेदश प्रवक्ता कुंतल कृष्णन, NSUI पदाधिकारी मनीष और पीसीसी मेंबर अजय सिंह टुन्नू ने पार्टी छोड़ दी है। नाम और पद से पता चल रहा है कि कांग्रेस के विभिन्न धड़ों में संकट की आंधी चल रही है।

24 साल में पांच प्रदेश अध्यक्षों ने छोड़ी कांग्रेस

31 मार्च को पार्टी छोड़ते हुए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने आरोप लगाया था कि सोनिया गांधी ने बिहार कांग्रेस को राजद के हाथों गिरवी रख दिया है। 2004 से अब तक कुल पांच प्रदेश अध्यक्ष पार्टी छोड़ चुके हैं।

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लोकसभा चुनाव 2024

बिहार में कांग्रेस का अवसान

बिहार में कांग्रेस का वोट शेयर पिछले कुछ दशकों में लगातार गिरा है। 1984 में राज्य के भीतर पार्टी का वोट शेयर 51 प्रतिशत से ज्यादा था। पिछले चुनाव में यह आंकड़ा 7.7 प्रतिशत दर्ज किया गया था।

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कांग्रेस के वोट प्रतिशत का ग्राफ

चार दशक पहले जहां थी भाजपा वहां पहुंची कांग्रेस

1984 में बिहार में कांग्रेस का वोट शेयर 51.84 प्रतिशत था। तब भाजपा को मात्र 6.92 प्रतिशत वोट मिले थे। पिछले चुनाव (2019) में भाजपा को 23.57 प्रतिशत वोट मिले थे वहीं कांग्रेस को 7.7 प्रतिशत से संतोष करना पड़ा था।

1984 में भाजपा और कांग्रेस:

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सोर्स- TCPD

2019 में भाजपा और कांग्रेस:

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सोर्स – TCPD

पिछले तीन चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र दो सीटों पर जीत मिली थी लेकिन वोट शेयर 10.26 प्रतिशत से ज्यादा था। 2014 में सीटें तो दो ही रहीं लेकिन वोट प्रतिशत घटकर 8.42 हो गया। पिछले चुनाव में सीट एक हो गई और वोट प्रतिशत 7.7 प्रतिशत रह गया।

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 2009 में कांग्रेस बिहार के भीतर अकेले चुनाव लड़ी थी, तब भी 10 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। लेकिन 2014 में राजद और 2019 में राजद, रालोसपा, वीआईपी और हम के साथ गठबंधन करने के बाद भी पार्टी का वोट प्रतिशत गिर गया।

कांग्रेस के अवसान का कारण

जानकार मानते हैं क‍ि हाल के वर्षों में कांग्रेस के राजनीत‍िक प्रदर्शन में ग‍िरावट की एक प्रमुख वजह मजबूत नेतृत्‍व का अभाव है। राज्‍य क्‍या, राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी सबल नेतृत्‍व की कमी की बात अक्‍सर पुराने कांग्रेसी भी मानते रहे हैं। पार्टी अपनी नीत‍ियों को जनता तक पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पा रही और न ही उसके पास इतने कार्यकर्ता हैं क‍ि सीधे मतदाताओं से पार्टी का जुड़ाव बनाए रख सकें।