जैसा इस चुनाव में हम सबने देखा, क्या वैसा इसके पहले किसी चुनाव में देखा गया था? हमारे नेतागण बहुत ही निचले स्तर पर उतरकर समाज पर अपनी जीत के लिए दबाव बनाते रहे और अपशब्दों, असंसदीय शब्दों के तीर चलाते नजर आते रहे। ऐसा लगने लगा मानो नेताओं द्वारा मतदाताओं को धमकाया-डराया जा रहा है कि यदि आपने हमारे खिलाफ मतदान किया, तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। अपशब्दों, असंसदीय शब्दों से रक्षा करने का दायित्व जिनका है, वही जब निचले स्तर की भाषा का प्रयोग करने लगें, तब आप किससे शिकायत करेंगे अथवा किस अदालत में मुकदमा चलाएंगे? 

प्रधानमंत्री यह कैसे कह सकते हैं कि यदि विपक्ष की ‘सरकार बनी तो महिलाओं के मंगलसूत्र तक छीन ल‍िए जाएंगे, और ‘यदि आपके पास दो भैंस हैं, तो एक खोल कर ले जाएंगे,’ ‘विपक्षी दल अब अपने वोट बैंक को बनाए रखने के लिए मुजरा करने लगे हैं’…। 

क्‍या देश की जनता यह समझने नहीं लगी है कि किस व्यक्ति और किस दल द्वारा क्या सच और क्या झूठ बोला जा रहा है? 4 जून को इस सवाल का जवाब म‍िल जाएगा। फिलहाल तो दोनों पक्ष में से कोई भी अपने को कमतर नहीं आंक रहा है। 

भाजपा को मिल रही कितनी सीटें?

अब देश के दो जाने-माने चुनाव विशेषज्ञों के विश्लेषण की बात करते हैं। बात विश्लेषक योगेंद्र यादव की करें, तो छठे चरण के मतदान के बाद उनका मानना रहा है कि भाजपा को कुल 240 सीटें मिल रही हैं, जबकि चुनाव विश्लेषक प्रशांत किशोर मानते हैं कि सरकार तो फिर से वही बनेगी, जो वर्तमान में चल रही है।

यह बात समझ में नहीं आ रही है कि किस आधार पर देश के जानेमाने चुनाव विश्लेषक इस तरह की बातें कर रहे हैं। क्या इन्होंने देश के एक सौ चालीस करोड़ जनता से पूछा है, उनके मन की बात को सामने रखकर जाना है? यदि ऐसा नहीं किया है, तो इन दोनों को या जो भी आज ईवीएम में बंद वोटिंग प्रतिशत की बात करते हैं, तो वे निश्चित रूप से गलत हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आज तक ऐसी कोई एजेंसी नहीं बनी, जो शत-प्रतिशत मतदाताओं से बात करके उनकी व्यक्तिगत गुप्त राय को सार्वजनिक करे।

सत्ताधारी पक्ष बना रहा हवा?

योगेन्द्र यादव लंबे समय से इस तरह की बात और गणना करते रहे हैं। इसलिए उनका अनुभव उन्हें अपनी राय रखने के लिए कहता है। अपने ताजा आंकलन का भी आधार उन्‍होंने यही बताया है क‍ि जो अनुभव क‍िया है, उसके आधार पर नतीजों को वह उस रूप में नहीं देख रहे ज‍िस रूप में सत्‍ताधारी पक्ष हवा बना रहा है।

रही प्रशांत किशोर की बात, तो यह भी सच है कि व‍िदेश से भारत लौटने के बाद उन्‍होंने अपना मुख्‍य काम यही बनाया था क‍ि चुनावी गण‍ित का विश्लेषण सटीक वैज्ञानिक तरीके से करके भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करें। उसमें उन्हें सफलता भी मिली। उसके बाद उन्होंने कई राजनीतिक दलों के लिए काम किया। उनमें भी वे लगभग सफल रहे। उनकी सफलता के कारण उन्हें देश ने एक चुनाव विश्लेषक के रूप में स्थान दिया।

क्या राजनीति में आना चाहते हैं प्रशांत किशोर?

अब उनके कार्यकलापों से देश को ऐसा लगने लगा है कि उनकी राजनीति में आने की इच्छा बलवती हो गई है और उसी का परिणाम है कि बिहार में ‘ जन सुराज’ के बैनर तले वह पूरे ब‍िहार में जगह-जगह घूम रहे हैं। क‍िशोर की राजनीतिक उत्कंठा को देखते हुए देश उन्हें चुनाव व‍िश्‍लेषक या प्रबंधक के रूप में पहले जैसा सम्मान देने से परहेज करने लगा है। बहरहाल, राजनीत‍ि में उनकी सफलता या असफलता बिहार विधानसभा चुनाव में साब‍ित हो ही जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)