सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर (Supreme Court judge Justice S Abdul Nazeer) के विदाई समारोह (farewell function) के अवसर पर न्यायिक बिरादरी के विभिन्न सदस्यों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित नज़ीर के विदाई समारोह में कहा कि जस्टिस नज़ीर का सफर बहुत कठिन रहा है। वह अपने चाचा के खेतों में काम करते हुए और समुद्र तटों पर मछलियां चुनते हुए बड़े हुए हैं।

जस्टिस अब्दुल नज़ीर (Justice S Abdul Nazeer) को ‘पीपल्स जज’ (people’s judge) की उपाधि देते हुए डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, ”जस्टिस नज़ीर कानून और उससे प्रभावित सभी लोगों के लिए एक समर्पित जज रहे। अपने चाचा के खेत में काम करते हुए पले-बढ़े जस्टिस नज़ीर का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा है। वह दिल से एक किसान हैं। अपने शुरुआती वर्षों में वह पेराम्बुर समुद्र तट पर मछलियां चुनते और साफ करते थे।”

‘नाटक में फीमेल सिंगर होते थे जस्टिस नज़ीर’

सीजेआई ने जस्टिस नज़ीर के शौकों का उल्लेख करते हुए कहा, ”अपने कॉलेज के दिनों में जस्टिस नज़ीर को थिएटर का शौक था। उन्होंने कई नाटकों का डायलॉग और सीन लिखा है। वह खुद नाकट में मुख्य महिला गायिका के रूप में काम कर चुके हैं। वह अपने तुलु गीतों के लिए जाने जाते थे।”

जस्टिस नज़ीर की सादगी के बार में बताते हुए सीजेआई ने कहा कि जज साहब के पास 2019 तक पासपोर्ट भी नहीं था और कुछ हफ़्ते पहले ही देश के बाहर पहली बार मास्को गए थे। हाल तक उनकी एकमात्र आईडी ड्राइविंग लाइसेंस और जज आईडी हुआ करती थी।

CJI चंद्रचूड़ ने अपना संबोधन समाप्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने एक समर्पित बेटे, एक कॉलेजियम सहयोगी, एक सज्जन नियोक्ता, एक प्रखर अधिवक्ता, पीपल्स जज और एक प्रिय मित्र को विदाई दे रहा है।

कर्नाटक हाईकोर्ट से की थी वकालत की शुरुआत

न्यायमूर्ति नज़ीर का जन्म 5 जनवरी, 1958 को हुआ था। एक वकील के रूप में जस्टिस नज़ीर की एनरोलमेंट 18 फरवरी, 1983 को हुई थी। उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट से प्रैक्टिस की शुरुआत की थी। वहीं उन्हें 12 मई, 2003 को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 24 सितंबर, 2004 को वह परमानेंट जज बने। 17 फरवरी, 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था।

जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर का नाम उन कुछ जजों में शामिल है, जिन्हें उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बने बिना सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत कर दिया गया। शीर्ष अदालत के करीब 6 साल के अपने करियर में वह कई ऐतिहासिक फैसले देने वाली बेंचों में रहे। जस्टिस अब्दुल नज़ीर अयोध्या विवाद पर अंतिम फैसला लिखने वालों में से एक रहे हैं। उन्होंने ‘निजता का अधिकार’ पर भी फैसला सुनाया था।