चुनाव प्रचार पूरे उफान पर हो और कोई बड़ा नेता चुनावी गतिविधियों से पूरी तरह दूर हो तो इसका सीधा और साफ मतलब यही है कि वह नेता नाराज है। यह बात कही जा रही है हरियाणा में कांग्रेस की दिग्गज और सिरसा से लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा के बारे में। कुमारी सैलजा को लेकर पूरे हरियाणा में चर्चाओं का बाजार गर्म है। पिछले एक हफ्ते से कुमारी सैलजा ने कांग्रेस के किसी भी चुनाव प्रचार कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया है और उनके समर्थन में जिस तरह बीजेपी के अलावा बसपा और अन्य नेताओं के भी बयान आए हैं उससे कांग्रेस इस मामले में बैकफुट पर है।

जानते हैं कि कुमारी सैलजा की नाराजगी की वजह क्या है और उनकी नाराजगी से हरियाणा में कांग्रेस को कितना नुकसान हो सकता है।

सैलजा को लेकर टिप्पणी से दलित समाज में आक्रोश

कुमारी सैलजा की नाराजगी की तीन वजह निकलकर सामने आती हैं। पहली यह कि कुछ दिन पहले एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कुमारी सैलजा पर जातिगत टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को लेकर कुमारी सैलजा के समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया। कुमारी सैलजा के समर्थक हरियाणा में कई जगहों पर सड़क पर उतर आए हैं और उन्होंने जोरदार प्रदर्शन किया है।

कुमारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं और हरियाणा में निसंदेह रूप से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बाद कांग्रेस में सबसे बड़ा चेहरा हैं।

बीजेपी नेता उतरे समर्थन में

सैलजा पर की गई टिप्पणी को लेकर हो रहे विरोध को बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने लपक लिया। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सहित कई बड़े नेता खुलकर कुमारी सैलजा के समर्थन में उतर आए। खट्टर ने तो सैलजा को बीजेपी में शामिल होने का ऑफर तक दे दिया।

इसके अलावा हाल के वर्षों में दलित राजनीति का चेहरा बने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद और बसपा प्रमुख मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने भी कुमारी सैलजा को लेकर की गई टिप्पणी की निंदा की है।

इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि बीजेपी अपने घर की चिंता करे जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि इस तरह की टिप्पणी स्वीकार्य नहीं है। जब इस मामले में विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया तो कुमारी सैलजा को लेकर टिप्पणी करने वाला कांग्रेस नेता भी सामने आया और उसने माफी मांगी और सैलजा को बहन बताया।

यह मुद्दा हरियाणा में बहुत बड़ा हो गया है और कांग्रेस के लिए मुश्किल यह है कि कुमारी सैलजा पूरी तरह चुनाव प्रचार से नदारद हैं। जबकि लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद कुमारी सैलजा काफी एक्टिव थीं और उन्होंने हरियाणा के शहरी इलाकों में पदयात्राएं भी की थीं।

हुड्डा कैंप को तरजीह, सैलजा समर्थक निराश

इस टिप्पणी के अलावा सैलजा की नाराजगी की एक वजह यह भी कही जा रही है कि टिकट वितरण में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा कैंप को अहमियत दी है। 90 सीटों वाली हरियाणा की विधानसभा में हुड्डा के समर्थकों को 70 से 75 टिकट के आसपास मिले हैं जबकि कुमारी सैलजा के समर्थकों को 9 से 10 और बचे हुए कुछ टिकट राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला को दिए गए हैं।

कुमारी सैलजा ने विधानसभा चुनाव में अपने समर्थकों के लिए 30 से 35 सीटों पर टिकट मांगे थे लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उन्हें निराश होना पड़ा। टिकट वितरण में अहमियत ना मिलने की वजह से कुमारी सैलजा के कैंप को लगता है कि हाईकमान ने उनके नेता की पसंद को अहमियत नहीं दी।

पार्टी ने नहीं लड़ाया विधानसभा चुनाव

कुमारी सैलजा इस बार विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहती थीं, इस बात को उन्होंने कई मीडिया चैनलों के साथ बातचीत में उठाया भी था। क्योंकि हरियाणा में अगर कांग्रेस को बहुमत मिलता तो यह बहुत संभव था कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व विधायकों में से ही मुख्यमंत्री का चुनाव करता लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने सैलजा और साथ ही सुरजेवाला को भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ाया। उकलाना आरक्षित सीट से सैलजा चुनाव लड़ना चाहती थीं। यह उनका गृह क्षेत्र भी है। इसे भी सैलजा की नाराजगी की प्रमुख वजह माना जा रहा है।

सीएम बनना चाहती हैं सैलजा

लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद से ही हरियाणा कांग्रेस के दिग्गजों को ऐसा लगता है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बन सकती है इसलिए पिछले दिनों कई टीवी चैनलों के साथ बातचीत में कुमारी सैलजा के साथ ही रणदीप सुरजेवाला ने भी कहा कि उनकी सियासी ख्वाहिश हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने की है। कुमारी सैलजा इस मामले में ज्यादा मुखर दिखाई दीं हालांकि इन नेताओं ने यह भी कहा कि इस मामले में वे कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को मानेंगे। लेकिन उनके इन बयानों से राज्य में सीएम चेहरे या कांग्रेस की सरकार बनने पर सीएम कौन होगा, इसकी लड़ाई तेज हो चुकी थी।

सिरसा, अंबाला से जीत चुकी हैं सैलजा

अब बात यह करनी होगी कि कुमारी सैलजा को अगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी नहीं मना पाए तो उनकी नाराजगी से कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में कितना नुकसान हो सकता है। इसके लिए सैलजा के राजनीतिक करियर पर भी नजर डालनी होगी।

कुमारी सैलजा पहली बार 1991 में सिरसा लोकसभा सीट से सांसद बनी थीं। इसके बाद वह नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार में मंत्री बनी। वह 1996 में भी लोकसभा का चुनाव जीती थीं। मनमोहन सिंह की सरकार में कुमारी सैलजा अहम मंत्रालय संभाल चुकी हैं। कुमारी सैलजा अंबाला लोकसभा सीट से भी सांसद रही हैं। वह हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष रहने के साथ ही राज्यसभा की सदस्य भी रह चुकी हैं।

पिता भी थे बड़े कांग्रेस नेता

2024 के लोकसभा चुनाव में सैलजा ने एक बार फिर अपनी ताकत दिखाई और वह सिरसा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। उनके पिता दलबीर सिंह कांग्रेस के बड़े नेता थे। वह कई बार विधायक, सांसद रहने के अलावा भारत सरकार में मंत्री भी रहे थे। इससे पता चलता है कि कुमारी सैलजा का राजनीतिक कद मौजूदा वक्त में हरियाणा में किसी भी पार्टी के नेता से कम नहीं है और हरियाणा की राजनीति में निश्चित रूप से वह एक बड़ा नाम हैं।

21% है दलित समाज की आबादी

हरियाणा में दलित समाज की आबादी 21% है और 17 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों के अलावा भी कई सीटों पर हार-जीत तय करने की ताकत दलित समाज के पास है। कुमारी सैलजा पर की गई टिप्पणी के बाद जिस तरह दलित समाज सड़कों पर आया है और बीजेपी के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं का भी कुमारी सैलजा को खुलकर साथ मिला है, उससे निश्चित रूप से कांग्रेस को कुमारी सैलजा के असर वाले इलाकों जैसे- सिरसा, अंबाला संसदीय क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों के साथ ही अनुसूचित जाति के मतदाताओं का जिन क्षेत्रों में असर है, वहां पर भी नुकसान हो सकता है क्योंकि सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया और अखबारों में सैलजा को लेकर की गई टिप्पणी और उनकी नाराजगी की जबरदस्त चर्चा है।

अगर कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सैलजा को नहीं मना पाता और सैलजा अनमने ढंग से चुनाव प्रचार में शामिल हुईं और जिस तरह से बीजेपी ने सैलजा की नाराजगी को मुद्दा बना लिया है, उससे कांग्रेस को सियासी नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।