लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने अपने लिए 370 और गठबंधन (एनडीए) के लिए 400 से ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा है। उसका यह लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से बिहार एक अहम राज्य है। लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार की 40 में से 39 सीटें एनडीए के पास ही थीं। पर, पिछले पांच चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि राज्य की तीनों प्रमुख पार्टियों को मिलने वाले कुल वोट लगातार कम हो रहे हैं।
पहले चुनाव दर चुनाव इस आंकड़े को देखते हैं
लोकसभा चुनाव (वर्ष) | बीजेपी, जेडीयू, राजद को मिले कुल वोट (प्रतिशत) | बीजेपी | जेडीयू | राजद |
1999 | 77.1 | 16.9 | 26.3 | 33.9 |
2004 | 67.7 | 14.6 | 22.4 | 30.7 |
2009 | 57.2 | 13.9 | 24.0 | 19.3 |
2014 | 65.3 | 29.4 | 15.8 | 20.1 |
2019 | 60.8 | 23.6 | 21.8 | 15.4 |
बाद भी बिहार में ही रहे।
अब ऊपर दिए गए आंकड़ों को समझते हैं
इन्हीं आंकड़ों में जेडीयू को साथ रखने की बीजेपी की और अकेले नहीं लड़ पाने की जेडीयू की मजबूरियां छिपी हैं। 1999 में एक तिहाई से ज्यादा वोट अकेले पाने वाली लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद लगातार कमजोर हुई है और 2019 में उसे मिले मतों का प्रतिशत 15.4 पर पहुंच गया।
गठबंधन क्यों जरूरी
पिछले चुनाव में बीजेपी और जेडीयू को मिले वोटों का प्रतिशत 45.4 प्रतिशत था। 2014 में भी 45.2 था। फिर भी सभी पार्टियों के लिए गठबंधन और गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को शामिल करना जरूरी है। इसकी वजह यह है कि सभी पार्टियां वोट को सीट में बदलने में एक जैसी नहीं हैं। उदाहरण के लिए 2019 के चुनाव में राजद को 15.4 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन सीट एक भी नहीं मिली।
जेडीयू को बीजेपी से वोट कम मिले, पर उनके सीटों में तब्दील होने का अनुपात ज्यादा रहा। कांग्रेस 7.7 प्रतिशत वोट लाकर केवल एक सीट जीत सकी थी, जबकि लोजपा 7.86 फीसदी वोट के साथ 6 सीटें जीत गई थी।

गठबंधन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बीजेपी का लक्ष्य 50 फीसदी से ज्यादा वोट अपने पाले में करने का भी रहा है। और, राजद के लिए इसलिए क्योंकि उसे मिले वोट्स के सीटों में बदलने का आंकड़ा सबसे नीचे रहा। 1999 से 2019 के बीच राजद एक नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई और उसकी जगह अब भाजपा ने ले ली है।
कांग्रेस का हाल तो बद से हो रहा बदतर

कांग्रेस की स्थिति बिहार में लगातार बदतर हो रही है। 40 साल पहले जिस ऊंचाई पर कांग्रेस हुआ करती थी, वहां अब भाजपा आ गई है। 1984 में कांग्रेस को 50 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले थे, 2019 में 8 फीसदी भी नहीं मिले।
बिहार में कांग्रेस के अवसान की दास्तान नीचे फोटो पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं
