जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके और नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला कश्मीर की राजनीति के जंगल के शेर हुआ करते थे। उन्होंने 1920 के दशक में राजनीति शुरू की थी। करीब 60 साल बाद उन्होंने तय किया कि अब विरासत बच्चे के हवाले की जाए। और, विरासत सौंपने के लिए फारूक अब्दुल्ला उनका सबसे पंसदीदा बच्चा थे, क्योंकि वह सबसे बड़े बेटे थे।
नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान शेख अब्दुल्ला से फारूक अब्दुल्ला के हाथों में आने की पूरी कहानी फिंंगरप्रिंंट पब्लिकेशंस से आई एक किताब ‘फारूक ऑफ कश्मीर’ में दर्ज है। यह किताब अश्विनी भटनागर और आर.सी. गंजू ने लिखी है।
शेख अब्दुल्ला के तीन बेटे और दो बेटियां थीं। फारूक के अलावा शेख मुस्तफा कमाल और तारिक अब्दुल्ला। इनकी बहनें थीं- खालिदा और सुरैया। पाचों में सबसे बड़ी थीं खालिदा। उनकी शादी शेख साहब के एक करीबी जीएम शाह से हुई थी। खालिदा भी राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहती थीं। पिता के घर पर भी और शौहर के यहां भी।
राजनीतिक विरासत सौंपने की कहानी
फारूक 1965 में डॉक्टरी करने लंदन चले गए थे। वहीं उन्होंने एक ब्रिटिश महिला से शादी की और खुद भी ब्रिटिश नागरिकता ले ली। लेकिन, 1975 में पारिवारिक कारणों से उन्हें कश्मीर लौटना पड़ा।
1981 में शेख अब्दुल्ला ने राजनीतिक विरासत फारूक को सौंपने की सोची। उन्हें समझाया- अस्पताल चलाकर आप देश की मदद कर सकते हैं, लेकिन राजनीति किसी भी पेशे से ज्यादा ग्लैमरस है। उन्होंने यह भी कहा- मैं अब नौजवान के हाथों में बागडोर देना चाहता हूं, वह नौजवान जो लोकप्रिय हो और पार्टी के भीतर आपको सब चाहते हैं।
एक साल पहले ही शेख अब्दुल्ला श्रीनगर लोकसभा सीट से फारूक अब्दुल्ला को टिकट दे चुके थे। उस समय शेख अब्दुल्ला की हैसियत ऐसी थी कि फारूक निर्विरोध चुनाव जीत गए थे। अंतत: 1981 में शेख अब्दुल्ला ने फारूक अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमान सौंप दी।

‘ताजपोशी’ को यादगार बनाने के लिए क्या-क्या किया गया था?
21 अगस्त, 1981 को हुई अपनी ‘ताजपोशी’ को यादगार बनाने में फारूक ने कोई कसर नहीं छोड़ी। हर एक कार्यकर्ता को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई कि हर घर से लोग शिरकत करें। श्रीनगर की सड़कों पर लोग ही लोग उतार दिए थे। जुलूस में फारूक के साथ करीब पांच लाख लोग चल रहे थे और पूरा श्रीगनर ‘नेशनल, नेशनल, सारे हैं नेशनल’ (नेशनल कॉन्फ्रेंस) के नारे से गूंज रहा था।
शेख अब्दुल्ला एक होटल की बालकनी से बेटे पर फूल बरसा रहे थे। जुलूस खत्म होने के बाद करीब पांच हजार लोगों की मौजूदगी में शेख अब्दुल्ला ने बतौर अध्यक्ष आखिरी भाषण दिया और बेटे की छाती पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का बैज पहना कर औपचारिक रूप से विरासत उन्हें सौंप दी।
जब दूरदर्शन और आकाशवाणी पर बरस पड़े शेख अब्दुल्ला
फारूक अब्दुल्ला गांधी परिवार से अपनी दोस्ती मजबूत करना चाहते थे। किताब में वह बताते हैं, ‘राजीव गांधी ने मुझे फोन कर बधाई दी (नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष बनने पर)। आपको पता ही है कि पंडित नेहरू और मेरे पिता के बीच शुरू से रिश्ते रहे हैं। दिवंगत फिरोज गांधी व इंदिरा गांधी के साथ भी ऐसा ही रहा है। अब मैं राजीव से भी इसी तरह का रिश्ता बनाना चाहता हूं।’
फारूक इस दिशा में ज्यादा कुछ कर पाते, उससे पहले ही उनके पिता दूरदर्शन और आकाशवाणी (एआईआर) पर बरस पड़े। उन्हें गुस्सा इस बात का था कि दूरदर्शन और आकाशवाणी (जो कांग्रेसी केंद्र सरकार के अधीन थे) ने फारूक की ताजपोशी के ‘ऐतिहासिक अवसर’ का पर्याप्त कवरेज नहीं किया। उन्होंने लगातार इतनी भड़ास निकाली कि फारूक को भी अपने पिता के साथ होना पड़ा और उसने ऐलान कर दिया, ‘एक दिन मैं पूरे देश को हिला कर दिखाऊंगा और अगर ऐसा न किया तो आपका बेटा नहीं।