Kailash Parvat Darshan from India: कैलाश मानसरोवर की यात्रा न सिर्फ धार्मिक है बल्कि बेहद रोमांचक भी है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा के जरिये कैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए अब तक तीर्थ यात्रियों को पड़ोसी देश चीन जाना होता था लेकिन अब वे भारत से ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते हैं। इस बात को सुनने के बाद मन में पहला सवाल आता है कि आखिर भारत से कैलाश पर्वत के दर्शन कैसे किये जा सकते हैं।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पुराने लिपुलेख शिखर से कैलाश पर्वत के साथ ही ओम पर्वत के भी दर्शन कर सकते हैं।
तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे में शामिल लोग 3 अक्टूबर को पुराने लिपुलेख शिखर से कैलाश पर्वत के भव्य दर्शन भी कर चुके हैं। साथ ही उन्होंने ओम पर्वत को भी निहारा। इसके बाद वे आदि कैलाश की यात्रा पर निकल गए हैं। इस साल जुलाई में उत्तराखंड सरकार ने कहा था कि शिव के भक्त 15 सितंबर से भारतीय सीमा के भीतर स्थित 18,300 फीट ऊंचे पुराने लिपुलेख दर्रे से तिब्बत में स्थित पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते हैं।
5 साल से रुकी थी कैलाश मानसरोवर यात्रा
बताना होगा कि कोरोना काल की वजह से कैलाश मानसरोवर यात्रा पिछले 5 साल से रुकी हुई थी और श्रद्धालु बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि कब उन्हें कैलाश मानसरोवर के दर्शन का मौका मिलेगा। इस साल जब कैलाश मानसरोवर के लिए यात्रा शुरू हुई तो बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री और श्रद्धालु कैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए पहुंचे।
पहले जत्थे के तीर्थयात्रियों में शामिल नीरज मनोहर लाल चौकसे और मोहिनी नीरज चौकसे कैलाश पर्वत के दर्शन करके भावविभोर हो गए। नीरज चौकसे ने भारत से ही दर्शन कराने के लिए सरकार का आभार जताया और कहा कि यह शिव भक्तों के लिए एक वरदान साबित होगा। चंडीगढ़ के अमनदीप कुमार जिंदल खुद को किस्मत वाला समझते हैं कि साफ मौसम के कारण उन्हें पुराने लिपुलेख से कैलाश पर्वत के दर्शन हुए।
कैसे मिली यह जगह?
सवाल यह है कि कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए पुराने लिपुलेख में यह जगह कैसे मिली। इस जगह को कुछ महीने पहले उत्तराखंड पर्यटन, बीआरओ और आईटीबीपी की एक टीम ने खोज निकाला था। इसके बाद उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने कैलाश पर्वत, आदि कैलाश और ओम पर्वत के दर्शन का पैकेज शुरू करने के लिए तैयारियां शुरू की।
उत्तराखंड पर्यटन विभाग को भारत की जमीन से कैलाश पर्वत, आदि कैलाश और ओम पर्वत के दर्शन कराने में सफलता मिली है, यह खबर कैलाश पर्वत का दर्शन करने की इच्छा रखने वाले सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
सरकार ने शुरू किया 5 दिवसीय टूर पैकेज
उत्तराखंड विकास परिषद की पहल परकुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) ने 5 दिवसीय यात्रा पैकेज लांच किया है। इस पैकेज में श्रद्धालुओं को कैलाश पर्वत, आदि कैलाश और ऊँ पर्वत के दर्शन कराए जाते हैं। इस पैकेज के तहत ही पहले पांच सदस्यीय दल ने गुरुवार को कैलाश पर्वत के दर्शन किए थे। इन श्रद्धालुओं को बुधवार को हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ के गुंजी पहुंचाया गया था, जहां से सड़क मार्ग से उन्हें ओल्ड लिपुलेख से ओम पर्वत और कैलाश पर्वत के दर्शन कराए गए।
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क्या कहते हैं धर्म शास्त्र?
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के पांच निवास स्थान हैं, जिनमें से तीन – किन्नौर कैलाश, मणि महेश और श्रीखंड महादेव हिमाचल प्रदेश में हैं, आदि कैलाश उत्तराखंड में है और कैलाश पर्वत चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है। कैलाश पर्वत हिमालय की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है। यह पर्वत हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी धार्मिक आस्था का केंद्र है।
हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों का मानना है कि कैलाश मानसरोवर झील को भगवान ब्रह्मा ने बनाया था और इस झील में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। जबकि बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को माउंट मेरु कहा जाता है और इसे बौद्ध ब्रह्मांड विज्ञान में भी महत्वपूर्ण जगह प्राप्त है। बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुसार, बुद्ध के जन्म से पहले रानी माया को देवताओं ने इस झील के जल से स्नान कराया था।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान कई यात्री पवित्र गौरीकुंड में जाते हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती के मंदिर में आशीर्वाद लेते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा निश्चित रूप से रोमांचक है। यह आध्यात्मिक यात्रा भी है जो यात्रियों को शानदार प्राकृतिक दृश्यों और पवित्र स्थलों के दर्शन कराती है।
आप अपनी यात्रा की शुरुआत उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित काठगोदाम या दिल्ली से कर सकते हैं और पिथौरागढ़, धारचूला, गुंजी और नाबी में रुक सकते हैं। आदि कैलाश यात्रा के लिए केएमवीएन भी जरूरी इंतजाम करता है। धारचूला से शुरू होने वाली इस यात्रा में बर्फ से ढकी चोटियों, सुंदर घाटियों और झीलों के दर्शन होते हैं। साथ ही स्थानीय संस्कृतियों के साथ घुलने-मिलने और गांवों के लोगों के साथ बातचीत करने का भी मौका तीर्थयात्रियों को मिलता है।