पिछले पांच सालों में उच्च न्यायालयों (High Courts) में नियुक्त जजों में से केवल 15 प्रतिशत SC (अनुसूचित जाति), ST (अनुसूचित जनजाति) और OBC वर्ग से आते हैं। यह जानकारी हाल में केंद्रीय कानून मंत्रालय (Law Ministry) के न्याय विभाग (Department of Justice) ने एक संसदीय समिति को दी है।
बार एण्ड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, न्याय विभाग (DOJ) ने यह भी बताया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की प्रधानता के तीन दशक बाद भी जुडिशरी समावेशी और सामाजिक रूप से विविध नहीं बन पाया है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, डीओजे ने यह सभी बातें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी की अध्यक्षता में कर्मचारी वर्ग, लोक शिकायत और लॉ एंड जस्टिस को लेकर बनी संसद की स्थायी समिति के समक्ष पेश एक विस्तृत रिपोर्ट में कही।
SC, ST, OBC कैंडिडेट्स पर ठीक से करें विचार- सरकार
इसके अलावा यह देखते हुए कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के प्रस्तावों की शुरुआत कॉलेजियम से होती है, डीओजे ने कहा, “एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिला उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश कर सामाजिक विविधता को बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी न्यायाधीशों के निकाय (judges’ body) की है।
मौजूदा सिस्टम के अनुसार सरकार केवल उन व्यक्तियों को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त कर सकती है, जिनकी सिफारिश कॉलेजियम द्वारा की जाती है।
न्याय विभाग ने आगे कहा है कि, “सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध करती रही है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय सामाजिक विविधता सुनिश्चित करें। इसके लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला उम्मीदवारों पर उचित विचार करें।”
2018 से 2022 तक HC में सिर्फ 1.3% ST जजों की नियुक्ति
रिपोर्टों के अनुसार, 2018 से 19 दिसंबर 2022 तक, कुल 537 न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों में नियुक्त किया गया था। इनमें से 1.3 प्रतिशत एसटी, 2.8 प्रतिशत एससी, 11 प्रतिशत ओबीसी वर्ग से और 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जज थे। इस दौरान 20 नियुक्तियों ऐसे जजों की भी हुईं, जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।”