बारामती लोक सभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान एक ऑटो रिक्शा पर ऊंची आवाज में नारा सुनाई देता है…अबकी बार सुनेत्रा पवार।
अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने बीजेपी के…अबकी बार 400 पार वाले नारे से मिलता-जुलता यह नारा बनाया है। लेकिन बारामती में पवार सरनेम पर अधिकार को लेकर एक अलग ही कहानी सामने आती है। बारामती में जो लोग पवार साहेब कहते हैं, उससे पता चलता है कि वह किसे वोट देंगे, वे लोग दो पवार की बात को ग़लत मानते हैं और कहते हैं, “एक ही पवार हैं यहां, शरद पवार। हां, दूसरे भी हैं पर वह दादा हैं।” दादा का मतलब बड़ा भाई।
बारामती में शरद पवार को साहेब कहा जाता है कि जबकि उनके भतीजे अजित पवार को दादा। सुप्रिया सुले (बहन) को ताई और सुनेत्रा पवार (भाभी) को वेहनी। बारामती सीट पर 7 मई को चुनाव होना है लेकिन उससे पहले यहां के वोटर्स पवार परिवार को लेकर पूरी तरह बंटे हुए हैं। यहां कुल 23.15 लाख मतदाता हैं।

Sunetra Pawar and Supriya Sule: ननद-भाभी में है मुकाबला
2024 के लोकसभा चुनाव में बारामती ऐसी सीट है जिसकी देश भर में जबरदस्त चर्चा है। क्योंकि एक ओर यहां से शरद पवार की बेटी और तीन बार सांसद रहीं सुप्रिया सुले चुनाव मैदान में हैं तो उनके सामने उनकी भाभी और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार हैं।
60 साल के सुरेश जाधव कहते हैं, “हमें यहां पर किसी का पक्ष लेना ठीक नहीं लगता लेकिन कोई विकल्प भी नहीं है।” सुरेश यादव फार्मासिस्ट हैं और पिछले 25 सालों में उन्होंने हर बार बारामती के चुनाव में वोट डाला है। उन्हें इस बात का अफसोस है कि पहली बार न सिर्फ पवार परिवार में बंटवारा हुआ है बल्कि उनके खुद के परिवार में भी ऐसा हो रहा है।
Sharad Pawar and Ajit Pawar: बुजुर्ग शरद पवार और युवा अजित के साथ
अजित पवार के भाई श्रीनिवास पवार के साथ पढ़ चुके एक शख्स बताते हैं, “हमारा संयुक्त परिवार है और इसमें कुल 14 वोटर हैं। परिवार में मुझ जैसे जो उम्रदराज लोग हैं, वे शरद पवार के साथ हैं क्योंकि हमने देखा है कि उन्होंने किस तरह बारामती का कायाकल्प किया है जबकि परिवार के युवा सदस्य अजित पवार के साथ हैं क्योंकि उन्होंने उन्हें ही (अजित पवार को) इस शहर को चलाते हुए देखा है। इसलिए इस मामले में कोई एक राय नहीं है।” वह कहते हैं कि हम लोग अलग-अलग वोट देंगे।
फल बेचने वाले सुभाष लोखंडे कहते हैं कि वह सुप्रिया सुले को ही वोट देंगे और इस बात में कोई शक नहीं है कि ताई यहां पर 2 लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज करेंगी। एक होटल के मैनेजर कहते हैं कि वह अजित दादा को वोट देंगे। चुनाव में पहली बार वोट डालने जा रही और बैचलर आफ इंजीनियरिंग की फाइनल ईयर की स्टूडेंट पायल कोठारी कहती हैं कि वह पवार साहब को वोट देंगी क्योंकि उन्होंने बारामती को स्टूडेंट के लिए पुणे जैसा बना दिया है।

पुणे को टक्कर दे रहा बारामती
1980 तक बारामती एक ग्रामीण इलाके जैसा ही था लेकिन आज पवार फैमिली के ट्रस्ट की ओर से यहां पर 17 स्कूल और 12 कॉलेज हैं, इनमें लॉ, आईटी और आर्किटेक्चर के कॉलेज हैं। इसके अलावा उनकी दो एविएशन एकेडमी और विद्या प्रतिष्ठान भी हैं और इस वजह से बारामती पुणे को टक्कर देने वाला एक बेहतर एजुकेशन हब बना है। यहां 110 एकड़ में कृषि विज्ञान केंद्र है जो वर्तमान में गन्ने की खेती के लिए एआई के साथ प्रयोग कर रहा है। इसके अलावा यहां का नया कल्चरल सेंटर, नटराज नाट्य कला मंदिर, बारामती क्लब नये बारामती और यहां के लोगों की बदलती जीवन शैली को दिखाता है।
जब आप एयरपोर्ट की ओर बढ़ते हैं तो आपको 50 एकड़ का फेरेरो रोचर प्लांट दिखाई देता है, इसमें 7, 000 कर्मचारी हैं और 80% लोग बारामती से हैं। इसके अलावा इटली के पियाजियो ग्रुप की बारामती में तीन फैक्ट्रियां हैं। यहां पर वेस्पा स्कूटर बनाए जाते हैं। यहां कल्याणी स्टील का भी प्लांट है और यहां 5000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। बारामती में 2019 में सरकारी मेडिकल कॉलेज भी बना है और यहां से 100 छात्रों का पहला बैच जा चुका है।
इस सबके साथ ही शानदार सड़कें, पेड़, हरी-भरी जगह, मॉडर्न रेजिडेंशियल अपार्टमेंट और शानदार मॉल भी देख कर आपको पता चलता है कि बारामती को क्यों मॉडल शहर कहा जाता है।
लेकिन सवाल यह है कि बारामती के इस पूरे कायाकल्प का श्रेय किसे दिया जाना चाहिए। जिसने 1980 के आखिर में इसे शुरू किया या उसे, जिसने उस शख्स की ओर से शुरू किए गए काम को आगे बढ़ाया क्योंकि उस शख्स के पास और भी जिम्मेदारियां थीं। यही बात 7 मई को होने वाले मतदान में वोट का आधार तय करने का सबसे बड़ा मुद्दा है।
पियाजियो कंपनी में मैनेजर चंद्रकांत माने कहते हैं, “मेरे मन में वोट डालने को लेकर किसी तरह का कोई कंफ्यूजन नहीं है। हमारी निष्ठा सीनियर पावर यानी पवार साहेब के साथ है जिन्होंने इस बंजर जमीन को सारी सुविधाओं वाले मॉडर्न शहर में बदल दिया। हम उस इंसान को कैसे भूल सकते हैं जिसने यह सब किया।” चंद्रकांत माने कहते हैं कि अजित पवार सिर्फ माध्यम थे।

Sharad Pawar Baramati: सीनियर पवार का है बहुत सम्मान
यहां पर सीनियर पवार यानी पवार साहेब का बहुत मान सम्मान है। जब सुप्रिया सुले बारामती की अमराई झुग्गियों से होकर जाती हैं तो वहां मौजूद लोग जो उनकी फोटो खींचना चाहते हैं, उनके साथ सेल्फी लेती हैं। वह एक बुजुर्ग के पैर छूती हैं और उनसे ईवीएम मशीन पर तीन नंबर के आगे वोट डालने का निवेदन करती हैं। बारामती में तीसरे नंबर पर एनसीपी शरद पवार की उम्मीदवार सुप्रिया सुले का नाम है। सुप्रिया सुले को शरद पवार के नाम का ही यहां सबसे बड़ा सहारा है।
ढोल-नगाड़ों और तुरही की तेज आवाज के बीच सुप्रिया सुले लोगों से वादा करती हैं कि वह लोगों की पानी, खेती और प्रदूषण के मुद्दों पर काम करेंगी। वह कहती हैं, “मेरी ईमानदारी, निष्ठा और मेरे द्वारा किया गया काम फिर से मेरी जीत सुनिश्चित करेगा। मेरे निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता बहुत समझदार हैं और बारामती कृषि को उद्योग के साथ एकीकृत करने के मॉडल का सबसे अच्छा उदाहरण है और यह उनके (पवार साहेब के) लगातार प्रयास की वजह से ही हो सका है।”
बारामती कृषि विज्ञान केंद्र या केवीके शरद पवार का पसंदीदा प्रोजेक्ट भी है। इसका उद्देश्य इंस्टिट्यूट से किसानों को तकनीक का ट्रांसफर करना है। इस केंद्र के प्रमुख डॉ. धीरज शिंदे बताते हैं कि देशभर के 171 केवीके में से यह सबसे आगे है। एक रिटायर्ड टीचर कहते हैं, “हो सकता है, यह शरद पवार का अंतिम चुनाव हो और हम उन्हें धोखा नहीं दे सकते।” ऐसा कहते हुए वह भावुक भी हो जाते हैं।
बारामती की पहचान शुगर और डेयरी कोऑपरेटिव संस्थाओं की वजह से भी है।

Baramati sugar and dairy co-operatives: को-ऑपरेटिव में भी बंटे लोग
बारामती में मुख्य रूप से गन्ने की पैदावार होती है और यहां तीन को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री में से दो- सोमेश्वर को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री और मालेगांव को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री पूरी तरह से अजित पवार के साथ हैं। जबकि तीसरी- बारामती एग्रो लिमिटेड रोहित पवार के साथ है और रोहित पवार शरद पवार और सुप्रिया सुले के साथ हैं। शरद पवार रोहित के दादा हैं।
बारामती तालुका को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोडक्ट्स यूनियन और इसका बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स भी अजित पवार के साथ है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जब शरद पवार महाराष्ट्र और केंद्र की राजनीति में व्यस्त थे तब अजित पवार को स्थानीय को-ऑपरेटिव संस्थाओं के मामले में फ्री हैंड था और तब अधिकतर निदेशक उन्हीं की पसंद से को-ऑपरेटिव संस्थानों में बनाए गए।
मालेगांव शुगर मिल के निदेशक राजेंद्र शंकर राव धवन पाटिल कहते हैं, “शुरुआत में जब एनसीपी में टूट हुई तो हम कंफ्यूज हो गए लेकिन अब हम अजित दादा को नहीं छोड़ सकते। वह ऐसे शख्स हैं जिन्होंने हमारे साथ जमीन पर काम किया है तो हमारा वोट सुनेत्रा पवार को ही जाएगा।” धवन की सीट के पीछे शरद पवार और अजित पवार की तस्वीर दिखाई देती है और उन्होंने अजित और सुनेत्रा पवार की फोटो वाला बैज पहना हुआ है।
(फ्यूचर) को मन में रखें ना कि भावना (इमोशन) को
सुनेत्रा पवार इन दोनों बारामती लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली तमाम विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। रविवार को बारामती में एक बड़ी रैली से पहले वह लोगों को उनके पति अजित पवार के द्वारा किए गए कामों के बारे में बताती हैं। राजनीतिक हालात को भांपते हुए वह बड़ी समझदारी से अपनी बात इस तरह कहती हैं, “वोट देते समय अपने मन में अपने भविष्य (फ्यूचर) को रखें ना कि भावना (इमोशन) को”।
