जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रहे आतंकी हमलों के बीच पुलिस ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नज़ीर अहमद रोंगा को आधी रात को श्रीनगर स्थित उनके घर से हिरासत में ले लिया है। नजीर के परिवार का कहना है कि उन्हें सुबह बताया गया कि उन पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

रोंगा के बेटे उमैर रोंगा जो श्रीनगर हाई कोर्ट में वकील हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, “मेरे पिता, वकील एन ए रोंगा को एक बेहद परेशान करने वाले घटनाक्रम में गिरफ्तार किया गया है। रात के 1.10 बजे जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक टुकड़ी बिना किसी गिरफ्तारी वारंट के हमारे घर पहुंची, और केवल इतना कहा कि यह ऊपर से आदेश है। हम सदमे और गहरे संकट में हैं। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि यह बार एसोसिएशन के सदस्यों को डराने-धमकाने के लिए पीएसए के दुरुपयोग का एक और उदाहरण नहीं हो।”

पीएसए के तहत मामला दर्ज

इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर बशारत मसूद से बात करते हुए उमैर ने कहा, “आज सुबह, जब उन्हें मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था तब पुलिस ने हमें बताया कि उन पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है। हमें बताया गया कि उन्हें जम्मू की जेल में रखा जाएगा।” उमैर ने कहा कि परिवार को अब तक हिरासत के कारणों के बारे में नहीं बताया गया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिरासत पर कोई टिप्पणी नहीं की।

रोंगा 2020 से हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। तब सरकार ने एसोसिएशन को अपने वार्षिक चुनाव आयोजित करने से रोक दिया था। पिछला चुनाव 2018 में आयोजित किया गया था। फ‍िर सितंबर 2019 में होना था लेकिन जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने और उसके बाद कर्फ्यू के कारण नहीं हो सका।

2018 में हुआ था बार एसोसिएशन का आखिरी चुनाव

2020 में बार ने जब चुनावों की घोषणा की तो सरकार ने कहा कि बार का संविधान, जिसने कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र कहा था, भारत के संविधान के अनुरूप नहीं था। हाल के एक पत्र में बार ने संकेत दिया कि उसने अपने संविधान से विवादास्पद पैराग्राफ को हटा दिया है।

रोंगा की गिरफ़्तारी बार एसोसिएशन की चुनाव समिति द्वारा फिर से चुनाव की तैयारी शुरू करने के कुछ दिनों बाद हुई। लेकिन जब समिति को 31 जुलाई से पहले चुनाव पूरा करने का काम सौंपा गया तो सरकार ने उसे फिर से चुनाव कराने से रोक दिया।

क्या है पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA)

पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) यानी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम बिना मुकदमे चलाए किसी भी व्यक्ति को एक साल तक की गिरफ्तारी या नजरबंदी की अनुमति देता है। यह कानून 1970 के दशक में जम्मू-कश्मीर में लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिए लागू किया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री और फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला लकड़ी तस्करों के खिलाफ इस अधिनियम को एक निवारक के रूप में लाए थे, जिसके तहत बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल की सजा देने का प्रावधान किया गया था।

यह अधिनियम सरकार को 16 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को एक साल तक बिना मुकदमा चलाए रखने की अनुमति देता था। लेक‍िन, 2011 में, न्यूनतम आयु 16 से बढ़ाकर 18 कर दी गई थी।

बीते दशकों से इसका इस्तेमाल आतंकवादियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के खिलाफ किया जाता है। सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम बिना वारंट, विशिष्ट आरोपों और अक्सर अनिश्चित अवधि के लिए लोगों की गिरफ्तारी और हिरासत की अनुमति देता है।

पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल ने निलंबित किया वकील का लाइसेंस

बार से ही जुड़ी एक अन्य खबर में पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल ने आज हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के वकील विकास मलिक का लाइसेंस निलंबित कर दिया और उनके खिलाफ शिकायतों पर अंतिम फैसला आने तक उन्हें किसी भी अदालत में प्रैक्टिस करने से रोक दिया।

यह निर्णय अध्यक्ष करणजीत सिंह की अध्यक्षता वाली बार काउंसिल की अनुशासन समिति द्वारा लिया गया, जिसमें सदस्य रजत गौतम और सह-सदस्य रवीश कौशिक शामिल थे। सुनवाई के दौरान कहा गया था कि विकास मलिक ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की हार्ड डिस्क ले ली थी।

विकास मलिक की जगह हाल ही में एचसीबीए अध्यक्ष का प्रभार उपाध्यक्ष जसदेव सिंह बराड़ को सौंपा गया था, जब न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एक वकील पर हमला करने के आरोप में मलिक के खिलाफ हाल ही में दर्ज की गई एफआईआर पर ध्यान दिया था।

बार काउंसिल ने आज मलिक का लाइसेंस निलंबित कर दिया क्योंकि बताया गया कि एफआईआर में लिखा था कि अपने खिलाफ सबूत नष्ट करने के लिए उन्होंने सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर/हार्ड-डिस्क ले ली थी।

सेना के वाहनों पर हुए पिछले हमले

एक तरफ जहां जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का चुनाव नहीं हो सका है, वहीं जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रहे आतंकी हमले भी नहीं थमे हैं। सोमवार को कठुआ में हुए आतंकी हमले से पहले रविवार (7 जुलाई) की सुबह आतंकियों ने राजौरी जिले के मंजाकोट इलाके में एक आर्मी कैंप पर हमला किया था। इसमें एक जवान घायल हो गया था। जवानों की जवाबी कार्रवाई के बाद आतंकी घने जंगल के रास्ते भाग गए थे।

पुंछ में हमला

इससे पहले 4 मई को पुंछ के शाहसितार इलाके में एयरफोर्स के काफिले पर हमला हुआ था, जिसमें कॉर्पोरल विक्की पहाड़े शहीद हो गए थे और 4 अन्य जवान घायल हो गए थे। आतंकियों ने सुरक्षाबलों के दो वाहनों पर भारी फायरिंग की थी।

जम्मू-कश्मीर के पुंछ में इसी साल 12 जनवरी को आतंकियों ने सेना के वाहन पर हमला किया था। जिसके बाद जवानों ने जवाबी फायरिंग की थी। इसमें किसी के भी घायल या मौत की खबर नहीं आई थी।

डोडा के गंडोह में 26 जून को सुरक्षाबलों ने तीन आतंकियों को मार गिराया था। 2-3 आतंकियों के इलाके में छिपे होने की सूचना के बाद पुलिस और सेना ने सर्च ऑपरेशन लॉन्च किया था, जिसके बाद एनकाउंटर शुरू हुआ था। इस एनकाउंटर में जम्मू-कश्मीर पुलिस में तैनात स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का जवान भी घायल हुआ था।

बांदीपोरा में आतंकी हमला

जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में 17 जून की सुबह सुरक्षाबलों ने आतंकी LeT कमांडर उमर अकबर लोन को मार गिराया था। 11 जून को आतंकियों ने भद्रवाह-पठानकोट मार्ग पर 4 राष्ट्रीय राइफल्स और पुलिस की जॉइंट चेकपोस्ट पर फायरिंग की थी। इस हमले में 5 जवान और एक स्पेशल पुलिस ऑफिसर घायल हुआ था। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन कश्मीर टाइगर्स (जेईएम/जैश) ने ली थी।

9 जून को कटरा जा रही बस पर आतंकियों ने 25-30 राउंड फायरिंग की थी। ड्राइवर को गोली लगने से बस खाई में गिर गयी थी और 9 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। इस हमले में 41 लोग घायल हुए थे।

जम्मू कश्मीर में हो रहे आतंकी हमलों को लेकर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सरकार को घेरा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि सरकार लापरवाही कर रही है, आतंकी हमलों का 370 से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में हालात को सुधारने के लिए जो करना चाहिए वो नहीं किया जा रहा है।